शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का वो बयान जिसने मचा दी खलबली: “संविधान ने देश को दो हिस्सों में बांटा?”
मित्रों, क्या आपने NDTV पर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का वो interview देखा? मैं तो सुनकर ही रह गया! उन्होंने भारतीय संविधान के बारे में ऐसा कुछ कह दिया जिसने सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों तक सबको हिलाकर रख दिया। उनका दावा? “संविधान ने देश और समाज को दो हिस्सों में बांट दिया है।” सुनने में भले ही साधारण लगे, लेकिन असल में ये बयान एक तूफान लेकर आया है। और सच कहूं तो, ये सवाल वैसे भी लंबे समय से चला आ रहा है – क्या वाकई हमारा संविधान हमें जोड़ता है या तोड़ता है?
कौन हैं ये शंकराचार्य, और क्यों मायने रखता है उनका बयान?
देखिए, अविमुक्तेश्वरानंद जी कोई आम साधु-संत नहीं हैं। ज्योतिषपीठ के प्रमुख होने के नाते उनकी बात का वजन तो होता ही है। पर यहां बात सिर्फ एक धार्मिक नेता की टिप्पणी से आगे की है। असल में ये तो वही पुरानी बहस है जो Uniform Civil Code, धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यक अधिकारों को लेकर चलती आ रही है। बस, अब ये बहस एक नए मोड़ पर पहुंच गई लगती है।
क्या कहा उन्होंने? समझिए पूरा मामला
Interview में उन्होंने साफ-साफ कहा – “संविधान ने हिंदुओं और दूसरे समुदायों के बीच दीवार खड़ी कर दी है।” और फिर उन्होंने एक ऐसा कानून बनाने की मांग की जो सबके लिए एक जैसा हो। मतलब साफ है न? उनका कहना है कि संविधान के कुछ हिस्से धर्म के आधार पर भेदभाव करते हैं। और सच कहूं तो, Twitter पर #संविधान_विवाद ट्रेंड करते देखकर लगता है कि ये मुद्दा कितना गरमा गया है!
किसने क्या कहा? राजनीति से लेकर सोशल मीडिया तक
अब सवाल यह है कि इस पर प्रतिक्रियाएं क्या आईं? राजनीतिक पार्टियों की बात करें तो भाजपा चुप्पी साधे हुए है – जो अपने आप में एक बयान है। वहीं कांग्रेस तो बिल्कुल आग बबूला हो गई, इसे “संविधान पर हमला” बता रही है। और सामाजिक संगठन? कुछ हिंदू समूह तालियां बजा रहे हैं, जबकि मानवाधिकार वालों को ये बयान “खतरनाक” लग रहा है। सच कहूं तो, ये मामला अब एक धार्मिक बयान से निकलकर राष्ट्रीय बहस बन चुका है।
आगे क्या? राजनीति पर क्या असर पड़ेगा?
अब सोचिए, आने वाले दिनों में ये मुद्दा कहां जाएगा? मेरी नजर में तो ये बहस और तेज होगी, खासकर चुनावी मौसम को देखते हुए। विपक्ष इसे भुनाने की कोशिश करेगा ही। और कानूनविदों की चिंता? वो कह रहे हैं कि ऐसे बयानों से संविधान की प्रासंगिकता पर सवाल उठ सकते हैं। जो सच में चिंता की बात है।
अंत में बस इतना कहूंगा – ये बयान कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। इसके राजनीतिक और सामाजिक असर लंबे समय तक दिख सकते हैं। अब देखना ये है कि आम जनता और नीति निर्माता इस पर क्या रुख अपनाते हैं। क्योंकि जैसा मैं हमेशा कहता हूं – संविधान सिर्फ किताब में लिखे शब्द नहीं, बल्कि हम सबकी साझा विरासत है।
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Source: NDTV Khabar – Latest | Secondary News Source: Pulsivic.com