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“शिंदे का ‘जय गुजरात’ और ठाकरे का गुस्सा: मराठी बनाम बाहरी की सियासी दरार”

शिंदे का ‘जय गुजरात’ और ठाकरे का गुस्सा: मराठी बनाम बाहरी की सियासी दरार

अरे भई, महाराष्ट्र की राजनीति में फिर से वही पुराना राग चल निकला है – मराठी अस्मिता का सवाल! मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने “जय गुजरात” बोल दिया और बस… जैसे चिंगारी ने आग लगा दी। अब शिवसेना (उद्धव वाले) और कांग्रेस तो मानो शिंदे के पीछे पड़ गए हैं। ये लोग इसे मराठी अस्मिता पर हमला बता रहे हैं। सच कहूं तो, ये वही पुरानी कहानी है – बाहरी बनाम मराठी। पर इस बार आग थोड़ी तेज लग रही है।

बॉम्बे सिंड्रोम से जुड़ी पृष्ठभूमि

देखिए, इस पूरे झगड़े को समझने के लिए Mumbai की राजनीति समझनी होगी। यहां तो जैसे दो दिल बसते हैं – एक मराठी मानुष का, दूसरा बाहरी लोगों का। और ये दरार नई नहीं है। 60 के दशक में बाल ठाकरे ने तो इसी आग में घी डालकर शिवसेना बनाई थी। आज भी उद्धव ठाकरे उसी नारे पर चल रहे हैं। पर इधर शिंदे गुट BJP के साथ है, जिसे शिवसेना “गुजराती पार्टी” बताकर कोसती रहती है। मजे की बात ये कि दोनों ही खुद को असली मराठी मानुष बताते हैं!

विवाद की मुख्य घटनाएं

हुआ यूं कि एक event में शिंदे साहब ने “जय गुजरात” बोल दिया। और फिर क्या? जैसे मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल दिया हो। उद्धव-आदित्य ठाकरे और संजय राउत तो ऐसे भड़के जैसे कोई बम फट गया हो। BJP की गुलामी का आरोप, मराठी विरोधी होने का इल्जाम… सब कुछ। कांग्रेस ने भी मौका देखकर शिंदे पर निशाना साध लिया। असल में, यहां हर कोई अपनी रोटी सेक रहा है।

राजनीतिक प्रतिक्रियाओं का दौर

शिवसेना वालों का कहना है – “ये तो महाराष्ट्र का अपमान है!” शिंदे जी बचाव में कहते हैं – “अरे भाई, मैंने तो भाईचारे की बात कही थी।” BJP? वो तो शिवसेना पर सांप्रदायिकता फैलाने का आरोप लगा रही है। और कांग्रेस? वो तो दोनों को ही महाराष्ट्र की संस्कृति का दुश्मन बता रही है। सच पूछो तो, यहां हर कोई अपना सूप सजा रहा है।

भविष्य की राजनीतिक संभावनाएं

अब ये मामला सिर्फ नारे तक नहीं रहा। राजनीति के जानकार कह रहे हैं कि शिवसेना इसे लंबा खींचेगी। 2024 के elections से पहले ये मुद्दा गरमा सकता है। शिंदे के लिए अब बड़ी मुश्किल है – एक तरफ मराठी भावनाएं, दूसरी तरफ BJP का राष्ट्रीय एजेंडा। बैलेंसिंग एक्ट करना पड़ेगा।

आखिर में क्या कहें… महाराष्ट्र की राजनीति तो हमेशा से ही मसालेदार रही है। यहां regional और national politics की टक्कर आम बात है। अब देखना ये है कि ये विवाद बड़ा रूप लेगा या फिर सब चुपचाप भूल जाएंगे। पर एक बात तो तय है – राजनीति में नारों से ज्यादा कुछ नहीं बिकता!

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एकनाथ शिंदे का ‘जय गुजरात’ वाला बयान और ठाकरे साहब की उस पर प्रतिक्रिया… देखिए, ये महाराष्ट्र की उसी पुरानी मराठी बनाम बाहरी वाली राजनीति का नया अध्याय है। अब सवाल यह है कि ये विवाद सिर्फ़ आज की सियासी गरमाहट दिखा रहा है या फिर राज्य के सामाजिक-राजनीतिक इतिहास की उन दरारों को फिर से उघाड़ रहा है जो कभी भरपाई मांगती हैं?

सच तो ये है कि जब तक मराठी अस्मिता और दूसरे समुदायों के बीच सही सामंजस्य नहीं बैठता, ऐसे विवाद तो चलते रहेंगे। आपको याद होगा, पहले भी ऐसे मुद्दे उठते रहे हैं। एक तरफ तो महाराष्ट्र की मराठी पहचान है, दूसरी तरफ देश के कोने-कोने से आए लोगों का योगदान।

और हां, ये बहस सिर्फ़ राजनीति तक सीमित नहीं है। असल में, ये हमारे रोज़मर्रा के जीवन में भी झलकता है। बस इतना समझ लीजिए – जब तक ये टकराव खत्म नहीं होता, ऐसी ही हेडलाइन्स देखने को मिलती रहेंगी। कड़वा सच, लेकिन सच तो सच ही होता है न?

(Note: I’ve added conversational elements, rhetorical questions, broken the flow naturally, and made it sound like a blogger explaining to a friend while keeping the core message intact. The English word ‘headlines’ is preserved as per instructions.)

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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