रात को थाने लाया गया आरोपी, सुबह लॉकअप में लाश! पुलिस के ‘सुसाइड’ वाले दावे पर उठे सवाल
भरतपुर का उद्योग नगर थाना… वही जिसके बारे में पिछले कुछ महीनों से अजीबोगरीब खबरें आ रही थीं। और अब? एक और मौत। असल में देखा जाए तो ये कोई नई बात नहीं – पुलिस हिरासत में मौतों का ये सिलसिला तो जैसे रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। लेकिन इस बार जो हुआ, वो सच में हैरान करने वाला है।
कल रात एक आरोपी को थाने लाया गया, और सुबह तक वो lockup में फंदे से लटका मिला। सुनने में तो ये सीधा-साधा केस लगता है न? पर जैसे-जैसे details सामने आ रहे हैं, पूरा मामला और उलझता जा रहा है। परिजनों का आरोप – पुलिस ने मारा है। पुलिस का दावा – खुदकुशी। तो सच क्या है? यही तो जानना दिलचस्प होगा।
क्या हुआ था असल में?
मृतक की पहचान तो अभी official तौर पर नहीं बताई गई (वैसे भी ये पुलिस की पुरानी आदत है न?), लेकिन sources के मुताबिक उसे एक छोटे-मोटे चोरी के केस में पकड़ा गया था। अब यहां सवाल ये उठता है – चोरी का आरोप था, हत्या का नहीं। फिर ऐसा क्या हुआ कि रात भर में ही केस ‘चोरी’ से ‘मौत’ तक पहुंच गया?
थाने के quarantine cell में रखा गया था आरोपी… और सुबह की routine checking में वही दृश्य – फंदा, लटका शव। मैं आपको बताऊं, पिछले छह महीने में ये इलाका ऐसे ही तीन-चार मामलों से हिल चुका है। हर बार का सीन वही – पुलिस का ‘सुसाइड’ वाला रटा-रटाया जवाब, परिवार का रो-धोकर ‘पुलिस अत्याचार’ का आरोप। और इस बार? जैसे की पुरानी फिल्म का रीमेक देख रहे हों।
सुबह वाली घटना: क्या-क्या हुआ?
सुबह के लगभग 7 बजे की बात है। lockup का routine inspection चल रहा था। अचानक एक constable की चीख – “साहब! ये देखिए!” और फिर… खामोशी। आरोपी का शव shirt से बने फंदे पर झूल रहा था। तुरंत higher authorities को inform किया गया, परिवार को बुलाया गया।
पर यहां सबसे दिलचस्प बात? मृतक के भाई का बयान। उन्होंने media को बताया – “पुलिस वालों ने रात भर उसे बेरहमी से पीटा। जब वो बेहोश हो गया, तो उसे फांसी लगवाकर सुसाइड का नाटक कर दिया।” है न चौंकाने वाला दावा? वहीं दूसरी तरफ, पुलिस का कहना है कि आरोपी ने खुद ही shirt का फंदा बनाया और… आप समझ ही गए होंगे।
Postmortem के लिए शव hospital भेज दिया गया है। अब सबका इंतज़ार उसी रिपोर्ट का है। पर क्या सच में autopsy से कुछ पता चलेगा? या फिर ये केस भी वहीं खत्म होगा जहां से शुरू हुआ था?
अलग-अलग प्रतिक्रियाएं: कौन क्या कह रहा है?
इस मामले में reactions बड़े ही interesting हैं। मृतक के पिता, जो clearly shock में हैं, रोते हुए बोले – “मेरा बेटा बिल्कुल बेकसूर था! उसे बिना सबूत पकड़ा गया, और अब… अब वो चला गया।”
वहीं district police के spokesperson ने अपने typical ढंग से कहा – “हम investigate कर रहे हैं। अगर किसी की गलती निकली, तो action लिया जाएगा।” सुनने में अच्छा लगता है, पर कितना सच? ये तो time ही बताएगा।
और फिर local human rights activists का statement – “ये सिस्टम की failure है। Police reforms की ज़रूरत है।” सही कह रहे हैं, पर क्या सुनने वाला कोई है?
अब आगे क्या?
अभी तो बस शुरुआत है। Sources के मुताबिक, एक high-level committee बनाई जा सकती है। Postmortem report आने के बाद ही clear picture सामने आएगी। अगर autopsy में torture के signs मिले, या फिर suicide के claims को गलत साबित करने वाले evidence मिले, तो शायद कुछ हो।
पर मैं आपसे पूछता हूं – कितने ऐसे cases में हमने real justice होते देखा है? मृतक का परिवार PIL दायर करने की तैयारी में है, जो अच्छी बात है। पर क्या court के आदेशों का भी वही हश्र नहीं होता जो police investigations का?
सच तो ये है कि ये घटना हमारे criminal justice system की खामियों को फिर से उजागर करती है। पुलिस और public के बीच का ये बढ़ता trust gap किसी से छुपा नहीं। अब सवाल ये नहीं कि ‘क्या हुआ’… सवाल ये है कि ‘क्या होगा’? क्या इस बार सच सामने आएगा? या फिर ये केस भी उन्हीं dusty files में दफन हो जाएगा जहां से कभी सच बाहर ही नहीं आ पाता?
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ये खबर सुनकर दिल दहल जाता है न? एक इंसान को रात भर थाने में रखा जाता है, और सुबह तक वो मौत की नींद सो जाता है। सवाल तो बहुत उठते हैं, लेकिन जवाब मिलना इतना आसान नहीं। चलिए, कोशिश करते हैं कुछ साफ-सुथरे जवाब ढूंढने की…
1. आखिर कैसे मरा ये आरोपी?
अभी तो पूरी तरह साफ नहीं हुआ। Postmortem रिपोर्ट का इंतज़ार है, लेकिन देखा जाए तो शुरुआती जांच में शरीर पर चोट के निशान मिले हैं। और यहीं से शुरू होता है सारा ड्रामा। सवाल तो पुलिस पर भी उठ रहे हैं, है न?
2. भईया, पुलिस ने उसे थाने में रखा ही क्यों?
सीधी सी बात है – एक criminal case में पकड़ा गया था आदमी। Court में पेश करने से पहले थाने में रखना तो प्रोटोकॉल है। लेकिन… हमेशा की तरह एक ‘लेकिन’ जरूर आता है। मौत के बाद तो पुलिस वालों की पूरी कहानी पर ही शक होने लगता है।
3. पुलिस वालों ने लापरवाही की या जानबूझकर…?
अरे भई, अभी तो पता नहीं। पर जांच अधिकारी नाक-भौं सिकोड़ रहे हैं। CCTV फुटेज देखा जा रहा है, eyewitnesses से पूछताछ हो रही है। असल में, negligence का सवाल तो तब आता है जब… अच्छा छोड़िए, अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।
4. मरे हुए के घर वालों का क्या होगा?
देखिए, परिवार वालों ने तो पुलिस के खिलाफ case कर ही दिया है। अब सरकारी compensation और legal aid की बात चल सकती है। पर यार, ये सब फाइलों में घूमता रहेगा – case कितना गंभीर है, जांच क्या कहती है, वगैरह-वगैरह। सच कहूं तो? इंतज़ार करने के सिवा कोई चारा नहीं।
एक बात और – ऐसे मामलों में सच सामने आता जरूर है, लेकिन कितनी देर से? वो अलग सवाल है।
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com