शिबू सोरेन की CM कुर्सी का सच: 3 बार गँवाने के पीछे की असली वजह क्या थी?
अरे भाई, झारखंड की राजनीति की बात हो और शिबू सोरेन का ज़िक्र न आए? ये तो वैसा ही है जैसे चाय बनाओ और चीनी ही भूल जाओ! दिशोम गुरु का सफर सचमुच फिल्मी कहानी जैसा है – ऊपर चढ़े, गिरे, फिर उठे, पर कुर्सी उनके हाथ से फिसलती ही रही। तीन बार CM बनने के बाद भी सत्ता टिकी नहीं… सोचिए, क्या वाकई सिर्फ गठबंधन की राजनीति ही जिम्मेदार थी, या फिर कहानी कुछ और ही है? चलो, साथ-साथ जानने की कोशिश करते हैं।
वो मसीहा जिसने झारखंड बनाया, मगर सत्ता संभाल न पाया
सच कहूँ तो, शिबू सोरेन की कहानी झारखंड के आदिवासियों के संघर्ष से जुड़ी है। दुमका से 8 बार सांसद रहे ये नेता राज्य बनाने में तो कामयाब रहे, मगर सत्ता चलाने में… हालात देखिए – 2005 में पहली बार CM बने, और बस 9 महीने में ही गद्दी गँवा बैठे। 2008 में दूबारा मौका मिला तो 2 महीने में ही चुनाव हार गए। 2009 में तीसरी बार कोशिश की, पर इस बार तो सहयोगी दलों ने महज 5 महीने में ही पीठ पीछे छुरा घोंप दिया। है न मजेदार बात – राज्य बनाने वाला नेता खुद उसकी सत्ता नहीं संभाल पाया!
आजकल फिर क्यों चर्चा में हैं गुरुजी?
असल में देखा जाए तो, राजनीति कभी किसी को भूलती ही नहीं। अब जब खुद शिबू सोरेन सक्रिय राजनीति से दूर हैं, तब भी उनका नाम गूँज रहा है। एक तरफ तो बेटा हेमंत सोरेन सत्ता में है, वहीं विपक्ष पुराने घाव खोद रहा है। JMM के भीतर भी अब पुराने मुद्दे उछल रहे हैं। सवाल ये है कि क्या ये सिर्फ राजनीति का खेल है, या फिर झारखंड वास्तव में उस दौर को पीछे छोड़ना चाहता है?
जनता से लेकर नेताओं तक – क्या कहता है मैदान?
JMM वाले तो कहते हैं “गुरुजी को सत्ता नहीं, सेवा चाहिए थी”। विपक्ष वालों का जवाब – “भई साहब, विधायकों का विश्वास जीतना भी तो कोई चीज़ होती है!” राजनीति के जानकारों की राय और दिलचस्प है – उनका मानना है कि “हालांकि शिबू सोरेन का दौर चुनौतियों भरा रहा, मगर आदिवासियों के दिलों में उनकी जगह आज भी कायम है।” सच्चाई शायद इन सबके बीच कहीं है।
आखिर क्या सीख दे गए शिबू सोरेन?
एक तरह से देखें तो, शिबू सोरेन की विरासत झारखंड को गठबंधन सरकारों की मुश्किलों की नज़ीर दे गई है। अब जब हेमंत सोरेन सत्ता में हैं, तो सबकी निगाहें उन पर टिकी हैं – क्या वो पिता की गलतियों से सीख पाएंगे? एक बात तो तय है – राजनीति के इस पाठ को भूलना झारखंड के लिए मुश्किल होगा।
देखिए, बात सिर्फ शिबू सोरेन की सफलता-असफलता की नहीं है। ये तो झारखंड की उस जटिल राजनीति की दास्तान है जहाँ गठबंधन की नाजुक डोर पर सत्ता झूलती रही। और ये कहानी तो अभी लिखी जा रही है, दोस्तों!
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शिबू सोरेन और CM कुर्सी की कहानी… अरे भाई, ये कोई साधारण राजनीतिक ड्रामा नहीं है। ये तो झारखंड की सियासी रंगमंच का वो सीन है जिसमें हीरो भी है, विलन भी है, और प्लॉट ट्विस्ट्स की कमी नहीं। तीन बार सत्ता से बेदखल होना – सोचो तो! क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक नेता के लिए ये कितना दर्दनाक होगा? लेकिन असल में ये सिर्फ शिबू दा की नहीं, पूरे झारखंड की कहानी है।
अब सवाल यह है कि इन सबके पीछे क्या है? सिस्टम की खामियां? नेताओं की महत्वाकांक्षाएं? या फिर जनता की बदलती मनोदशा? देखा जाए तो ये सभी फैक्टर्स काम कर रहे हैं। Online आपको बहुत सारे एनालिसिस मिल जाएंगे, पर सच तो ये है कि झारखंड की राजनीति समझने के लिए सतह से नीचे उतरना पड़ेगा।
और हां, ये कोई ‘एंड ऑफ स्टोरी’ वाला मामला नहीं। अधूरी कहानियां तो राजनीति में आम बात हैं, है न? जैसे बीच सीरियल में टीवी बंद हो जाए… वैसा ही कुछ। फिर भी, ये इतिहास का वो पन्ना है जिसे भूला नहीं जा सकता। सच कहूं तो, अगर आपको झारखंड की राजनीति समझनी है, तो शिबू सोरेन के उतार-चढ़ाव को समझना ही पड़ेगा। बिना इसके, पजल का एक बड़ा टुकड़ा हमेशा गायब रहेगा।
(Note: I’ve maintained the original HTML `
` tags as instructed, preserved English words like “Online” and “CM” in Latin script, and added conversational elements while breaking the flow naturally. The text now has rhetorical questions, relatable analogies (TV serial reference), and shows a thinking process rather than just stating facts.)
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com