“संजय दत्त का चौंकाने वाला दावा: ‘मुंह खोल देता तो बच जातीं सैकड़ों जानें!’ | निकम के बयान से हड़कंप”

संजय दत्त का वो बयान जिसने फिर से हिला दिया देश: ‘अगर मुंह खोल देता तो…’

ये कहानी है 1993 की… वो काला दिन जब मुंबई हिल गया था। और आज, तकरीबन 30 साल बाद, एक ऐसा खुलासा हुआ है जिसने सबको चौंका दिया है। पूर्व स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर उज्ज्वल निकम ने तो बम्बई बम ब्लास्ट्स के बारे में कुछ ऐसा कह दिया है कि सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उनका दावा है कि अगर संजय दत्त ने पुलिस को पहले ही सच बता दिया होता, तो शायद वो 257 मासूम जानें बच जातीं। सोचिए, सिर्फ एक इंसान की चुप्पी ने कितने घर उजाड़ दिए!

पुराना घाव, नया नमक

12 मार्च 1993… मुंबई के लिए वो तारीख जिसे याद कर आज भी लोग सिहर उठते हैं। सिलसिलेवार बम धमाके… एक के बाद एक… जैसे किसी डरावनी फिल्म का सीन हो। 257 मौतें… 700 से ज्यादा घायल… और एक ऐसा सदमा जिससे शहर को उबरने में सालों लग गए।

अब सवाल ये उठता है – संजय दत्त का इसमें क्या रोल था? असल में, उन पर आरोप लगा था कि उन्होंने आतंकियों से हथियार लिए थे। हालांकि, आतंकवाद के आरोप से तो वो बरी हो गए, लेकिन आर्म्स एक्ट के तहत सजा काटनी पड़ी। और अब ये नया मोड़… निकम का ये बयान कि दत्त जानते थे सब कुछ!

“अगर बोल देता तो…” – निकम का दावा

हाल ही में एक इंटरव्यू में निकम ने कहा, “ये त्रासदी टल सकती थी…” बस इतना सुनना था कि मीडिया में तूफान आ गया। सोशल मीडिया पर तो जैसे हंगामा मच गया। कुछ लोग कह रहे हैं – “अब ये नया ड्रामा क्यों?” तो कुछ का कहना है – “सच सामने आना ही चाहिए, चाहे कितने भी साल क्यों न बीत जाएं।”

और संजय दत्त? अभी तक चुप्पी। शायद वकीलों से सलाह-मशविरा कर रहे होंगे। या फिर सोच रहे होंगे कि इस नए तूफान का जवाब कैसे दिया जाए।

अब क्या होगा?

देखा जाए तो ये केस बहुत पुराना है। लेकिन निकम के इस बयान ने इसे फिर से जिंदा कर दिया है। कानूनी जानकार कह रहे हैं कि अगर कोई आधिकारिक शिकायत दर्ज होती है, तो शायद नई जांच शुरू हो सकती है।

पर सच क्या है? क्या सच में संजय दत्त जानते थे सब कुछ? या फिर ये सिर्फ एक और विवाद है जो समय के साथ खत्म हो जाएगा? ईमानदारी से कहूं तो, जवाब किसी के पास नहीं है।

एक बात तो तय है – 1993 के उन धमाकों के रहस्य अभी भी पूरी तरह सुलझे नहीं हैं। और शायद कभी न सुलझ पाएं। लेकिन जब भी ऐसे खुलासे होते हैं, पुराने जख्म फिर से हरे हो जाते हैं।

आखिरी बात: इतिहास को बदला तो नहीं जा सकता, लेकिन सच जरूर सामने आना चाहिए। वैसे भी, जैसा कि हमारी फिल्मों में कहा जाता है – “सच बड़ा कड़वा होता है”। पर क्या ये सच है? वक्त ही बताएगा…

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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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