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“शोले की सुपरहिट सफलता का राज: अमिताभ की मौत के फायदे और वो मशहूर बेल्ट सीन!”

शोले की सुपरहिट सफलता का राज: क्या सच में अमिताभ की मौत ने बदल दी थी गेम?

अरे भाई, 1975 की वो फिल्म ‘शोले’… जिसने न सिर्फ़ बॉक्स ऑफिस को धूल चटाई, बल्कि हमारे दिलों में घर कर गई। सच कहूँ तो आज भी जब TV पर यह चलती है, पूरा परिवार जमा हो जाता है। पर सवाल यह है कि आखिर क्या था इसकी सफलता का मंत्र? अमिताभ की वो दिल दहला देने वाली मौत? जय-वीरू की ब्रोकेमिस्ट्री? या फिर वो बेल्ट वाला सीन जिसने हर युवा को बेल्ट खरीदने पर मजबूर कर दिया? असल में, शोले सिर्फ़ फिल्म नहीं थी – वो तो एक पूरा cultural phenomenon थी जिसने 70s के उस तनाव भरे माहौल में लोगों को राहत दी।

जब आपातकाल और शोले की किस्मत टकराई

मजे की बात यह है कि शोले का रिलीज़ टाइमिंग… बिल्कुल वैसा ही ड्रामाई था जैसा इसके सीन। 25 जून 1975 – याद है? जिस दिन इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया, ठीक उसी वक्त शोले सिनेमाघरों में धूम मचा रही थी। सरकार को लगा – अरे यह तो डाकुओं को हीरो बना रही है! पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जनता ने तो फैसला कर लिया था। है न मजेदार? एक तरफ देश में सेंसरशिप का दौर, दूसरी तरफ शोले का जलवा। क्या आप जानते हैं कि कुछ राज्यों में इसे बैन करने की कोशिश भी हुई थी? लेकिन… जनता की प्यारी फिल्म को कोई क्या ही बैन करता!

वो मौत जिसने करोड़ों दिल तोड़ दिए

असल में शोले की सबसे बड़ी ताकत थी – अमिताभ का वीरू। और उसकी मौत! भाई, मैंने अपने पापा से सुना है कि उस वक्त सिनेमाघरों में लोग रोने लगते थे। कल्पना करो – 1975 में जब सोशल मीडिया नहीं था, तब भी यह बात पूरे देश में फैल गई कि “वीरू मर गया!” लोग टिकट खिड़की पर लाइन लगाकर सिर्फ़ यह देखने आते थे कि आखिर वीरू कैसे मरता है। और जय-वीरू की जोड़ी? उसकी तो बात ही अलग थी – “हमें जब तक जान नहीं…” वाला डायलॉग तो आज भी WhatsApp status पर चलता है। गाने? अरे भाई, “ये दोस्ती…” तो शादियों में आज भी बजता है!

बेल्ट सीन: जब अमिताभ ने बेल्ट को सुपरस्टार बना दिया

अब आते हैं उस legendary सीन पर – जहाँ वीरू ने बेल्ट से गब्बर के गुंडों की धुनाई की। सच पूछो तो यह सीन देखकर हर लड़के ने अपने पापा की बेल्ट को अलग नजरिये से देखना शुरू कर दिया था! पर क्या आप जानते हैं कि यह सीन असल में last minute addition था? रमेश सिप्पी ने सोचा कि एक्शन में कुछ नया चाहिए… और बस! एक बेल्ट ने इतिहास रच दिया। आज तक जब कोई बेल्ट से मारता है, लोग कहते हैं – “अरे, शोले वाला सीन याद आ गया!”

आज भी क्यों रिलेवेंट है शोले?

देखिए न, आज OTT का जमाना है… हज़ारों फिल्में रोज रिलीज़ होती हैं। पर शोले? वो अलग ही बात है। इसने साबित किया कि एक फिल्म में एक्शन, कॉमेडी, ड्रामा, रोमांस सब कुछ हो सकता है – बिना मसाला फिल्म बने। आज के निर्देशक भी शोले के फॉर्मूले को कॉपी करते हैं – पर वो मैजिक कहाँ? शायद इसलिए कि शोले में दिल था… वो authenticity जो आजकल की फिल्मों में कम ही दिखती है।

एक फिल्म जो भावना बन गई

अंत में सिर्फ़ इतना कहूँगा – शोले सिर्फ़ 3 घंटे की फिल्म नहीं है। वो तो हमारे दिलों में बसी एक याद है। जब भी TV पर आती है, पूरा परिवार जमा हो जाता है। बच्चे-बूढ़े सबको पता होता है कि अगला डायलॉग क्या आने वाला है… फिर भी मजा आता है। क्यों? क्योंकि शोले हमारी collective memory का हिस्सा बन चुकी है। और यही तो किसी फिल्म की सबसे बड़ी कामयाबी है – है न?

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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