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“राहुल गांधी vs अंबेडकर: संविधान की बहस में क्यों गरमा रही है सियासत?”

राहुल गांधी vs अंबेडकर: संविधान की बहस में क्यों गरमा रही है सियासत?

अरे भाई, दिल्ली से लेकर मुंबई तक राजनीति की चाय की दुकानों में आजकल एक ही चर्चा है। कांग्रेस के नेता उदित राज ने तो बवाल मचा दिया है! उन्होंने राहुल गांधी को संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर के बराबर बैठा दिया। सच कहूं तो, ये बयान ऐसे समय में आया है जब संविधान को लेकर पहले से ही गर्मा-गर्म बहस चल रही है। और तो और, शिवसेना (UBT) की मनीषा कायंदे ने तो सीधे राहुल जी पर निशाना साधते हुए कह दिया कि उन्हें संविधान की ABC भी नहीं आती। बस फिर क्या था, सियासी गलियारों में तूफान आ गया!

बयान की पृष्ठभूमि: क्या है असली मामला?

देखिए, ये कोई एकदम से उठा हुआ मुद्दा नहीं है। पिछले कुछ महीनों से राहुल गांधी लगभग हर भाषण में संविधान की रक्षा की बात करते नजर आ रहे हैं। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ हो या संसद, उनका एक ही राग अलापना – “current सरकार संवैधानिक मूल्यों को तोड़ रही है”। अब सवाल यह है कि क्या ये सचमुच में चिंता का विषय है या फिर 2024 के general elections से पहले vote bank की राजनीति? कांग्रेस की चाल साफ दिख रही है – OBC और दलित voters को संविधान और सामाजिक न्याय के नाम पर अपनी ओर खींचना। चालाकी भरी बात है, है न?

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: किसने क्या कहा?

मजे की बात ये रही कि सबसे तीखी प्रतिक्रिया शिवसेना (UBT) की मनीषा कायंदे ने दी। उनका ट्वीट तो वायरल हो गया – “राहुल गांधी और अंबेडकर? भईया, ये कैसी तुलना?” सच बोलूं तो उन्होंने सीधे-सीधे कह दिया कि ये दलित समाज की भावनाओं से खिलवाड़ है। वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस नेता चुपके-चुपके राहुल की तारीफ करते नजर आए। और भाजपा? उन्होंने तो मौके का फायदा उठाते हुए इसे सीधे “vote bank politics” का नाम दे दिया। एक तरफ तो ये सारा विवाद है, दूसरी तरफ 2024 की तैयारियां। दिलचस्प नहीं?

दलित नेताओं की राय: क्या कहता है ग्राउंड?

असल में गौर करने वाली बात ये है कि दलित नेताओं की प्रतिक्रियाएं बंटी हुई हैं। BAMCEF के एक नेता ने तो इसे सीधे “नाटक” बता दिया। वहीं कुछ का कहना है कि संविधान की बात करना किसी का भी हक है। पर सवाल यहीं खड़ा होता है – क्या राहुल गांधी वाकई अंबेडकर के स्तर पर खड़े हो सकते हैं? intellectual circles में तो इस पर जमकर बहस छिड़ गई है। कोई कह रहा है कि ये बिल्कुल गलत है, तो कोई कह रहा है कि बात तो सही है। कन्फ्यूजन की स्थिति है, है न?

आगे क्या? राजनीति का नया अध्याय?

अब देखिए न, जैसे-जैसे election नजदीक आ रहे हैं, ये विवाद और गहरा सकता है। political analysts की मानें तो इसका सबसे ज्यादा असर OBC और दलित voters पर पड़ेगा। और तो और, कुछ संगठन तो उदित राज के खिलाफ legal action की भी बात कर रहे हैं। एक बात तो तय है – ये संविधान वाली बहस अब एक बड़े political storm में बदल चुकी है। opposition unity के लिए ये नया मुद्दा बन सकता है। कुल मिलाकर, आने वाले दिनों में और ज्यादा ड्रामा देखने को मिलेगा। तैयार रहिए!

राहुल गांधी और डॉ. अंबेडकर को लेकर चल रही यह सियासी बहस… क्या आपने गौर किया कि यह सिर्फ दो नेताओं की बहस नहीं, बल्कि हमारे संविधान की ज़िंदा ताकत को दिखाती है? Congress वाले कह रहे हैं कि वे संविधान के मूल्यों के असली रखवाले हैं, वहीं BJP वाले भी पीछे कहाँ हैं – अपनी दावेदारी जता रहे हैं। लेकिन सच ये है कि यह बहस सियासी रंग में रंगी हुई है, पर असल में ये हम सबके लिए एक सोचने का मौका है।

तो सवाल ये उठता है – क्या संविधान सिर्फ़ किसी एक पार्टी की जागीर है? बिल्कुल नहीं! ये तो हम सबका साझा विरासत है, जैसे कि घर का वो पुराना पीपल का पेड़ जिसकी छाँव में सब बैठते हैं।

अब बात करें मूल्यों की… Congress हो या BJP, दोनों ही दावा करते हैं कि वे संविधान के रखवाले हैं। पर सच क्या है? ईमानदारी से कहूँ तो – जब तक हम आम लोग इसकी अहमियत नहीं समझेंगे, तब तक ये बहसें सिर्फ़ TV डिबेट्स तक सीमित रहेंगी।

एक बात और – क्या आपने कभी सोचा कि संविधान की रक्षा का मतलब सिर्फ़ बड़े-बड़े भाषण देना है? असल में तो ये शुरुआत होती है हमारे रोज़मर्रा के फैसलों से। जैसे कि…

• किसी के अधिकारों का सम्मान करना
• भेदभाव न करना
• लोकतंत्र की इस नींव को मज़बूत करना

सोचिए, अगर हर नागरिक ये छोटे-छोटे कदम उठाए, तो फिर किसी को ‘संविधान बचाओ’ के नारे लगाने की ज़रूरत ही क्या पड़ेगी?

आखिर में एक बात – राजनीति चाहे जितना शोर मचाए, संविधान तो हम सबके हाथ में है। बस ज़रूरत है तो सिर्फ़ इसकी असली ताकत को पहचानने की। क्या आप तैयार हैं?

राहुल गांधी vs अंबेडकर: संविधान को लेकर चल रही बहस की पूरी कहानी

ये बहस चल क्यों रही है? असल मामला क्या है?

देखिए, मामला सीधा-साधा है – संविधान को कैसे समझा जाए। राहुल गांधी इसे सामाजिक न्याय का हथियार मानते हैं, वहीं कुछ लोग अंबेडकर के विचारों को… थोड़ा अलग तरीके से पेश कर रहे हैं। सच कहूं तो, ये बहस सिर्फ विचारों की नहीं, बल्कि political दाव-पेच की भी है। दोनों तरफ के अपने-अपने हित हैं, है न?

राहुल गांधी असल में क्या कहना चाहते हैं?

अब यहां दिलचस्प बात ये है कि राहुल जी का स्टैंड काफी साफ है। उनका कहना है कि संविधान सबको बराबरी का हक देता है – और इसे सिर्फ किताबी बात नहीं, बल्कि असल जिंदगी में लागू होना चाहिए। वो अंबेडकर के सपने को आगे बढ़ाने की बात करते हैं। लेकिन यहां मुश्किल ये है कि कुछ लोग इन बातों को मोड़-तोड़कर पेश कर रहे हैं। स्थिति गर्म है, समझ रहे हो न?

क्या ये बहस देश की राजनीति को बदल देगी?

सुनिए, जब बात संविधान और सामाजिक न्याय की आती है, तो emotions हावी हो ही जाते हैं। ये बहस निश्चित तौर पर असर डालेगी – अगर इसे संभाला नहीं गया, तो स्थिति और बिगड़ सकती है। Political polarization? हां, इसका खतरा तो है ही। पर सवाल ये है कि क्या हमारे नेता इस मौके को जनता को जोड़ने के बजाय तोड़ने के लिए इस्तेमाल करेंगे?

अंबेडकर के विचारों को लेकर इतना विवाद क्यों?

यहां दो अलग-अलग नजरिए हैं – एक तरफ वो लोग हैं जो अंबेडकर को सामाजिक बदलाव का प्रतीक मानते हैं। दूसरी तरफ वो हैं जो संविधान को सख्ती से, शब्दशः लागू करने की बात करते हैं। मुख्य मुद्दा? Interpretation का फर्क। जैसे एक ही किताब को दो लोग अलग-अलग तरह से पढ़ लें। है न दिलचस्प बात?

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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