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अंतरिक्ष में बेटे से पूछना चाहती हैं ये सवाल, शुभांशु शुक्ला की मां का NDTV को खास इंटरव्यू

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अंतरिक्ष में बेटे से ये सवाल पूछने को बेताब हैं मां: शुभांशु शुक्ला की मां ने NDTV को खुलकर बताई दिल की बात

एक मां का सपना, एक बेटे की उड़ान

भारत का space mission अब सिर्फ साइंस की किताबों तक नहीं रहा। ISRO के नए astronaut शुभांशु शुक्ला ने जिस तरह से अपनी जगह बनाई है, वो किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। असल में, NDTV ने इसी मौके पर उनकी मां और बहन निधि से खास बातचीत की। और सुनिए तो…परिवार की आंखों में चमक और आवाज़ में गर्व साफ झलक रहा था!

कैसा था शुभांशु का बचपन?

मस्ती में भी अनुशासन

बहन निधि याद करते हुए हंस पड़ीं, “भैया बचपन से ही दो कदम आगे सोचते थे। पढ़ाई हो या खेल, हर चीज़ को लेकर serious रहते। मगर ये मत समझिए कि बोरिंग थे – एक बार तो टीचर की चॉक छुपाकर पूरी क्लास को हंसा दिया था!” देखा जाए तो यही balance आज उन्हें space तक ले गया।

सितारों तक पहुंचने की कहानी

कॉलेज के दिनों से ही शुभांशु का दिल rockets और satellites के पीछे भागता था। ISRO की tough training में टिके रहना आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। आज वो न सिर्फ अपने, बल्कि पूरे देश के सपनों को लेकर space में हैं।

परिवार के दिल की धड़कन

मां का सवालों का पिटारा

मां की आंखें नम हो गईं जब उन्होंने बताया, “रोज सोने से पहले मैं चांद-तारों को देखकर उससे बात करती हूं। पूछूंगी – beta, वहां खाने में क्या मिलता है? Earth कैसी दिखती है? सबसे ज्यादा…क्या मिस करते हो घर का खाना?” एक मां की फिक्र तो होगी ही न!

बहन का अपना अंदाज

निधि ने चुटकी लेते हुए कहा, “मैं तो उससे पूछूंगी – भैया, वहां WiFi speed कैसी है? Instagram के reels चलते हैं या नहीं?” लेकिन गंभीर होते हुए उन्होंने कहा कि space में mental health को लेकर भी चिंता होती है।

क्यों खास है ये मिशन?

हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा

आज कोई बच्चा अगर कहता है कि वो astronaut बनना चाहता है, तो ये कोई बड़ी बात नहीं लगती। शुभांशु जैसे लोगों ने ये साबित कर दिया कि भारत के लड़के भी space में अपना लोहा मनवा सकते हैं। ये सफर सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, पूरे देश का है।

Zero gravity में जिंदगी

सोचिए तो…जहां पानी का ग्लास छोड़ो तो हवा में तैरने लगे! Space में रहना कोई आसान बात नहीं। शुभांशु ने इसके लिए years की training ली है, लेकिन फिर भी परिवार की चिंता तो रहेगी ही। मगर याद रखिए, यही challenges तो history बनाते हैं!

आखिरी बात

शुभांशु की कहानी हमें ये सिखाती है कि सपने देखने की उम्र नहीं होती। चाहे कोई छोटा सा गांव हो या बड़ा शहर…अगर जज़्बा हो तो stars भी आपके बस में हैं। हम सभी Indians की तरफ से उनके लिए best wishes – जल्दी से safe और healthy वापस आ जाओ बेटा, मां के हाथ का खाना तो बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है!

Source: NDTV Khabar – Latest | Secondary News Source: Pulsivic.com

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