क्या भारत को तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर चाहिए? एक नौसेना अधिकारी ने बताई असली कहानी!
अरे भाई, भारतीय नौसेना को लेकर यह बहस तो चलती रहती है – हमें और जहाज चाहिए या नहीं? लेकिन अब एक वरिष्ठ अधिकारी, जिन्होंने खुद रूस के साथ वो बड़ी एयरक्राफ्ट कैरियर डील की थी, ने साफ कह दिया है – “तीसरा कैरियर ज़रूरी है!” सच कहूँ तो उनकी बात में दम तो है। हमारी समुद्री सुरक्षा और दबदबे के लिए यह कदम अहम हो सकता है। पर साथ ही सच यह भी है कि यह खेल 40-50 हज़ार करोड़ का है… और सरकार अभी तक ‘हाँ’ या ‘ना’ नहीं कह पाई है।
हमारे पास पहले से क्या है?
देखिए, अभी हमारे पास दो कैरियर हैं – आईएनएस विक्रमादित्य (रूस वाला) और आईएनएस विक्रांत (देसी निर्माण)। ये दोनों हमारी सीमाओं की रखवाली कर रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि चीन ने हिंद-प्रशांत में अपने तीन कैरियर के साथ दबदबा बना लिया है। तो सवाल यह है – क्या हम पीछे रह सकते हैं? एक तरफ तो Make in India का फायदा भी है, दूसरी तरफ खर्चे का सवाल भी। मुश्किल चुनाव है!
क्या फायदे, क्या दिक्कतें?
नौसेना के बड़े अधिकारियों का कहना तो साफ है – चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए यह ज़रूरी है। पर सरकार को लागत का डर सता रहा है। अब यहाँ दिलचस्प बात यह है कि इस नए कैरियर में EMALS जैसी हाई-टेक चीज़ें भी हो सकती हैं। मतलब? और भी ज़्यादा ताकतवर! लेकिन… हमेशा की तरह एक बड़ा ‘लेकिन’ – पैसा कहाँ से आएगा?
क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट्स?
नौसेना प्रमुख का स्टैंड क्लियर है: “तीसरा कैरियर ज़रूरी है, पर धैर्य से काम लेना होगा।” वहीं रक्षा मंत्रालय वाले कह रहे हैं – “पहले कॉस्ट-बेनिफिट एनालिसिस तो हो जाए।” और सुरक्षा विशेषज्ञ? उनकी राय में तो चीन के तीन कैरियर देखकर हमें भी तेज़ी से आगे बढ़ना चाहिए। सच मानिए, हर तरफ़ से अलग-अलग राय आ रही हैं!
आगे की राह क्या है?
मान लीजिए सरकार हाँ भी कर दे, तो यह कैरियर बनने में 7-10 साल तो लग ही जाएँगे। पर यह हमें ग्लोबल नेवल पावर बनाने में मदद करेगा। असल में, यह सिर्फ़ एक जहाज़ नहीं, बल्कि हमारी ताकत का प्रतीक होगा। हालाँकि अभी बजट, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर जैसे मुद्दे सुलझने बाकी हैं। कुछ एक्सपर्ट्स तो यहाँ तक कह रहे हैं कि पनडुब्बियों पर भी ध्यान देना चाहिए। सही बात है!
तो फाइनल वर्ड क्या है?
सच तो यह है कि तीसरा कैरियर हमारी ज़रूरत तो है, पर साथ ही यह एक बड़ी चुनौती भी है। सरकार को इसके साथ-साथ दूसरी रक्षा ज़रूरतों का भी ख्याल रखना होगा। आखिरकार, यह फैसला हमारी सुरक्षा रणनीति और आर्थिक स्थिति पर निर्भर करेगा। एक बात तय है – अगर यह प्रोजेक्ट पास होता है, तो यह भारत के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है। क्या आपको नहीं लगता?
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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com