“राहुल गांधी का बड़ा खुलासा! आदित्य श्रीवास्तव के नाम से कर्नाटक, यूपी और महाराष्ट्र में वोटर – चुनाव आयोग की पोल खुली”

राहुल गांधी का वोटर लिस्ट दावा – सच्चाई या सियासी चाल?

अरे भई, कांग्रेस नेता राहुल गांधी फिर सुर्खियों में हैं। इस बार वोटर लिस्ट को लेकर उनका दावा पलट गया है। सच कहूँ तो ये मामला कुछ ऐसा है जैसे बिना चेक किए WhatsApp फॉरवर्ड शेयर कर दिया हो। हाल ही में उन्होंने दावा किया था कि “आदित्य श्रीवास्तव” नाम का शख्स तीन अलग-अलग राज्यों (कर्नाटक, UP और महाराष्ट्र) में वोटर है। लेकिन सच्चाई? चुनाव आयोग की official website पर इस नाम का कोई रिकॉर्ड ही नहीं मिला! अब आप ही बताइए, ये कैसा खेल चल रहा है?

पूरा माजरा क्या है?

देखिए, मामला कुछ यूँ है – राहुल जी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये बात कही थी। उनका कहना था कि एक ही आदमी का तीन जगह वोटर होना सिस्टम की बड़ी खामी है। मतलब साफ था – वोटर फ्रॉड का इशारा। पर जब न्यूज18 की टीम ने फैक्ट-चेक किया तो… हद हो गई! EPIC number से सर्च करने पर भी कोई मैच नहीं मिला। यानी जिस शख्स का नाम लिया गया, वो वोटर लिस्ट में है ही नहीं!

एक तरफ तो ये चुनाव आयोग की पारदर्शिता दिखाता है। लेकिन दूसरी तरफ सवाल ये उठता है कि क्या राजनेता बिना वेरिफाई किए ऐसे गंभीर दावे कर सकते हैं? सच में, ये सोचने वाली बात है।

राजनीतिक रिएक्शन – गर्मा-गर्म!

भाजपा तो मानो तीर मारने का मौका ढूंढ ही रही थी। उनके प्रवक्ता ने तुरंत ट्वीट किया – “राहुल जी, पहले फैक्ट-चेक तो कर लिया करो!” वहीं कांग्रेस की तरफ से जवाब आया कि उन्होंने पब्लिक सोर्सेज से जानकारी ली थी। पर सवाल तो ये है ना कि जनता के लीडर्स को इतनी लापरवाही कैसे हो सकती है?

चुनाव आयोग ने अभी तक कोई ऑफिशियल स्टेटमेंट नहीं दिया है। लेकिन उनकी वेबसाइट पर एक notification दिख रहा है जिसमें लिखा है – “सभी डेटा अपडेटेड और वेरिफाइड है।” थोड़ा अजीब लगता है ना?

अब आगे क्या?

ईमानदारी से कहूँ तो इस पूरे मामले का सबसे बड़ा नुकसान राहुल गांधी की क्रेडिबिलिटी को हो सकता है। खासकर अब जबकि चुनावी माहौल गर्माने वाला है। विपक्षी दल इस मौके को हाथ से जाने नहीं देंगे। हो सकता है वोटर लिस्ट की इंडिपेंडेंट ऑडिट की मांग उठे।

पर सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि क्या हमारे नेता सीखेंगे? या फिर ये “पहले बोलो, बाद में सोचो” वाली सियासत चलती रहेगी? आपकी क्या राय है?

एक बात तो तय है – लोकतंत्र में ट्रस्ट और ट्रांसपेरेंसी दोनों ज़रूरी हैं। और ये मामला दोनों पर ही सवाल खड़े करता है। क्या आपको नहीं लगता कि हमें अपने नेताओं से बेहतर उम्मीद करनी चाहिए?

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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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