राहुल गांधी का ‘क्रिकेट’ वाला राजनीतिक खेल: कांग्रेस की हार का सच क्या है?

राहुल गांधी का ‘क्रिकेट’ वाला बयान: सच में ये क्या game है?

अरे भाई, राजनीति तो हमेशा से ही एक तमाशा रही है – बयानों की बारिश, रूपकों की बौछार! लेकिन राहुल गांधी का ये नया “क्रिकेट मैच” वाला बयान… सच कहूं तो मुझे भी थोड़ा अजीब लगा। भाषण देते हुए उन्होंने कहा, “चुनाव तो क्रिकेट मैच की तरह है, कभी जीत कभी हार।” सुनकर लगा जैसे पूरी राजनीति ही एक बड़ा सा playground बन गया हो! और तो और, ये बयान सुनते ही विपक्ष के नेताओं को मौका मिल गया टांग खींचने का। कुछ तो इसे “हार का बहाना” बता रहे हैं।

असल में बात समझनी हो तो… देखिए ना, पिछले कुछ सालों में कांग्रेस का हाल बेहाल रहा है। चुनाव पर चुनाव हारते जा रहे हैं। मैंने तो कई बार सोचा – यार ये पार्टी है या कोई लगातार फेल होने वाला स्टूडेंट? राहुल जी भी कई बार पार्टी की internal कमजोरियों पर सवाल उठा चुके हैं। शायद ये बयान उसी frustration का नतीजा है।

लेकिन सबसे मजेदार तो तब हुआ जब भाजपा वालों ने इसे “जिम्मेदारी से भागना” बता दिया! और हां, कांग्रेस के अपने ही कुछ बड़े नेताओं ने नाक-भौं सिकोड़ ली। सच पूछो तो ये तो वैसा ही हुआ जैसे घर में लड़ाई हो और पड़ोसी खिड़की से झांक रहे हों। भाजपा का तो मानो दिवाला निकल गया हो – “देखो देखो, ये तो हार मान चुके हैं!” वहीं कांग्रेस के कुछ लोग बचाव में लगे – “अरे यार, सामान्य सी बात थी, इसे इतना बड़ा क्यों बना रहे हो?”

अब analysts की बात करें तो… उनका कहना है कि कांग्रेस को ground reality पर ध्यान देना चाहिए। ये सब क्रिकेट-विकेट की बातें छोड़कर असली मुद्दों पर focus करो। leadership crisis है, communication strategy खराब है – ये सब ठीक करो। पर नहीं, हमें तो रूपकों में बात करनी है! एकदम स्कूल टीचर वाली बात। “बच्चों, जिंदगी एक क्रिकेट मैच की तरह है…” वाला फिलॉसफी!

तो अब सवाल ये है कि आगे क्या? short term में तो कांग्रेस के अंदर ही बहस छिड़ जाएगी। भाजपा वाले तो इसका पूरा-पूरा फायदा उठाएंगे – ये तो तय है। long term में… अगर कांग्रेस को सच में वापस आना है तो उन्हें नई strategy बनानी होगी। voters का trust जीतना होगा। पर क्या वो ऐसा कर पाएंगे? ईमानदारी से कहूं तो… शक है।

आखिर में बस इतना कहूंगा – राहुल जी का ये बयान तो एक mirror की तरह है जो कांग्रेस की हालत दिखा रहा है। अब ये पार्टी पर निर्भर करता है कि वो इस mirror को ignore करती है या फिर अपनी सूरत सुधारने की कोशिश करती है। पर जैसा चल रहा है… लगता तो नहीं कि जल्दी कुछ बदलेगा। है न?

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राहुल गांधी का ‘क्रिकेट’ वाला राजनीतिक खेल: क्या यही है असली मैसेज?

1. राहुल गांधी ने ‘क्रिकेट’ का उदाहरण देकर क्या कहना चाहा?

देखिए, राजनीति और क्रिकेट में कितनी अजीब समानता है न? राहुल गांधी ने बिल्कुल यही बात पकड़ी। उनका कहना था कि जैसे क्रिकेट में कोई टीम हारती-जीतती रहती है, वैसे ही राजनीति में भी यही चक्र चलता रहता है। पर सवाल यह है – क्या यह सिर्फ एक साधारण उदाहरण था या इसमें कोई गहरा मतलब छुपा हुआ है? मेरे ख्याल से, वे कांग्रेस के हालात को समझाने की कोशिश कर रहे थे। बिल्कुल वैसे ही जैसे हम सब अपने दोस्तों को क्रिकेट के उदाहरण देकर जिंदगी की बातें समझाते हैं।

2. क्या कांग्रेस की हार का कारण सिर्फ राहुल गांधी की रणनीति है?

अरे भई, इतना सरल तो मामला है नहीं! यह ऐसा ही है जैसे किसी मैच में सिर्फ कप्तान को हार का जिम्मेदार ठहरा दिया जाए। सच तो यह है कि कांग्रेस की हार के पीछे कई वजहें हैं – पार्टी के भीतर की गड़बड़ियाँ, BJP की चालाक रणनीति, और हाँ, थोड़ा-बहुत राहुल गांधी का भी हाथ है। पर सब कुछ एक ही व्यक्ति के सिर मढ़ देना… यह तो नहीं होना चाहिए न?

3. क्या राहुल गांधी का यह बयान कांग्रेस के लिए नुकसानदायक है?

ईमानदारी से कहूँ तो… यह दोनों तरह से देखा जा सकता है। एक तरफ तो लोग कहेंगे कि “अरे, हार को तो हार मानो, उसे नॉर्मलाइज मत करो!” वहीं दूसरी तरफ, कुछ लोग इसे सच्चाई का सामना करने वाला बयान भी मान सकते हैं। मेरा मानना है? अगर कांग्रेस इससे सीख लेकर आगे बढ़े, तो यह उनके लिए फायदेमंद हो सकता है। पर हाँ, risk तो है ही।

4. क्या इस बयान से कांग्रेस के कैडर पर कोई असर पड़ेगा?

सुनिए, जब कोई बड़ा बयान आता है तो कुछ लोग निराश होते ही हैं। खासकर वो जो पार्टी के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। पर यहाँ असली मसला है damage control का। अगर पार्टी नेतृत्व इस बात को सही तरीके से हैंडल करे, कार्यकर्ताओं को समझाए… तो देखते-देखते यही बयान एक नई उम्मीद का स्रोत बन सकता है। क्योंकि राजनीति में, जैसा कि राहुल ने कहा, हार-जीत तो लगी रहती है न?

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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