राहुल गांधी ने अचानक जीजा रॉबर्ट वाड्रा का साथ क्यों दिया? सालों बाद ये मोव क्या गेम-चेंजर साबित होगा?
अरे भाई, राजनीति की दुनिया में तो रोज कुछ न कुछ होता रहता है, लेकिन ये वाला मामला थोड़ा ज्यादा ही दिलचस्प है। सोचिए, छह साल तक जिससे दूरी बनाए रखी हो, उसी रॉबर्ट वाड्रा के साथ अचानक ED के ऑफिस तक पहुँच जाना? ये कोई सामान्य बात तो नहीं है ना? असल में, ED ने वाड्रा को फिर से बुलाया था और राहुल ने उनका साथ देने का फैसला किया। बस फिर क्या था, मीडिया और राजनीतिक गलियारों में तूफान आ गया!
वाड्रा के केस की कहानी: सच क्या है और क्या सिर्फ आरोप?
देखिए, रॉबर्ट वाड्रा का नाम तो विवादों में नया नहीं है। जमीन डील्स से लेकर फाइनेंशियल इर्रेगुलैरिटीज तक – आरोपों का पूरा पेटारा है। ED ने पिछले कुछ सालों में कई बार उन्हें तलब किया है। पर यहाँ ट्विस्ट ये है कि राहुल और वाड्रा के रिश्तों को लेकर मीडिया में अक्सर कुछ अलग ही कहानियाँ चलती रही हैं। तो फिर अचानक ये सार्वजनिक एकजुटता? कुछ तो बात है!
राहुल का ये मूव: पारिवारिक एकता या पॉलिटिकल मास्टरस्ट्रोक?
अब समझने वाली बात ये है कि राहुल सिर्फ ED के ऑफिस तक ही नहीं गए, बल्कि एक मैसेज देकर आए हैं। और वो मैसेज साफ है – “हम साथ हैं”। पर क्या ये सिर्फ फैमिली सपोर्ट है? या फिर कांग्रेस की तरफ से सरकार को ये बताने की कोशिश कि “अब बस हो गया”? क्योंकि कांग्रेस वाले तो इसे एजेंसीज के मिसयूज का मामला बता रहे हैं, वहीं BJP वाले इसे “घोटालेबाजों को बचाने की कोशिश” कह रहे हैं। मजेदार है ना?
राजनीति का गर्मागर्म माहौल: कौन क्या बोला?
इस मामले ने तो सचमुच राजनीति को गर्म कर दिया है। एक तरफ कांग्रेस वाले इसे पार्टी यूनिटी का प्रतीक बता रहे हैं, तो दूसरी तरफ BJP नेता इसे “गांधी-वाड्रा गठजोड़” कहकर निशाना बना रहे हैं। और हाँ, पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स की राय? वो तो 2024 के इलेक्शन्स को लेकर अपनी थ्योरीज देने में व्यस्त हैं। कुछ कह रहे हैं ये स्ट्रेटजी है, कुछ कह रहे हैं ये मजबूरी। पर सच तो वक्त ही बताएगा।
आगे क्या? 5 बड़े सवाल जो सबके दिमाग में हैं
1. क्या ये एकजुटता कांग्रेस के अंदरूनी झगड़ों को सुलझा पाएगी?
2. ED की जांच कहाँ तक जाएगी? क्या वाड्रा के खिलाफ कोई बड़ी एक्शन होगी?
3. क्या ये मामला 2024 के इलेक्शन्स को प्रभावित करेगा?
4. क्या ये राहुल गांधी की इमेज बदलने वाला मूव है?
5. और सबसे बड़ा सवाल – आम जनता इस सबको कैसे देख रही है?
अंत में बस इतना कहूँगा – राहुल का ये कदम निश्चित रूप से सोचा-समझा हुआ लगता है। चाहे वो फैमिली प्रेशर हो या पॉलिटिकल कैलकुलेशन। पर याद रखिए, राजनीति में कुछ भी फाइनल नहीं होता जब तक वोट्स नहीं पड़ जाते। तो अभी तो ये सिर्फ शुरुआत है, असली ड्रामा तो अभी बाकी है!
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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com