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छात्र आत्महत्या: सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी – पेरेंट्स और कोचिंग सेंटर्स के लिए आंखें खोलने वाली बातें

छात्र आत्महत्या: सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा, वो हर माता-पिता और कोचिंग वालों को सुनना चाहिए

एक कड़वी सच्चाई जिससे हम सालों से आँखें चुरा रहे थे, अब सुप्रीम कोर्ट ने उसे सीधे-सीधे कह दिया है। वो क्या? ये कि हमारी पूरी पढ़ाई की व्यवस्था धीरे-धीरे बच्चों को खा रही है। सच कहूँ तो, ये कोई नई बात नहीं है – पर अब कोर्ट ने माता-पिता, कोचिंग सेंटर्स और स्कूलों को सख्त हिदायत दी है कि बच्चों के mental health को लेकर गंभीर हो जाओ। और ये आदेश ऐसे वक्त आया है जब competitive exams के चक्कर में बच्चों के मरने की खबरें रोज़ की बात हो गई हैं।

अगर पिछले 10 साल के आँकड़े देखें, तो स्थिति डरावनी है। कोटा से लेकर दिल्ली-मुंबई तक, हर जगह बच्चे दबाव में आत्महत्या कर रहे हैं। NCRB के 2022 के डेटा ने तो मानो सबको झकझोर दिया – साल भर में 13,000 से ज़्यादा छात्रों ने खुदकुशी की! और हैरानी की बात ये कि ज़्यादातर मामलों में competitive exams का पागलपन ही मुख्य वजह था। सुप्रीम कोर्ट ने एक PIL पर सुनवाई करते हुए जो टिप्पणी की, वो शायद हमारी शिक्षा व्यवस्था के लिए एक झटका है।

अब कोर्ट ने क्या-क्या गाइडलाइन्स दी हैं? देखिए, ये कोई सामान्य सुझाव नहीं हैं – ये तो पूरे सिस्टम को बदल देने वाले आदेश हैं। पहली और सबसे ज़रूरी बात – हर स्कूल और कोचिंग में अब professional counselors होने चाहिए। दूसरा, teachers और स्टाफ को mental health awareness की ट्रेनिंग देना अब optional नहीं, mandatory होगा। और हाँ, माता-पिताओं के लिए सीधी चेतावनी – बच्चों पर marks का वो ज़ुल्मी दबाव बंद करो! सरकारों को भी हिदायत दी गई है कि student helplines और support systems को मज़बूत करें।

इस फैसले पर लोगों की क्या राय है? सच पूछो तो मिली-जुली। शिक्षाविदों का कहना है कि ये सही दिशा में एक कदम है, पर साथ ही वो ये भी कह रहे हैं कि “अब इम्प्लीमेंटेशन देखना बाकी है”। कुछ पेरेंट्स ग्रुप्स ने माना कि हाँ, हम अक्सर बच्चों से उनकी capacity से ज़्यादा उम्मीद कर बैठते हैं। वहीं students की प्रतिक्रिया? एक 12वीं के छात्र ने मुझे बताया – “सर, अच्छे marks तो चाहिए ही, पर ज़िंदगी जीने का मौका भी तो दो!” बिल्कुल सही कहा न?

तो अब सवाल ये है कि आगे क्या? कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को 4 हफ़्ते के अंदर एक action plan बनाकर पेश करने को कहा है। अगर कोचिंग सेंटर्स नए नियमों को ignore करते हैं, तो उन पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। और सबसे बड़ी बात – अब mental health को education system का हिस्सा बनाने पर ज़ोर दिया जाएगा। कई experts का मानना है कि ये फैसला शायद उस बड़े बदलाव की शुरुआत है, जहाँ बच्चे का दिमाग़ी स्वास्थ्य उसके report card से ज़्यादा अहमियत रखेगा। काश ये बदलाव जल्दी आए!

छात्र आत्महत्या और सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी – क्या है पूरा मामला?

आखिर क्यों हमारे बच्चे इतने नाज़ुक होते जा रहे हैं? सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर गंभीर चेतावनी जारी की है, और सच कहूं तो ये सिर्फ कानूनी बात नहीं, बल्कि हम सभी के लिए सोचने का मौका है।

1. सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा? असल मुद्दा क्या है?

देखिए, कोर्ट ने साफ़-साफ़ कह दिया है – अब बस नहीं चलेगा! पेरेंट्स और कोचिंग वालों को समझना होगा कि बच्चों पर marks का दबाव डालना उनकी ज़िंदगी से खिलवाड़ करने जैसा है। और सुनिए, अगर कोई कोचिंग student mental health को ignore करेगा, तो अब सीधी कार्रवाई होगी। एकदम सीरियस।

2. पेरेंट्स क्या करें? सिर्फ पढ़ाई नहीं, बच्चे भी तो हैं!

असल में बात बहुत सिंपल है। आपका बच्चा कैसा feel कर रहा है, यह जानना उतना ही ज़रूरी है जितना उसके report card देखना। रोज़ बस 10 मिनट बैठकर पूछिए – “आज दिन कैसा रहा?” बिना judgement के सुनिए। और हां, याद रखिए – हर बच्चा अलग होता है। किसी का IIT crack करना success नहीं, किसी का खुश रहना भी success है।

3. कोचिंग सेंटर्स के लिए नए नियम – सिर्फ पढ़ाई नहीं, care भी ज़रूरी

अब कोचिंग वालों को सिर्फ lectures देकने से काम नहीं चलेगा। कोर्ट ने कहा है – counseling services होनी चाहिए, 18 घंटे की पढ़ाई वाली toxic culture बंद होनी चाहिए। सच तो ये है कि कुछ कोचिंग सेंटर्स ने पढ़ाई को ऐसा pressure cooker बना दिया है कि बच्चे सांस नहीं ले पाते। अब ये सब बदलना होगा।

4. अगर बच्चे में ये लक्षण दिखें तो? नज़रअंदाज़ न करें!

ध्यान दीजिए – अगर बच्चा चिड़चिड़ा हो रहा है, बात-बात पर गुस्सा करता है, या खुद को अलग-थलग कर लेता है, तो ये red flags हैं। ऐसे में “ये तो बचपन की बातें हैं” कहकर ignore मत कीजिए। Professional help लीजिए। Mental health को लेकर हमारे समाज में जो stigma है, उसे तोड़ने का वक्त आ गया है।

आखिर में एक बात – बच्चों को जीना भी तो सिखाइए, सिर्फ पास होना नहीं। क्या पता, यही बात किसी की जान बचा दे…

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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