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“जब शी जिनपिंग से मिले एस जयशंकर: आंखों में आंख डालकर की गई मजबूत मुलाकात!”

जब जयशंकर और शी जिनपिंग आमने-सामने बैठे: क्या यह मुलाकात सच में कुछ बदल पाएगी?

भारत-चीन के बीच तनाव तो आप सभी जानते ही हैं – लगभग वैसा ही जैसे दो पड़ोसी जिनके बीच सालों से सीमा को लेकर झगड़ा चल रहा हो। लेकिन इसी बीच एक दिलचस्प घटना हुई। पांच साल बाद हमारे विदेश मंत्री जयशंकर चीन गए, और सीधे शी जिनपिंग से मिले। सच कहूं तो, यह कोई औपचारिक मुलाकात नहीं थी। आंखों में आंख डालकर हुई यह बातचीत काफी मजबूत रही। क्या यह नए रिश्तों की शुरुआत हो सकती है? चलिए समझते हैं।

पहले ये जान लें: आखिर यह तनाव है क्या?

असल में बात यह है कि LAC पर पिछले कुछ सालों से हालात बहुत तनावपूर्ण रहे हैं। 2020 के गलवान घटना के बाद तो जैसे रिश्तों में बर्फ़ जम सी गई थी। कितनी ही बैठकें हुईं, लेकिन समाधान? वो अभी तक नहीं निकला। ऐसे में जयशंकर की यह यात्रा बिल्कुल वैसी ही है जैसे कोई बर्फ़ को पिघलाने की कोशिश कर रहा हो। थोड़ा मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं।

क्या हुआ उस 45 मिनट की मीटिंग में?

देखिए, यह कोई सामान्य चाय-पानी वाली मुलाकात नहीं थी। पूरे 45 मिनट तक गंभीर बातचीत हुई। भारत ने साफ़ कह दिया – “बिना सीमा शांति के, कोई दोस्ती नहीं।” और चीन? उन्होंने भी ‘stable relations’ की बात की। अच्छा संकेत तो है, लेकिन… हमेशा की तरह एक ‘लेकिन’ जरूर है ना?

वैसे एक दिलचस्प बात – global issues पर भी चर्चा हुई। मतलब साफ़ है, दोनों देश आपस में cooperate करना चाहते हैं। पर कितना? वो तो वक्त ही बताएगा।

किसने क्या कहा? प्रतिक्रियाओं का मिश्रित स्वाद

हमारे विदेश मंत्रालय ने इसे ‘positive’ तो बताया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि अभी बहुत कुछ करना बाकी है। चीनी मीडिया? वो तो ‘trust-building’ की बात करने लगा। लेकिन experts कह रहे हैं – “दोस्तों, थोड़ा सावधान!” चीन पर भरोसा करने से पहले सौ बार सोचो।

तो अब आगे क्या? क्या हमें उम्मीद रखनी चाहिए?

एक तरफ तो यह मुलाकात एक नई शुरुआत जैसी लगती है। military talks फिर से तेज होंगे, diplomacy चलेगी। अगर सब ठीक रहा तो trade relations भी सुधर सकते हैं। लेकिन… हां यह ‘लेकिन’ फिर आ गया… असली test तो LAC पर शांति का होगा।

मेरा निजी विचार? यह मुलाकात एक अच्छा संकेत जरूर है। लेकिन जैसे हम भारतीय कहते हैं – “दूर के ढोल सुहावने लगते हैं।” अभी तो बस शुरुआत है। असली मेहनत अब शुरू होगी।

एक बात तो clear है – dialogue और diplomacy के बिना आज के जमाने में कुछ नहीं होता। क्या यह नई शुरुआत कामयाब होगी? वो तो… खैर, आपकी क्या राय है?

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वाह! शी जिनपिंग और एस जयशंकर की यह मुलाकात तो किसी बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर से कम नहीं थी, है न? सच कहूं तो, यह सिर्फ दो नेताओं की औपचारिक बैठक नहीं थी – बल्कि दो महाशक्तियों का एक ऐसा मिलन जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींच लिया।

अब सवाल यह है कि आखिर इस मीटिंग में ऐसा क्या खास था? देखिए न, एक तरफ तो यह भारत-चीन रिश्तों के लिए नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है… लेकिन दूसरी तरफ, यह पूरी वैश्विक राजनीति के समीकरण बदलने वाली चीज़ है।

और सच बात तो यह है कि इसका असर सिर्फ दिल्ली और बीजिंग तक सीमित नहीं रहेगा। अमेरिका से लेकर यूरोप तक, हर कोई इन दोनों देशों के इस नए ‘equation’ को समझने की कोशिश कर रहा होगा।

लेकिन यहां सबसे मजेदार बात क्या है? यह कि अभी तो यह सिर्फ शुरुआत है! आने वाले महीनों में देखेंगे कि यह बातचीत कितनी ‘फ्रूटफुल’ साबित होती है… या फिर सिर्फ एक और डिप्लोमेटिक फॉर्मेलिटी रह जाती है।

(और हां, मैं यहां ‘फ्रूटफुल’ जैसे अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल जानबूझकर कर रहा हूं – क्योंकि यही तो हमारी रोजमर्रा की बोलचाल की भाषा है, है न?)

जब शी जिनपिंग और जयशंकर आमने-सामने बैठे: क्या हुआ, क्या नहीं?

1. वो मशहूर मुलाकात जिसकी सबको चर्चा थी

देखिए, बात Beijing की ही है। जहाँ हमारे External Affairs Minister एस जयशंकर और Chinese President शी जिनपिंग एक कमरे में बैठे। सोचिए, कितना मोटीवेशन होगा वहाँ? असल में ये bilateral talks सिर्फ़ फोटो ऑप के लिए नहीं थे – कुछ गंभीर मुद्दे भी टेबल पर थे।

2. “यार, इतने सारे मुद्दे… पर क्या discuss हुआ?”

अरे भई, सीमा विवाद (border disputes) तो जैसे मेन कोर्स था। लेकिन साथ में trade relations और regional stability भी चर्चा में शामिल थे। एक तरफ तो ये दोनों leaders आंखों में आंख डालकर बात कर रहे थे, पर क्या आप जानते हैं? ऐसी high-level meetings में हर शब्द, हर इशारा मायने रखता है।

3. क्या कुछ अच्छा भी हुआ? या सिर्फ़ बातें ही हुईं?

सुनिए, अगर आपको लगता है कि ये सिर्फ़ photo-op थी तो गलत हैं। कुछ border tensions कम हुईं, economic cooperation बढ़ाने पर सहमति बनी। पर ईमानदारी से कहूँ? ये तो शुरुआत है। Long-term solutions के लिए अभी बहुत पानी बहना बाकी है।

4. जयशंकर साहब ने तो कुछ खास कहा होगा?

हाँ! उन्होंने इसे “frank and productive” बताया। मतलब? दोनों तरफ से बिना लाग-लपेट के बात हुई। Concerns clear किए गए, expectations रखी गईं। एक तरह से कहें तो – दूध का दूध, पानी का पानी।

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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