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दक्षिण भारत का अनोखा रिवाज़: जहाँ उच्च जाति की महिलाएं रखती थीं एक साथ कई पति!

दक्षिण भारत का वो अनोखा रिवाज़ जिसके बारे में जानकर आपका दिमाग चकरा जाएगा!

असल में भारत की खूबसूरती ही इसकी विविधता में है, है न? और दक्षिण भारत… वो तो जैसे अपने आप में एक अलग ही दुनिया है। आज हम बात करने वाले हैं केरल के नायर समुदाय की उस हैरान कर देने वाली प्रथा की जहाँ उच्च जाति की महिलाएं एक साथ कई पति रख सकती थीं। जी हाँ, आपने सही सुना! ‘संबंधम’ नाम की ये प्रथा सुनने में जितनी अजीब लगती है, उसकी असलियत उससे भी ज़्यादा दिलचस्प है। चलिए, इस ऐतिहासिक परंपरा को थोड़ा गहराई से समझते हैं।

ये संबंधम प्रथा आखिर थी क्या बला?

देखिए, ये कोई आम शादी-ब्याह की कहानी नहीं थी। नायर समाज में ये एक खास तरह का रिश्ता होता था जहाँ एक औरत कई मर्दों के साथ ‘संबंध’ बना सकती थी। पर यहाँ एक बात समझ लीजिए – ये आजकल के polyandry जैसा बिल्कुल नहीं था। असल में तो पुरुषों की भूमिका बस रात के वक्त तक ही सीमित थी! दिन में वो महिला के घर आ ही नहीं सकते थे। और सबसे मज़ेदार बात? बच्चों की जिम्मेदारी पूरी तरह से माँ और उसके भाइयों (यानी मामाओं) पर होती थी, असली पिता पर नहीं। कुछ-कुछ वैसा ही जैसे आजकल joint family में होता है, बस थोड़ा उल्टा!

इस प्रथा के नियम-कायदे: जानकर हैरान रह जाएंगे आप

अब आप सोच रहे होंगे कि भला ऐसा कैसे चलता होगा? तो सुनिए, इसके अपने ही कुछ अनोखे नियम थे। पहली बात तो ये कि इसमें कोई बिगड़ैल बारात या सात फेरे वाली शादी नहीं होती थी – बस एक सामाजिक समझौता। दूसरी बात, अगर किसी को रिश्ता तोड़ना हो तो बस इतना ही कह दो – खत्म! कोई तलाक का झंझट नहीं। और बच्चे? उन पर तो पिता का कोई हक ही नहीं होता था। सारे अधिकार माँ के परिवार के पास। क्या आप कल्पना कर सकते हैं आज के ज़माने में ऐसा होता तो?

समय के साथ क्या हुआ इस प्रथा का?

नायर समाज में तो ये चलन काफी समय तक चला, लेकिन जब अंग्रेज़ आए तो उनके साथ आए ईसाई मिशनरियों को ये प्रथा जंची नहीं। सोने पर सुहागा, 19वीं सदी आते-आते ये धीरे-धीरे खत्म हो गई। पर हैरानी की बात ये कि केरल में आज भी मातृसत्तात्मक परंपराओं के कुछ निशान मिल जाएंगे। वैसे अब नायर समुदाय भी बाकी भारत की तरह शादी-ब्याह करने लगा है, लेकिन इतिहासकार मानते हैं कि ये प्रथा अपने समय में समाज के लिए काफी फायदेमंद रही होगी।

कुछ भ्रम भी, कुछ सच भी

लोग अक्सर इस प्रथा को लेकर गलतफहमियों का शिकार हो जाते हैं। कोई इसे बहुपतित्व समझ बैठता है, कोई इसे यौन स्वतंत्रता का प्रतीक। पर असलियत? ये न तो polyandry था, न ही कोई मौज-मस्ती का तरीका। बल्कि ये तो जातीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता का एक समझदारी भरा तरीका था। हर चीज़ के अपने नियम थे, हर भूमिका स्पष्ट थी। समझ गए न माजरा?

तो क्या सीख मिलती है हमें?

देखा जाए तो संबंधम प्रथा हमें ये याद दिलाती है कि समाज की अवधारणाएं हमेशा से बदलती रही हैं। आज जो हमें अजीब लगता है, वो कभी सामान्य था। और कौन जाने, आज जो हमें सामान्य लगता है, वो कल को अजीब हो जाए! ऐसी ऐतिहासिक प्रथाओं के बारे में जानना हमें अपने समाज को बेहतर तरीके से समझने में मदद करता है। सोचिए, अगर ये प्रथा आज भी चल रही होती तो?

अब आपकी बारी!

कभी सुना था इस प्रथा के बारे में? मेरा तो पहली बार सुनकर दिमाग ही घूम गया था! आपको क्या लगता है – क्या ऐसी प्रथाएँ समाज के लिए अच्छी होती हैं या नहीं? नीचे कमेंट में बताइए, हमें आपकी राय जानने की उत्सुकता है। और हाँ, अगर आपको ये जानकारी दिलचस्प लगी हो तो शेयर ज़रूर करें!

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दक्षिण भारत का यह अनोखा रिवाज़ सुनकर हैरानी होती है, है न? सच कहूं तो, हमारी संस्कृति में शादी और समाज की बनावट को लेकर कितने अलग-अलग नियम रहे हैं, यह जानकर दिमाग़ घूम जाता है। अब सोचिए – उच्च जाति की औरतें एक साथ कई पतियों के साथ रहती थीं! सुनने में थोड़ा अजीब लगता है, मगर यह सच्चाई थी। और सिर्फ़ इतिहास का किस्सा भर नहीं, बल्कि यह बात औरतों के समाज में मज़बूत दर्ज़े की भी गवाही देती है।

अब, आज के ज़माने में यह चलन तो खत्म हो चुका है। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि हमारी विरासत में ऐसे कितने राज़ दफ़्न हैं जिनके बारे में हमें पता भी नहीं। एक तरफ तो हम आधुनिक होने की बात करते हैं, दूसरी तरफ हमारा इतिहास इतना रंगीन और प्रगतिशील रहा है। है न मज़ेदार बात?

वैसे, इस बात से इनकार नहीं कि आज के context में यह प्रथा थोड़ी अटपटी लगती है। पर फिर भी, हमारी संस्कृति की यह बारीकियां ही तो हैं जो हमें दुनिया से अलग बनाती हैं। सोचिए, अगर आज भी ऐसा होता तो कैसा होता? मज़ाक की बात नहीं, सच में!

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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