राहुल गांधी: बार-बार विवादों में क्यों उलझते हैं? पर्रिकर से जेटली तक, एक ऐसा सच जो सब जानते हैं!
अरे भई, राहुल गांधी फिर से सुर्खियों में हैं। और वो भी किस वजह से? अपने ही उन बयानों की वजह से जिन पर अक्सर सवाल उठते रहते हैं। इस बार पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और स्वर्गीय अरुण जेटली को लेकर उनके कुछ दावों ने राजनीति की चाय की दुकानों को गर्म कर दिया है। सच कहूँ तो, ये कोई नई बात नहीं। 2019 के “चौकीदार चोर है” वाले बयान से लेकर आज तक, राहुल के मुंह से निकले शब्द अक्सर आग लगा देते हैं। पर सवाल यह है कि क्या ये सब सोच-समझकर किया जाता है या फिर…?
इस बार तो मामला और भी गरम है। राफेल डील और GST जैसे मुद्दों को लेकर राहुल ने क्या-क्या नहीं कह डाला! उनका दावा है कि पर्रिकर ने राफेल डील को लेकर “गुस्से में इस्तीफा दिया था”। और जेटली ने GST को “असफल” माना था। लेकिन यहाँ दिक्कत क्या है? दिक्कत ये है कि इन दोनों नेताओं के परिवार पहले ही ऐसे दावों को झूठ बता चुके हैं। पर्रिकर के परिवार ने तो इसे “संवेदनहीन” तक कहा था। तो फिर ये नया ड्रामा क्यों?
BJP की प्रतिक्रिया? जैसी कि उम्मीद थी – तीखी। अनुराग ठाकुर ने तो सीधे राहुल को “झूठ फैलाने वाला” कह डाला। और BJP के किसी प्रवक्ता ने क्या कहा? “राहुल गांधी इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं।” ओहो! पर दूसरी तरफ, कांग्रेस वालों ने राहुल का पूरा साथ दिया। प्रियंका गांधी ने तो ट्वीट करके साफ कह दिया – “सरकार जनता को गुमराह कर रही है।” अब आप ही बताइए, इनमें से कौन सच बोल रहा है?
राजनीतिक पंडितों की राय? वो तो यही कह रहे हैं कि ये विवाद कांग्रेस को भारी पड़ सकता है। खासकर तब, जब BJP इस मौके को हाथ से जाने नहीं देगी। और हाँ, कानूनी नोटिस का खतरा भी तो है! पर्रिकर और जेटली परिवार अब तक चुप हैं, लेकिन कब तक? सोशल मीडिया पर तो #राहुल_भटक_गया ट्रेंड कर ही रहा है। कुछ लोग उनका साथ दे रहे हैं, तो कुछ इसे उनकी राजनीतिक हार का संकेत मान रहे हैं। मजेदार बात ये है कि दोनों तरफ के लोगों के तर्क सुनने लायक हैं।
तो अंत में सवाल यही रह जाता है – आखिर राहुल गांधी ऐसे विवादों में बार-बार क्यों फंसते हैं? क्या ये कोई स्ट्रेटेजी है? या फिर वाकई उनकी जुबान पर काबू नहीं? सच तो ये है कि जब तक इन सवालों के जवाब नहीं मिलते, ये सिलसिला चलता रहेगा। और हमें नए-नए ट्विस्ट देखने को मिलते रहेंगे। है ना?
राहुल गांधी के विवाद: क्या सच में इतना बड़ा मुद्दा है या सिर्फ मीडिया का शोर?
पर्रिकर और जेटली पर राहुल ने क्या कहा था? असल बात क्या थी?
याद है वो मामला जब राहुल ने मनोहर पर्रिकर के बारे में कहा था कि “गोवा के सीएम होकर भी दिल्ली में बैठे हैं”? सच कहूं तो, ये बात तकनीकी रूप से सही थी – पर्रिकर वास्तव में दिल्ली में रह रहे थे। लेकिन राजनीति में तो बातें context में ली जाती हैं न? वहीं अरुण जेटली को ‘सिर्फ एक वकील’ कहना… देखिए, ये वही राहुल हैं जो सीधे-सीधे बोल देते हैं। कभी-कभी ज़रूरत से ज़्यादा सीधे।
क्या राहुल की जुबान ने कांग्रेस को पीछे धकेला है?
मज़ेदार बात ये है कि राहुल के बयानों पर कांग्रेस को अक्सर damage control करना पड़ता है। Political experts की मानें तो ये उनकी ‘no filter’ policy कभी-कभी पार्टी के लिए headache बन जाती है। पर उनके युवा supporters इसे अलग नज़रिए से देखते हैं – “कम से कम झूठ तो नहीं बोलते” वाले अंदाज़ में। सच्चाई शायद बीच में कहीं है।
राहुल के ‘गफ़’ क्यों बन जाते हैं viral? सिर्फ़ उनके साथ ही क्यों?
एक तरफ़ तो हम सब चाहते हैं कि नेता साफ़-साफ़ बोलें, दूसरी तरफ़ जब कोई ऐसा करता है तो उसे ‘गफ़’ कहकर ट्रोल कर देते हैं। Ironical नहीं? राहुल के साथ यही होता है – वो political correctness के चक्कर में नहीं पड़ते, और बस! ट्विटर पर ट्रेंडिंग। असल में, हमारी मीडिया को controversy चाहिए, चाहे वो किसी भी पार्टी की हो।
क्या ये सब calculated move है? या सच में इतने स्पष्टवादी?
कुछ लोग कहेंगे कि ये सब planned है – BJP को घेरने की strategy। पर सच पूछो तो, अगर strategy होती तो शायद इतने बार पार्टी को माफ़ी माँगनी न पड़ती! मेरा personal take? राहुल शायद सचमुच believe करते हैं कि सीधी बात करनी चाहिए। चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो। पर राजनीति में क्या सच्चाई हमेशा best policy होती है? ये तो वक्त ही बताएगा।
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com