ऑपरेशन सिंदूर: क्या वाकई पाकिस्तान को मिला ‘सबक’? प्रियंका का सवाल, सियासी बवाल!
दिल्ली। बुधवार को लोकसभा में हुई वो बहस… जिसने एक बार फिर साबित कर दिया कि सियासत में ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ सिर्फ़ बॉर्डर पर नहीं, संसद में भी होती है! कांग्रेस की प्रियंका गांधी ने सरकार पर सीधा निशाना साधते हुए पूछा – “अगर ऑपरेशन सिंदूर का मकसद पाकिस्तान को सबक सिखाना था, तो क्या वो हासिल हुआ?” और फिर… बस हो गया बवाल! उन्होंने पाकिस्तानी जनरल बाजवा के अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ लंच की तस्वीर को सबूत के तौर पर पेश किया। सवाल वाजिब है – क्या हम कूटनीति में पिछड़ गए?
याद कीजिए वो 2019 का माहौल…
पुलवामा हमले के बाद का वो गुस्सा… जब बालाकोट में हुए ऑपरेशन सिंदूर ने पूरे देश को गर्व से भर दिया था। सरकार ने कहा था – “ये सिर्फ़ सर्जिकल स्ट्राइक नहीं, एक मैसेज है!” लेकिन क्या ये मैसेज पाकिस्तान तक पहुँचा? यहीं तो विवाद शुरू होता है। एक तरफ़ सैन्य कार्रवाई की तारीफ़, तो दूसरी तरफ़ ये सवाल कि क्या सिर्फ़ बम गिराने से आतंकवाद ख़त्म हो जाता है? ईमानदारी से कहूँ तो… मामला उतना सिंपल नहीं है जितना लगता है।
प्रियंका का पॉइंट: क्या हम कूटनीति में फेल हुए?
प्रियंका का तर्क साफ़ था – “हमने सैन्य ताकत तो दिखा दी, लेकिन डिप्लोमैसी में पिछड़ गए।” और सच कहूँ तो… उनकी बात में दम नज़र आता है। जब पाकिस्तानी जनरल व्हाइट हाउस में लंच कर रहा हो, तो क्या ये संकेत नहीं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी इमेज अभी भी इतनी ख़राब नहीं हुई? यहाँ सवाल सेना की क्षमता का नहीं, बल्कि हमारी विदेश नीति की सूझ-बूझ का है।
राजनीति का पारा चढ़ा: किसने क्या उछाला?
प्रियंका के बयान के बाद तो जैसे सियासी तापमान ही बढ़ गया। भाजपा वाले चिल्ला रहे हैं – “ये सेना का अपमान है!” वहीं कांग्रेस के लोग झट से जवाब दे रहे हैं – “सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ सकते।” असल में देखा जाए तो… दोनों पक्षों के अपने-अपने एजेंडे हैं। लेकिन एक बात तो तय है – सैन्य विशेषज्ञ भी मानते हैं कि ऑपरेशन के बाद हमने डिप्लोमैटिक फ्रंट पर कुछ ज़्यादा ही ढील दे दी।
अब आगे क्या? सरकार के सामने बड़ी चुनौती
तो अब सवाल ये है कि सरकार क्या करेगी? क्योंकि अब बात सिर्फ़ पाकिस्तान तक सीमित नहीं रही। पूरी दुनिया की नज़रें हम पर हैं। क्या हम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को आइसोलेट कर पाएंगे? क्या विदेश मंत्रालय वो कर पाएगा जो वायुसेना ने किया? ये सवाल अभी बाकी हैं… और जवाब? वो तो वक्त ही बताएगा।
बात समझिए: प्रियंका गांधी ने जो सवाल उठाए हैं, वो सिर्फ़ एक राजनीतिक बयान से कहीं आगे की बात है। ये भारत की सुरक्षा नीति पर एक गंभीर बहस है। और हाँ… अगले कुछ दिनों में संसद में ये मुद्दा ज़ोरों से उछलेगा, ये तय है। क्योंकि जब तक पाकिस्तान का सवाल है… बहस तो होनी ही है!
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प्रियंका गांधी का लोकसभा वाला बयान… सुनकर फिर वही सवाल दिमाग में कौंध गया – क्या ऑपरेशन सिंदूर वाकई अपने मकसद में कामयाब हुआ? या फिर यह सिर्फ एक और ‘दिखावटी’ योजना बनकर रह गई है? सच तो यह है कि महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की बात करना आसान है, लेकिन जमीन पर असल काम कितना हो पा रहा है?
हालांकि, सरकार अपनी तरफ से दावे करती रहती है। पर जनता क्या सोचती है? यही तो असली सवाल है। और यही तय करेगा कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाया जाता है।
एक बात तो तय है – बदलाव की गुंजाइश अभी बाकी है। क्या आपको नहीं लगता? खैर, इस पर बाद में और बात करेंगे। फिलहाल तो आप हमारे साथ बने रहिए – क्योंकि यह चर्चा अभी जारी रहेगी!
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Operation Sindhu और प्रियंका गांधी का बयान – वो सवाल जो आप भी पूछ रहे हैं
1. Operation Sindhu आखिर है क्या? और असल मकसद क्या था?
देखिए, Operation Sindhu भारतीय सेना का एक बड़ा अभियान था। सीधे शब्दों में कहें तो, इसका मकसद था हमारी सुरक्षा को और मजबूत करना। पर सवाल यह है कि क्या यह मकसद पूरा हुआ? क्योंकि अब तक इस पर बहस थमने का नाम नहीं ले रही।
2. प्रियंका गांधी ने लोकसभा में क्या कहा जो सबकी जुबान पर है?
असल में हुआ यूं कि प्रियंका गांधी ने सदन में एक ऐसा बयान दिया जिसने सबको हैरान कर दिया। उन्होंने सीधे-सीधे कहा कि Operation Sindhu अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाया। और देखते ही देखते यह बयान social media पर आग की तरह फैल गया। राजनीति की दुनिया में तूफान आ गया, है न?
3. Operation Sindhu पर इतना विवाद क्यों?
इसे ऐसे समझिए – एक तरफ सरकार और सेना इसे पूरी तरह सफल बता रही है। लेकिन दूसरी तरफ, कई लोगों को लगता है कि असली नतीजे वैसे नहीं मिले जैसा वादा किया गया था। और अब प्रियंका जी के बयान ने तो इस आग में घी का काम किया है। सच कहूं तो, यह विवाद अभी और गहराएगा।
4. आम जनता पर इसका क्या असर पड़ेगा?
अब यहां बात दिलचस्प हो जाती है। इस पूरे मामले से लोग दो खेमों में बंट सकते हैं – सरकार के समर्थक और विरोधी। और हां, यह मुद्दा आने वाले elections में भी भारी पड़ सकता है। क्योंकि जब security और nationalism की बात आती है, तो emotions high हो जाते हैं। सोचिए, क्या यह एक नया political weapon बन जाएगा?
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com