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“एस जयशंकर का अमेरिका को जवाब: पीड़ित और आतंकवादी कभी समान नहीं हो सकते!”

एस जयशंकर का अमेरिका को जवाब: “पीड़ित और आतंकवादी कभी समान नहीं हो सकते!”

अरे भाई, क्या बात है! भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तो QUAD मीटिंग में ऐसा बम गिराया कि पूरी दुनिया का ध्यान खिंच गया। सीधे-सादे अंदाज़ में, बिना घुमाए उन्होंने कह दिया – “पीड़ित और आतंकवादी को एक कैटेगरी में रखना… ये तो न्याय के साथ अन्याय होगा न?” और सच कहूँ तो ये बयान ऐसे वक्त आया है जब अमेरिका और कुछ यूरोपियन देश human rights का राग अलापते हुए आतंकवादियों को ग्लैमराइज़ करने में लगे हैं। जयशंकर साहब ने साफ़ कर दिया – भारत को अपने लोगों की सुरक्षा का पूरा हक़ है, और इसमें किसी को सवाल उठाने का कोई मौलिक अधिकार नहीं!

पूरा माजरा क्या है? आतंकवाद के खिलाफ भारत की जंग

देखिए, हमारा देश तो दशकों से आतंकवाद की आग में झुलस रहा है – कश्मीर से लेकर देश के अन्य हिस्सों तक। पर हैरानी की बात ये कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कुछ ताकतें इन आतंकवादियों को ‘मासूम पीड़ित’ बताने पर तुली हैं! ईमानदारी से कहूँ तो, पिछले कुछ सालों में तो international organizations वाले भारत की anti-terror operations को human rights violation बताने लगे थे। शायद यही वजह थी कि इस QUAD मीटिंग (अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया) में जयशंकर ने सीधे-सीधे कह दिया – “ये नाटक अब बंद होना चाहिए।”

जयशंकर के वो तीन ज़बरदस्त पॉइंट्स

अब ज़रा उनके संबोधन की मसालेदार बातें सुनिए! पहला तो “आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस” – यानी कोई समझौता नहीं, कोई रियायत नहीं। दूसरा और सबसे ज़ोरदार – “पीड़ित और हमलावर में फर्क”। सच कहूँ तो ये तो बेसिक कॉमन सेंस की बात है, लेकिन कुछ लोगों को ये समझने में दिक्कत होती है! और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण – “भारत का सुरक्षा अधिकार”। यानी हम अपनी सीमाओं और नागरिकों की सुरक्षा के लिए जो भी कदम उठाएँगे, उस पर किसी को सवाल जवाब करने का कोई हक़ नहीं। एकदम स्ट्रेट फॉरवर्ड।

कैसी चल रही है प्रतिक्रियाओं की बयार?

देश के अंदर तो मानो जयशंकर के बयान पर जश्न ही मन रहा है! सरकार से लेकर विपक्ष तक – सब एक स्वर में इसकी तारीफ़ कर रहे हैं। वहीं अमेरिका की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया… पर analysts कह रहे हैं कि ये भारत की नई, बेधड़क विदेश नीति का स्पष्ट संकेत है। सोशल मीडिया पर तो #IndiaAgainstTerrorism और #Jaishankar ट्रेंड कर ही रहे हैं। कुछ users का तो ये भी कहना है कि ये बयान उन देशों के लिए आईना है जो आतंकवाद को ‘मानवाधिकार’ के चश्मे से देखते हैं। सच कहूँ तो, जनता का समर्थन साफ़ दिख रहा है!

अब आगे क्या? क्या होगा अगला मूव?

अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि QUAD देश आतंकवाद के खिलाफ कैसी कॉमन स्ट्रैटेजी बनाते हैं। भारत की कोशिश होगी कि इस प्लेटफॉर्म के ज़रिए आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक सहमति बने। पर साथ ही, ये भी देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका-भारत रिश्तों पर इसका क्या असर पड़ता है। कुछ experts का मानना है कि ये मुद्दा दोनों देशों के बीच security policies पर गहन चर्चा का आधार बनेगा। एक बात तो तय है – जयशंकर ने बिना लाग-लपेट के साफ़ कर दिया है कि भारत अब आतंकवाद के मामले में किसी भी तरह के समझौते के मूड में नहीं है। और ये संदेश पूरी दुनिया ने सुन लिया है!

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एस जयशंकर का अमेरिका को जवाब – और क्यों यह मायने रखता है?

अरे भाई, कभी-कभी तो सच में लगता है कि कुछ बातें साफ-साफ कह देनी चाहिए। वैसे ही जैसे जयशंकर जी ने किया। लेकिन असल मुद्दा क्या है? चलिए, बात करते हैं।

1. जयशंकर ने अमेरिका को क्या कहा – और क्यों यह सही था?

सीधी बात – जयशंकर ने कहा कि “पीड़ित और आतंकवादी एक कैटेगरी में नहीं आते”। सच कहूँ तो, यह तो वैसा ही है जैसे कोई चोर और पुलिसवाले को एक ही बेंच पर बैठा दे। अमेरिका का जो बयान आया था, उसमें ऐसा ही कुछ तो लग रहा था न?

2. पूरा मामला क्या है? Context समझिए

देखिए, मामला तब गरमाया जब अमेरिका ने हमारे internal matters में नाक घुसाने की कोशिश की। साथ ही, आतंकवाद पर उनका एक बयान बिल्कुल ही controversial था। जयशंकर जी ने इसे सहा? बिल्कुल नहीं। उनका जवाब सुनकर तो लगा – अब बस, यही बात थी जो कहनी थी!

3. भारत में कैसा रहा रिएक्शन? जनता ने क्या कहा?

अरे, यहाँ तो जैसे पूरा देश एक साथ खड़ा हो गया! सोशल मीडिया हो या न्यूज़ चैनल्स – हर जगह जयशंकर जी के इस स्टैंड की तारीफ हो रही थी। लोग कह रहे थे – “आखिरकार कोई तो हमारी आवाज़ बुलंद कर रहा है।” सच में, यह सिर्फ एक जवाब नहीं, बल्कि हमारे self-respect का सवाल था।

4. अमेरिका की तरफ से अब तक कुछ?

सुनने में आ रहा है कि अभी तक कोई official statement नहीं आया। पर यकीन मानिए, international media में यह मुद्दा गर्म बना हुआ है। क्या अमेरिका जवाब देगा? शायद। या फिर शायद वे समझ गए कि इस बार वे लाइन पार कर गए थे।

एक बात तो तय है – ऐसे मौकों पर साफ़ और स्पष्ट बोलना ही सही रणनीति होती है। जयशंकर जी ने वही किया। और हमें? हमें तो बस अपने leaders के पीछे खड़े होकर सपोर्ट करना चाहिए। है न?

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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