मानसून सत्र में राहुल गांधी को बोलने नहीं दिया गया – क्या यह लोकतंत्र पर सवाल है?
क्या आपने कभी सोचा है कि संसद में विपक्ष की आवाज़ दबाने का मतलब क्या होता है? बीते मानसून सत्र में यही सवाल फिर से उठ खड़ा हुआ, जब राहुल गांधी को लोकसभा में बोलने से रोक दिया गया। और उन्होंने तो सीधे PM मोदी पर निशाना साधा – कहा कि सरकार के लोगों को तो खुलकर बोलने दिया जाता है, लेकिन विपक्षी नेताओं की आवाज़ कुचली जा रही है। उनका उदाहरण था रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह – जिन्हें बोलने दिया गया, जबकि राहुल को चुप करा दिया गया। सच कहूं तो, यह कोई पहली बार नहीं है। लेकिन इस बार मामला गंभीर है।
असल में देखा जाए तो यह कोई अचानक की घटना नहीं। पिछले कई सत्रों से विपक्ष यही शिकायत करता आया है कि उन्हें बोलने का मौका ही नहीं मिलता। कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों का मानना है कि यह कोई संयोग नहीं, बल्कि एक सोची-समझी strategy है। और यह सिर्फ नियम-कायदे की बात नहीं – बल्कि लोकतंत्र की मूल भावना पर सीधा प्रहार है। राहुल पहले भी कई बार इस तरह के विवादों में घिर चुके हैं, लेकिन अब तो वे विपक्ष के नेता हैं। यानी स्थिति और गंभीर।
तो फिर क्या हुआ था असल में? राहुल ने औपचारिक तौर पर बोलने की अनुमति मांगी थी। लेकिन स्पीकर ओम बिरला ने मना कर दिया। और फिर शुरू हुआ तू-तू मैं-मैं। राहुल का कहना है कि सरकार healthy debate को दबाना चाहती है। सत्ता पक्ष का जवाब? “नियम तो नियम होते हैं भाई!” उनका कहना है कि विपक्ष हमेशा नियम तोड़ने की कोशिश करता है। एक तरफ तो लोकतंत्र की बातें, दूसरी तरफ नियमों का पालन। कहां है सच्चाई? शायद बीच में कहीं।
राजनीतिक गलियारों में इस पर क्या राय है? कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे तो इसे सीधे तौर पर “लोकतंत्र पर हमला” बता रहे हैं। भाजपा के प्रह्लाद जोशी? उनका कहना है कि राहुल को तो नियमों से ही एलर्जी है! मजे की बात यह कि TMC, समाजवादी पार्टी और Left पार्टियों ने भी कांग्रेस का साथ दिया। यानी अब यह सिर्फ कांग्रेस बनाम भाजपा का मामला नहीं रहा। बात बन गई है विपक्ष बनाम सरकार की।
तो अब क्या? राजनीतिक experts की मानें तो यह मुद्दा संसद से निकलकर सड़कों और social media पर आ सकता है। विपक्ष इसे 2024 के चुनावों में एक बड़ा political issue बना सकता है – “लोकतंत्र खतरे में” वाली थ्योरी के साथ। हालांकि, सरकार के पास भी अपने तर्क हैं। सच तो यह है कि यह सिर्फ एक और chapter है सरकार-विपक्ष के बढ़ते तनाव का।
अंत में एक सवाल – क्या हमारी संसद वाकई में वह जगह रह गई है जहां हर पक्ष को बराबर का मौका मिलना चाहिए? या फिर यह सिर्फ नियमों का खेल बनकर रह गया है? आने वाले दिन बताएंगे कि यह गतिरोध टूटता है या और गहराता है। एक बात तो तय है – यह बहस अभी खत्म होने वाली नहीं।
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राहुल गांधी पर बोलने की रोक और मोदी सरकार पर आरोप: जानिए पूरा मामला
1. आखिर क्यों रोका गया राहुल गांधी को मानसून सत्र में बोलने से?
देखिए, मामला कुछ ऐसा है – राहुल गांधी ने House के rules को तोड़ा। बिना permission के कुछ ऐसी बातें कह दीं जो विवाद खड़ा करने वाली थीं। और स्पीकर साहब को यह बिल्कुल पसंद नहीं आया। तो उन्होंने सीधा बोलने पर रोक लगा दी। सच कहूं तो Parliament में ऐसा होना नया नहीं, लेकिन जब बात राहुल गांधी जैसे बड़े नेता की हो तो मामला गरमा जाता है ना?
2. मोदी जी पर क्या-क्या आरोप लगे? असलियत क्या है?
अब यहां बात दिलचस्प हो जाती है। राहुल जी ने सीधे-सीधे कह दिया कि मोदी सरकार opposition को दबा रही है। उनका कहना है कि यह तरीका democracy के लिए ठीक नहीं, बल्कि “dictatorship” जैसा है। पर सवाल यह है कि क्या सच में ऐसा है? क्योंकि rules तोड़ने पर तो किसी को भी रोका जा सकता है, है ना?
3. क्या सच में पहली बार हुआ है ऐसा? या फिर…
अरे भई नहीं! ऐसा तो पहले भी होता आया है। कभी rules तोड़ने पर, कभी हंगामा करने पर – opposition leaders को रोका जाता रहा है। लेकिन इस बार मीडिया में जोरदार चर्चा हो रही है। शायद इसलिए क्योंकि यह मामला राहुल गांधी से जुड़ा है। वैसे भी, आजकल तो हर छोटी-बड़ी बात trending हो जाती है!
4. राजनीति पर क्या पड़ेगा असर? क्या बदलेगा?
देखिए, एक तरफ तो Congress और दूसरी opposition parties इसे बड़ा मुद्दा बना सकती हैं। “Democracy खतरे में” वाली बातें चलेंगी। लेकिन दूसरी तरफ, सरकार भी rules के पालन की बात करेगी। असल में यह एक ऐसा मामला है जो political temperature को और बढ़ा सकता है। आने वाले दिनों में Parliament में और तीखी बहस देखने को मिल सकती है। कुल मिलाकर… interesting times ahead!
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com