“प्राडा vs कोल्हापुरी चप्पल: 1 लाख रुपए का विवाद! खड़गे ने क्या कहा? पूरी कहानी जानें”

प्राडा vs कोल्हापुरी चप्पल: 1 लाख का सवाल! खड़गे से लेकर ट्विटर तक, क्या है पूरा माजरा?

अरे भई, सुनो जरा! विदेशी ब्रांड्स की ये हिमाकत देखिए – प्राडा ने हमारी प्यारी कोल्हापुरी चप्पल की ऐसी-तैसी कर दी है। सच कहूं तो, ये कोई नई बात नहीं। पहले भी तो विदेशी कंपनियां हमारी चीजें उठाकर ब्रांडेड बेचती रही हैं। लेकिन इस बार बात 1 लाख रुपए वाली चप्पल की है! सोचो जरा, जो चप्पल हमारे यहाँ 500-1000 में मिल जाती है, उसी की ‘इंटरनेशनल वर्जन’ 100 गुना महंगी? है न मजेदार?

बात सिर्फ चप्पल की नहीं, हमारी पहचान की है

असल में देखा जाए तो, कोल्हापुरी चप्पल सिर्फ फुटवियर नहीं है। ये तो हमारे दादा-परदादा का हुनर है जिसे 2019 में GI टैग मिला। और अब प्राडा वाले? उन्होंने मशीन से बनाकर सिर्फ अपना लोगो चिपका दिया! ईमानदारी से कहूं तो, अगर इतनी ही शौक थी तो सीधे कोल्हापुर के कारीगरों से पार्टनरशिप कर लेते। लेकिन नहीं… उन्हें तो ‘इंस्पिरेशन’ लेना था (वो भी बिना क्रेडिट दिए)।

राजनीति भी हो गई शामिल – क्या होगा अब?

मामला गरमाने पर हमारे नेता भी पीछे कहाँ रहने वाले थे! संजय राउत से लेकर प्रियंका गांधी तक सबने अपनी-अपनी राय रख दी। और सच कहूं? अब तो कोल्हापुर के कारीगरों ने लीगल नोटिस भेज दिया है। पर प्राडा की तरफ से चुप्पी… शायद सोच रहे होंगे कि ‘ये भारतीय लोग बात-बात पर नाराज क्यों हो जाते हैं?’

कारीगरों का दर्द समझो तो – “साहब, हम पूरी रात जागकर हाथ से चप्पल बनाते हैं, और ये लोग मशीन से छापकर हमारी रोटी छीन रहे हैं।” वहीं ट्विटर पर #BoycottPrada ट्रेंड कर रहा है। पर सच पूछो तो, जिनके पास 1 लाख रुपए हैं, क्या वो वैसे भी कोल्हापुरी चप्पल खरीदते?

अब आगे क्या? 3 संभावनाएं

तो अब सवाल यह है कि ये ड्रामा कहाँ जाकर रुकेगा? मेरे हिसाब से:

1. या तो प्राडा माफी मांगेगी (और शायद कारीगरों को कुछ रॉयल्टी दे दे)

2. या फिर कोर्ट-कचहरी का लंबा चक्कर चलेगा

3. सबसे मजेदार – भारत सरकार GI टैग के नियम और सख्त कर दे!

मेरी निजी राय…

देखिए, मैं कोई एक्सपर्ट तो नहीं। लेकिन इतना जरूर कहूंगा – अगर प्राडा को हमारी कल्चरल हेरिटेज इतनी पसंद है, तो कम से कम क्रेडिट तो दे दो भई! हमारे यहाँ का एक किस्सा याद आता है – जैसे कोई बच्चा पड़ोसी के आम तोड़े, और कहे कि “अंकल, मैंने नई वैरायटी डेवलप की है!”

खैर… अब देखते हैं कि ये स्टोरी किस प्लॉट ट्विस्ट के साथ आगे बढ़ती है। फिलहाल तो मेरी सलाह यही है – अगर कोल्हापुरी चप्पल खरीदनी है, तो सीधे कारीगरों से लो। कम से कम पैसा तो उन्हीं के घर जाएगा न?

यह भी पढ़ें:

प्राडा vs कोल्हापुरी चप्पल – 1 लाख के इस झगड़े में क्या है दम?

1. भई, ये प्राडा और कोल्हापुरी चप्पल वाला झगड़ा है क्या?

कहानी तो तब शुरू हुई जब महाराष्ट्र के एक मंत्री महोदय ने 1 लाख की प्राडा चप्पल पहन ली। सोचिए, जबकि उन्हें तो कोल्हापुरी चप्पल पहनने की सलाह दी गई थी! बस फिर क्या था, राजनीति का पूरा मैदान गरमा गया। और हमारे नेताओं को तो बस ऐसे मौके चाहिए न?

2. खड़गे साहब ने इस पर क्या रिएक्ट किया?

अरे, केंद्रीय मंत्री खड़गे तो मौके की नज़ाकत समझते हैं! उन्होंने ठीक ही कहा – “भारतीय उत्पादों को प्राथमिकता देनी चाहिए।” सच कहूँ तो, कोल्हापुरी चप्पल जैसे स्वदेशी ब्रांड्स को सपोर्ट करने की बात में दम तो है। लेकिन सवाल यह है कि क्या हम सच में ऐसा करते हैं?

3. असल में कोल्हापुरी चप्पल की कीमत क्या होती है?

देखिए, कोल्हापुरी चप्पल की बात करें तो ये 500 रुपए से शुरू होकर 5000 रुपए तक मिल जाती हैं। वहीं दूसरी तरफ प्राडा चप्पल्स… अरे भई! ये तो 50,000 रुपए के चेक से शुरू होकर 1 लाख तक पहुँच जाती हैं। अब आप ही बताइए, क्या सच में चप्पल में इतना फर्क होता है? या फिर…?

4. क्या ये सिर्फ चप्पलों की लड़ाई है या कुछ और?

नहीं यार, ये तो बस टिप ऑफ द आइसबर्ग है। असल में ये ‘स्वदेशी vs विदेशी ब्रांड्स’ की बहस का नया अध्याय बन गया है। और हमारे देश की राजनीति में तो ऐसे विषयों को लेकर हमेशा ही धमाल रहता है। सच कहूँ तो, ये चप्पलें अब सियासत की सीढ़ी बन गई हैं!

एक दिलचस्प बात – क्या आपने कभी सोचा कि अगर ये चप्पलें बोल सकतीं, तो क्या कहतीं? शायद… “हम तो बेचारी चप्पलें हैं, हमें तो बस पहनने वालों के पैरों की धूल बनना आता है!”

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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