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स्पेस स्टेशन सिर्फ 400 KM दूर, फिर भी कैप्सूल को लगते हैं 6 घंटे? रहस्य जानकर हैरान रह जाएंगे!

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ISS सिर्फ 400 KM ऊपर, फिर भी कैप्सूल को लगते हैं 6 घंटे? असली वजह जानकर दिमाग चकरा जाएगा!

क्या आपने कभी सोचा?

अरे भाई, ISS तो हमारे सिर के ठीक ऊपर (400 KM) चक्कर काट रहा है। फिर भी वहाँ पहुँचने में Dragon जैसे कैप्सूल को पूरे 6 घंटे क्यों लग जाते हैं? चलो आज इसी गुत्थी को सुलझाते हैं।

1. ISS है बड़ा शरारती!

1.1 स्थान से ज्यादा अहम है स्पीड

ISS सिर्फ 400 KM ऊपर नहीं है, बल्कि 27,600 KM प्रति घंटा की रफ्तार से भाग भी रहा है! ये ऐसा है जैसे कोई बुलेट ट्रेन पर चढ़ने की कोशिश करे।

1.2 सीधे पहुँचना है नामुमकिन

असल में, अंतरिक्ष में कोई ‘सीधा रास्ता’ होता ही नहीं। आपको ISS के साथ-साथ चलना पड़ता है, वरना टकराने का डर रहता है।

2. धीरे-धीरे चले, पर सही चले

2.1 पहले पाँव पसारो

Rocket से निकलने के बाद कैप्सूल ISS से नीचे वाली कक्षा में जाता है। ये ऐसा है जैसे आप किसी को पकड़ने के लिए पहले थोड़ा पीछे हटो।

2.2 फिर शुरू होता है खेल

Engine को कई बार चलाकर (जिसे हम ‘फायर’ कहते हैं) कैप्सूल धीरे-धीरे अपनी कक्षा ऊपर ले जाता है। ये प्रक्रिया बिल्कुल सीढ़ियाँ चढ़ने जैसी है।

2.3 आखिरी पड़ाव है सबसे ट्रिकी

Docking के वक्त गलती की कोई गुंजाइश नहीं! कैप्सूल को बिल्कुल सही एंगल और स्पीड से ISS से जुड़ना होता है।

3. इतना वक्त क्यों?

3.1 पैसे बचाने की जुगत

सीधे चढ़ने में fuel ज्यादा खर्च होता। ये phased approach ऐसा ही है जैसे AC को 18° पर चलाने की बजाय 24° पर चलाओ – कूलिंग भी हो जाएगी, बिजली भी कम लगेगी!

3.2 गलती की कोई जगह नहीं

अंतरिक्ष में हर चीज बहुत तेजी से होती है। धीमी गति से चलने पर control बेहतर रहता है। सोचो जैसे नई कार को पहले 60 KM प्रति घंटा ही चलाओ।

3.3 गणित का जादू

यहाँ physics के नियम सख्त हैं। ISS और कैप्सूल की स्पीड, दिशा, गुरुत्वाकर्षण – सबका पूरा हिसाब लगाना पड़ता है।

4. पहले और अब

4.1 टेक्नोलॉजी ने बदली गेम

Soyuz के जमाने में तो 2 दिन लग जाते थे! आज के smart systems ने इसे महज 6 घंटे कर दिया है।

4.2 भविष्य और भी तेज

SpaceX और NASA मिलकर ऐसी automated systems बना रहे हैं जो इस समय को और कम कर देंगी। शायद अगले दशक तक ये 2-3 घंटे हो जाए!

5. हमारा नजरिया

ये पूरी प्रक्रिया हमें सिखाती है कि बड़े लक्ष्य के लिए धैर्य जरूरी है। हमारे astronaut शुभांशु शुक्ला का यह मिशन न सिर्फ भारत के लिए गर्व की बात है, बल्कि ये हमें दिखाता है कि अंतरिक्ष की दुनिया में अभी बहुत कुछ एक्सप्लोर करना बाकी है। सोचो, अगर 400 KM जाने में इतना विज्ञान लगता है, तो मंगल तक का सफर कितना रोमांचक होगा!

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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