गाजा में BCG के साथ काम रोकने का Save the Children का फैसला: क्या है पूरा मामला?
अरे भई, ये Save the Children वालों ने तो बड़ा ही दिलचस्प कदम उठाया है! बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (BCG) के साथ अपनी सारी साझेदारी पर उन्होंने तुरंत रोक लगा दी। और वजह? फाइनेंशियल टाइम्स की एक ऐसी रिपोर्ट जिसने सबको झकझोर कर रख दिया। रिपोर्ट में दावा किया गया कि BCG गाजा के उस खूनी संघर्ष में शामिल पक्षों को सलाह दे रहा था। बात सुनकर Save the Children के CEO का तो गुस्सा देखने लायक था – उन्होंने इसे “घिनौना और दिल दहला देने वाला” बताया। और फिर? एक्शन में आ गए ना!
अब थोड़ा पीछे चलते हैं। Save the Children को तो आप जानते ही होंगे – बच्चों के हक की लड़ाई लड़ने वाली दुनिया की मशहूर NGO। और BCG? वो तो टॉप की मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म है। पर अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या कंसल्टेंसी देने का मतलब ये भी होता है कि आप युद्ध में एक पक्ष की मदद करें? FT की रिपोर्ट तो यही कह रही है। उनके पास BCG के इंटरनल डॉक्युमेंट्स और ईमेल्स के प्रूफ भी हैं। गंभीर बात है, है ना?
अब Save the Children ने क्या किया? सीधा कट! BCG के साथ सारे टाई-अप फिलहाल के लिए खत्म। उनका कहना है कि वो पूरी जांच कर रहे हैं। और सच कहूं तो ये सही भी है। NGO हो या कोई और, ऐसे विवादों में फंसी कंपनियों से दूरी बनाना ही बेहतर होता है। वैसे BCG ने भी जवाब दिया है – कहते हैं कि वो अपनी पॉलिसीज का पालन करते हैं और खुद भी मामले की जांच कर रहे हैं। पर सवाल तो अभी भी खड़े हैं ना?
अब देखिए ना, ये मामला सिर्फ दो संगठनों तक सीमित नहीं है। मानवाधिकार संगठन तो Save the Children के इस फैसले की तारीफ कर रहे हैं। उनका कहना है कि दूसरे NGOs को भी ऐसा ही स्टैंड लेना चाहिए। पर असली सवाल तो ये है कि आगे क्या होगा? क्या Save the Children और BCG फिर कभी साथ काम कर पाएंगे? क्या दूसरी कंपनियां भी अपनी पार्टनरशिप्स पर सवाल उठाएंगी?
एक बात तो तय है – गाजा संघर्ष में कॉर्पोरेट्स की भूमिका पर अब गंभीर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। और ये सिर्फ BCG तक सीमित नहीं रहने वाला। बिजनेस और मानवाधिकारों के बीच का ये टकराव… देखना दिलचस्प होगा कि आगे क्या होता है। आपको क्या लगता है – क्या Save the Children ने सही कदम उठाया?
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1. सेव द चिल्ड्रन ने BCG के साथ हाथ क्यों खींच लिया?
असल में बात ये है कि BCG का गाजा में काम करने का तरीका सेव द चिल्ड्रन के मूल्यों से मेल नहीं खा रहा था। और जब बात बच्चों के हित की आती है, तो ये संस्था कोई समझौता नहीं करती। सीधे शब्दों में कहें तो – “हमारे बच्चे पहले” वाली पॉलिसी।
2. गाजा में सेव द चिल्ड्रन क्या-क्या कर रहा है?
देखिए, यहां काम बहुत सारे चल रहे हैं। स्कूल बनाने से लेकर मेडिकल हेल्प तक… पर सबसे ज़्यादा ज़रूरी है मानसिक सहारा देना। क्योंकि जब आप युद्धग्रस्त इलाके की बात करते हैं, तो सिर्फ किताबें और दवाइयां काफी नहीं होतीं। बच्चों के दिलों के घाव भरने भी तो ज़रूरी हैं न?
3. BCG का रोल क्या था इसमें?
तो BCG वो बड़ी-सी मैनेजमेंट कंसल्टिंग कंपनी है न? ये लोग स्ट्रेटेजी और ऑपरेशन्स में मदद कर रहे थे। पर अब… खैर, अब नहीं कर रहे। सच कहूं तो, कभी-कभी बिजनेस और सामाजिक काम के तरीके मेल नहीं खाते। ऐसा ही कुछ यहां हुआ लगता है।
4. क्या बच्चों पर पड़ेगा इसका असर?
नहीं, बिल्कुल नहीं! सेव द चिल्ड्रन ने खुद साफ किया है कि उनके सारे प्रोजेक्ट्स पहले की तरह चलते रहेंगे। BCG वाली बात अलग है, बच्चों वाली बात अलग। वैसे भी, जब बात बच्चों की हो तो कोई समझौता होता है क्या? एकदम नहीं!
Source: Financial Times – Companies | Secondary News Source: Pulsivic.com