SC की बड़ी टिप्पणी: चुनाव से पहले मतदाता सूची विवाद पर क्यों उठे सवाल?
अरे भई, Supreme Court ने तो हाल ही में बिहार की मतदाता सूची को लेकर एक ऐसी टिप्पणी की है जिसने सबका ध्यान खींच लिया। सुनिए न, Election Commission के कामकाज पर सवाल उठाना कोई मामूली बात तो है नहीं। और देखा जाए तो ये मामला सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है – पूरे देश में चुनावी पारदर्शिता की बहस को हवा दे दी है। याचिकाकर्ताओं का तो यहां तक कहना है कि मतदाता सूची में हुए बदलावों में कुछ तो गड़बड़ है। सच कहूं तो, अगर ऐसा है तो ये आने वाले चुनावों की निष्पक्षता पर बड़ा सवालिया निशान लगाता है।
मामले की पृष्ठभूमि: क्यों शुरू हुआ विवाद?
देखिए, बिहार में चुनाव नजदीक आ रहे हैं न, तो मतदाता सूची अपडेट करने का काम चल रहा था। बात तो बस इतनी सी थी। लेकिन…हमेशा की तरह ये ‘लेकिन’ ही मुसीबत लेकर आया! कई सामाजिक संगठनों ने आरोप लगा दिए कि सूची में कुछ नाम गायब हैं तो कुछ ऐसे नाम आ गए हैं जिनका वहां होना संदेहास्पद है। और भई, आरोप इतने गंभीर थे कि Election Commission को बयबा देने पर मजबूर होना पड़ा। उनका कहना है कि सब कुछ ठीक है, कोई गड़बड़ी नहीं। पर सवाल यह है कि फिर इतने सारे लोग शिकायत क्यों कर रहे हैं?
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई: क्या हुआ नया?
जब मामला Supreme Court पहुंचा तो जज साहबों ने इसे गंभीरता से लिया। सच कहूं तो, उनकी टिप्पणियां काफी मजबूत थीं। Election Commission से सवाल पूछे गए – “भई, चुनाव से ठीक पहले मतदाता सूची में गड़बड़ी की शिकायत आई है, ये तो लोकतंत्र के लिए चिंता की बात है न?” Commission ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि सब कुछ नियमों के मुताबिक हुआ है। लेकिन अदालत ने उनसे और जानकारी मांगी है। दिलचस्प ये कि अदालत ने इस मामले को हल्के में नहीं लिया।
विभिन्न पक्षों की प्रतिक्रियाएं
अब यहां तो हर कोई अपना-अपना राग अलाप रहा है। एक तरफ याचिकाकर्ताओं का कहना है कि “सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई है”, वहीं Election Commission का कहना है कि “सब कुछ ठीक है”। और राजनीतिक दल? उनकी तो मजेदार प्रतिक्रियाएं आई हैं। विपक्ष वालों ने तो Election Commission पर ही सवाल उठा दिए हैं, जबकि सत्ता पक्ष कह रहा है कि ये सब बेबुनियाद आरोप हैं। सच कहूं तो, ये सब देखकर लगता है कि चुनावी मौसम की गर्मी शुरू हो चुकी है!
आगे की कार्यवाही: क्या हो सकता है अगला कदम?
अब सबकी नजरें Supreme Court की अगली सुनवाई पर हैं। अदालत क्या फैसला सुनाएगी, ये तो वक्त ही बताएगा। लेकिन एक बात तय है – इसका असर सिर्फ बिहार पर ही नहीं, पूरे देश की चुनावी प्रणाली पर पड़ेगा। कुछ विशेषज्ञ तो यहां तक कह रहे हैं कि अगर कोई स्वतंत्र जांच होती है तो चुनाव की तारीखें भी प्रभावित हो सकती हैं। पर सवाल ये है कि क्या Election Commission इसकी इजाजत देगा? देखते हैं आगे क्या होता है।
अंत में बस इतना कहूंगा – ये मामला सिर्फ कागजों में नाम जुड़ने-घटने तक सीमित नहीं है। ये तो हमारे लोकतंत्र की नींव से जुड़ा सवाल है। Supreme Court का फैसला आने वाले वक्त में चुनावी प्रक्रिया को नया आकार दे सकता है। या फिर…शायद सब कुछ यूं ही चलता रहे। कौन जाने!
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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com