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37 साल पहले हुए रेप केस में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: 53 वर्षीय दोषी को ‘बच्चों वाली सजा’, जानें पूरा विवाद

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37 साल पुराना रेप केस: सुप्रीम कोर्ट का फैसला जिसने सबको हैरान कर दिया

भारत का न्याय तंत्र कभी-कभी ऐसे फैसले सुनाता है जो सुनने वालों के होश उड़ा देते हैं। अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 1987 के एक सामूहिक बलात्कार मामले में ऐसा ही चौंकाने वाला निर्णय दिया है। 53 साल के आरोपी को दोषी तो ठहराया गया, लेकिन साथ ही ये कहकर कि वो उस वक्त नाबालिग था! अब सवाल ये है कि 37 साल बाद ये फैसला कितना सही है? असल में, अब इस आरोपी को किशोर न्याय बोर्ड के सामने पेश किया जाएगा, जहां उसे ज्यादा से ज्यादा 3 साल के लिए सुधार गृह भेजा जा सकता है। बस।

क्या हुआ था 1987 में? वो भयानक रात…

कहानी शुरू होती है राजस्थान के एक छोटे से गाँव से, जहाँ 1987 में एक नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना हुई थी। आरोपी का दावा है कि उस वक्त उसकी उम्र सिर्फ 16 साल थी – हालाँकि ये बात लंबे समय से विवादों में घिरी रही। मामला इतना लंबा खिंचा कि 2019 में ही ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई। हाई कोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने एक नया ही मोड़ दे दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों बदला खेल?

देखिए, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में गंभीरता से जाँच की। आरोपी के जन्म प्रमाणपत्र और दूसरे दस्तावेजों को ध्यान से देखा। और फिर वो फैसला जिसने सबको चौंका दिया – “घटना के वक्त आरोपी नाबालिग था।” कोर्ट ने साफ किया कि 1986 के किशोर न्याय कानून के मुताबिक, उसे नाबालिग ही माना जाना चाहिए। नतीजा? अब ये मामला किशोर न्याय बोर्ड के पास गया है, जहां सजा की अधिकतम सीमा सिर्फ 3 साल है। है ना हैरान करने वाली बात?

किसको क्या लगा इस फैसले पर?

ईमानदारी से कहूँ तो, इस फैसले पर लोगों की प्रतिक्रियाएँ बिल्कुल मिली-जुली रहीं। पीड़िता का परिवार तो मानो टूट सा गया – “37 साल इंतज़ार के बाद ये न्याय? ये तो मजाक है!” वहीं आरोपी के वकील का कहना है, “मेरा client तो कानूनन नाबालिग था, कोर्ट ने सही फैसला दिया।” महिला संगठनों का कहना है कि ये फैसला पीड़िताओं के लिए एक झटका है। सच कहूँ तो, ये केस साबित करता है कि हमारे कानूनी सिस्टम में कितने loopholes हैं।

आगे क्या होगा? क्या बदलेगा?

अब ये मामला किशोर न्याय बोर्ड के पास है, जो तय करेगा कि आरोपी को कितनी सजा मिले। लेकिन असली सवाल ये है कि क्या इस फैसले से भविष्य में और पुराने मामलों में ऐसी ही गड़बड़ियाँ होंगी? कई experts मानते हैं कि इस केस के बाद किशोर न्याय कानून में बदलाव की माँग तेज होगी, खासकर गंभीर अपराधों के मामलों में।

सच तो ये है कि ये फैसला एक बार फिर हमारी न्याय प्रणाली की कमियों को उजागर करता है। एक तरफ तो कानून का पालन हुआ है, लेकिन दूसरी तरफ न्याय की भावना? वो कहीं खो सी गई लगती है। क्या हमारी व्यवस्था में ऐसे संवेदनशील मामलों को संभालने की क्षमता है? ये सवाल अब हर किसी के मन में उठ रहा है।

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1. सुप्रीम कोर्ट ने इस पुराने केस में आखिर क्या फैसला सुनाया?

देखिए, ये केस तो 1980 के दशक का है – जब हममें से ज्यादातर लोग पैदा भी नहीं हुए थे! कोर्ट ने अब, यानी 2023 में, 53 साल के दोषी को ‘जुवेनाइल सजा’ देने का फैसला किया है। है न हैरान करने वाली बात? असल में, कोर्ट ने उसकी उम्र और केस के इतने साल पुराने होने को ध्यान में रखा। लेकिन सच कहूं तो, ये फैसला कई सवाल खड़े करता है…

2. भईया, ये ‘बच्चों वाली सजा’ आखिर है क्या चीज?

अरे, नाम से ही समझ आ रहा न! जुवेनाइल सजा मतलब वो सजा जो आमतौर पर नाबालिग अपराधियों को दी जाती है। पर यहां तो बात 53 साल के आदमी की हो रही है – थोड़ा अजीब लगता है न? इस सजा में ये हो सकता है:
– जेल की सजा कम हो
– या फिर रिहाई के बाद रिकॉर्ड से केस ही मिट जाए
लेकिन सवाल ये है कि क्या एक वयस्क को ऐसी रियायत मिलनी चाहिए?

3. यार, ये केस इतने सालों तक क्यों चलता रहा?

असल में भारत की न्यायिक व्यवस्था… खैर, आप समझ ही रहे होंगे! यहां तो:
– एक तरफ सबूतों की जांच में ही सालों लग गए
– फिर अपील पर अपील होती रही
– और कोर्ट की तारीखें मिलना तो जैसे लॉटरी जीतने जैसा है!
सच तो ये है कि हमारे यहां 10 साल से पुराने 40% से ज्यादा केस अभी भी लंबित हैं। शर्मनाक, है न?

4. क्या ये फैसला सही है या फिर विवाद पैदा करेगा?

देखिए, यहां दोनों तरफ के लोग हैं:
✓ एक तरफ वो जो कहते हैं – “रेप जैसे जघन्य अपराध में उम्र का बहाना नहीं चलेगा!”
✓ दूसरी तरफ वो जो मानते हैं – “37 साल बाद इंसाफ तो मिला, पर क्या ये सही इंसाफ है?”
सच तो ये है कि ये फैसला लंबे समय तक चर्चा में रहेगा। आपको क्या लगता है – कोर्ट ने सही किया या गलत?

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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