सीनेट का AI नियमन पर प्रतिबंध: क्या इंटरनेट पहुंच दांव पर लगी है?
अमेरिकी सीनेट ने हाल ही में एक ऐसा नियम पास किया है जिस पर बहस होनी तय है। सीधे शब्दों में कहें तो, अब राज्य स्तर पर AI को रेगुलेट करने की कोशिश करने वालों को federal broadband funding से हाथ धोना पड़ सकता है। यानी? अगर कोई राज्य AI पर अपने खुद के कानून बनाता है, तो उसे इंटरनेट सुविधा विस्तार के लिए मिलने वाला फंड कट सकता है। और यहीं पर दो बड़े सवाल टकराते हैं – एक तरफ तकनीक पर नियंत्रण की जरूरत, तो दूसरी तरफ डिजिटल समानता का सपना। क्या आपको नहीं लगता कि यह एक अजीब सी स्थिति है?
पूरा मामला क्या है?
देखिए, AI की दुनिया में हर दिन कुछ नया हो रहा है। ऐसे में अमेरिका में यह बहस गर्म है कि इसे कैसे रेगुलेट किया जाए। Federal सरकार तो एक राष्ट्रीय AI policy बनाना चाहती है, लेकिन कैलिफ़ोर्निया और न्यूयॉर्क जैसे राज्यों का कहना है – “हमें अपने हिसाब से सख्त नियम चाहिए।” अब सीनेट ने इस झगड़े में तेल डाल दिया है। उनका कहना है कि जो राज्य AI पर केंद्र की बात नहीं मानेंगे, उन्हें broadband expansion fund नहीं मिलेगा। और यह फंड तो वही है जो गरीब और ग्रामीण इलाकों को इंटरनेट से जोड़ता है। थोड़ा अजीब लगता है न?
राजनीति और प्रतिक्रियाएं: कौन क्या कह रहा है?
इस मामले ने सीनेट में काफी हलचल मचा दी है। Republicans का तर्क है कि यह “राज्यों की मनमानी रोकने” का तरीका है। वहीं Democrats इसे राज्यों के अधिकारों में दखल मान रहे हैं। असल में मजे की बात यह है कि टेक दिग्गजों – Meta, Google, Microsoft – ने इस नियम का खुलकर समर्थन किया है। उनका कहना है कि अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग कानूनों से उन्हें compliance में दिक्कत होती है। सच कहूं तो, यह तो होना ही था।
लेकिन विरोध की आवाजें भी कम नहीं हैं। कैलिफ़ोर्निया के गवर्नर न्यूजॉम तो बिल्कुल खफा हैं – उन्होंने इसे “केंद्र का राज्यों पर हमला” बताया है। और ACLU (American Civil Liberties Union) जैसे संगठनों का कहना है कि यह गरीबों के साथ खिलवाड़ है। उनके शब्दों में – “इंटरनेट फंडिंग को AI नियमन से जोड़ना तो वैसे ही है जैसे किसी बच्चे को स्कूल भेजने के लिए उसके पैरेंट्स की वोटिंग हैबिट्स से जोड़ देना।” कड़वा, पर सच।
आगे क्या होगा?
अब यह बिल House of Representatives में जाएगा, और वहां तो और जोरदार बहस होगी ही। अगर यह कानून बन जाता है, तो राज्यों के सामने एक मुश्किल चुनाव होगा – या तो AI पर अपनी मर्जी छोड़ दो, या फिर अपने लोगों के लिए जरूरी broadband funding गंवाओ। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे AI regulation में एकरूपता तो आएगी, पर क्या यह कीमत राज्यों की आजादी और डिजिटल समावेशन (digital inclusion) के सिद्धांतों को ताक पर रखकर चुकानी चाहिए?
असल में, यह मामला सिर्फ अमेरिका में AI के भविष्य से ज्यादा बड़ा है। यह एक ऐसी मिसाल कायम कर सकता है जहां सरकारें तकनीकी नियंत्रण और बुनियादी डिजिटल अधिकारों के बीच सौदेबाजी करने लगें। और यह सोचने वाली बात है – क्या हम तकनीकी प्रगति और नागरिक अधिकारों के बीच इस तरह का खेल देखने को तैयार हैं?
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1. ये AI नियमन वाला प्रतिबंध आखिर है क्या बला?
देखिए, सीनेट का ये फैसला कोई नई बात नहीं है। असल में, ये वही पुरानी कहानी है जहां सरकारें टेक्नोलॉजी के सामने घबरा जाती हैं। Artificial Intelligence (AI) पर लगाम कसने की कोशिश, ताकि डेटा का गलत इस्तेमाल न हो। लेकिन सच कहूं तो, हर चीज पर बैन लगाना ही समाधान थोड़े ही है? एक तरफ privacy और ethics की चिंता है, तो दूसरी तरफ इंटरनेट की आजादी दांव पर लग जाती है। बैलेंस बनाना मुश्किल है, है न?
2. भईया, मेरी रोजमर्रा की ऑनलाइन जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा?
अरे, सीधी बात करें तो आपको ChatGPT या Bard जैसे टूल्स का स्वाद कम मिलेगा। जैसे मैंने पिछले हफ्ते देखा – कुछ AI टूल्स अचानक “इस रीजन में उपलब्ध नहीं” वाला मैसेज दिखाने लगे। शिक्षा और बिजनेस वालों के लिए तो खासा दिक्कत भरा होगा। पर सच पूछो तो, जहां चाह वहां राह – लोग VPN तो इस्तेमाल कर ही लेंगे। है न?
3. सुनो यार, कहीं ये सब करके हम टेक्नोलॉजी में पीछे तो नहीं रह जाएंगे?
बिल्कुल सही सवाल उठाया आपने! मेरा मानना है कि जरूरत से ज्यादा rules innovation को दफन कर देते हैं। स्टार्टअप्स वाले भाईयों का क्या होगा? नए आइडिया पर काम करो तो legal डर सताए। पर एक पक्ष ये भी है कि बिना लगाम के AI भी तो खतरनाक हो सकता है। बात संतुलन की है – न ज्यादा ढील, न ज्यादा सख्ती।
4. मैं आम आदमी हूं, मुझे क्या करना चाहिए?
घबराइए मत! पहला तो ये कि digital literacy पर ध्यान दीजिए। दूसरा, VPN जैसे टूल्स के बारे में जान लीजिए (हालांकि कानूनी पहलू समझ लें)। तीसरा और सबसे अच्छा विकल्प – देसी और open-source AI प्लेटफॉर्म्स को ट्राई कीजिए। हमारे यहां भी तो प्रतिभाएं हैं, सिर्फ foreign टूल्स पर निर्भर क्यों रहें? थोड़ा मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन कुछ भी नहीं!
एक बात और – ये सब पढ़कर परेशान मत होइए। टेक्नोलॉजी और नीतियां बदलती रहती हैं। आज जो restriction है, कल वो हट भी सकता है। फिलहाल? जागरूक रहिए, adaptive रहिए। बस!
Source: ZDNet – AI | Secondary News Source: Pulsivic.com