रिठाला अग्निकांड: जब लापरवाही ने लील लीं जानें
शुरुआत
दिल्ली का रिठाला इलाका एक बार फिर सुर्खियों में है, और वजह है एक दिल दहला देने वाली घटना। एक प्लास्टिक बैग फैक्ट्री में लगी आग ने न सिर्फ चार लोगों की जान ले ली, बल्कि हमारी औद्योगिक सुरक्षा व्यवस्था की पोल भी खोलकर रख दी। असल में देखा जाए तो ये कोई एक्सीडेंट नहीं, बल्कि लापरवाही का नतीजा था।
क्या हुआ था उस दिन?
आग लगने की वजह
सोमवार सुबह 10 बजे का वक्त था। अचानक फैक्ट्री में शॉर्ट सर्किट हुआ और देखते ही देखते आग ने भयानक रूप ले लिया। जानते हैं सबसे डरावना क्या था? वहां मौजूद प्लास्टिक मटीरियल ने आग को ऐसा हवा दी कि Fire department के पहुंचने तक पूरी तीन मंजिला इमारत आग की लपटों में घिर चुकी थी।
बिल्डिंग में क्या गड़बड़ थी?
यहां सुनकर आपको झटका लगेगा – एक ही गेट वाली इमारत में तीन अलग-अलग फैक्ट्रियां चल रही थीं! Fire safety experts की रिपोर्ट बताती है कि न तो कोई फायर एक्सटिंग्विशर था, न ही emergency exit का इंतजाम। साफ है, बिल्डिंग नियमों को ताक पर रखकर काम चलाया जा रहा था।
पीड़ितों की कहानी
जिन्हें जान गंवानी पड़ी
चार मौतें… जिनमें दो महिला कर्मचारी भी शामिल हैं। परिजनों का आरोप है कि फैक्ट्री मालिक ने safety को लेकर कभी गंभीरता नहीं दिखाई। वहीं, मालिक का 22 साल का बेटा अभी ICU में है, जिसकी हालत गंभीर बनी हुई है।
बचाव कार्य में दिक्कतें
Fire brigade को घटनास्थल तक पहुंचने में 25 मिनट लगे। और फिर? सिंगल एंट्री पॉइंट की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन मुश्किल हो गया। एक फायरमैन ने बताया, “अंदर फंसे लोगों तक पहुंचना हमारे लिए चुनौती बन गया था।”
किसकी गलती?
मालिक से लेकर अधिकारी तक
जांच में पता चला है कि फैक्ट्री proper license के बिना चल रही थी। Local residents का कहना है कि यहां पहले भी कई बार शिकायतें की गईं, लेकिन अधिकारियों ने कभी कोई एक्शन नहीं लिया। सवाल ये है कि fire safety norms की अनदेखी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं होती?
अब क्या होगा?
पुलिस ने फैक्ट्री मालिक के खिलाफ केस दर्ज किया है। दिल्ली सरकार ने सभी फैक्ट्रियों का fire safety audit कराने का आदेश दिया है। Experts का मानना है कि multiple exit points और proper ventilation जैसे बेसिक नियमों को फॉलो करके ऐसी त्रासदियों को रोका जा सकता है।
आखिर में…
रिठाला की ये घटना हमें एक बार फिर याद दिलाती है कि industrial safety को हल्के में लेने की कीमत जानें देकर चुकानी पड़ती है। सिर्फ कागजों पर कानून बनाने से काम नहीं चलेगा – ground level पर इम्प्लीमेंटेशन जरूरी है। वरना… ऐसी दुर्घटनाएं होती रहेंगी और हम सिर्फ मरने वालों की गिनती करते रह जाएंगे।
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com