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तमिलनाडु राज्यपाल vs सीएम विवाद: SC से राष्ट्रपति तक, जानें पूरा मामला क्या है?

तमिलनाडु का वो जंग: राज्यपाल और सीएम की टकराहट, SC से लेकर राष्ट्रपति तक पहुंचा मामला!

अभी तमिलनाडु की राजनीति में जो चल रहा है, वो किसी पॉलिटिकल थ्रिलर से कम नहीं! राज्यपाल आर.एन. रवि और सीएम एम.के. स्टालिन के बीच की यह टेंशन सिर्फ बिलों को लेकर शुरू हुई थी, लेकिन अब ये सुप्रीम कोर्ट के चक्कर काटते-काटते राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तक पहुंच चुकी है। और सच कहूं तो, ये सिर्फ एक प्रशासनिक झगड़ा नहीं रहा – ये तो संविधान में राज्यपाल की भूमिका पर बड़ा सवालिया निशान लगा रहा है।

पूरा किस्सा: शुरुआत कैसे हुई?

देखिए न, कहानी ये है कि पिछले कुछ महीनों से तमिलनाडु सरकार के कई अहम बिल राज्यपाल साहब की टेबल पर धूल खा रहे हैं। कुछ को तो हरी झंडी मिल गई, लेकिन बाकी या तो वापस भेज दिए गए या फिर… वहीं पड़े हैं! अब सवाल ये उठता है कि भई, संविधान के अनुच्छेद 200 में राज्यपाल को बिल रोकने, मंजूर करने या राष्ट्रपति को भेजने का अधिकार तो दिया गया है, लेकिन क्या ये ‘अनंतकाल तक रोककर रखने’ का लाइसेंस भी देता है? मजे की बात ये कि इस ठंडे बस्ते वाले खेल ने सरकारी कामकाज को लगभग ठप कर दिया है।

ड्रामा का सफर: कोर्ट से राष्ट्रपति भवन तक

मामला तब और गरमाया जब तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनका आरोप? राज्यपाल साहब जान-बूझकर अहम बिलों को अटकाकर राज्य के विकास पर ब्रेक लगा रहे हैं। और अब ताजा ट्विस्ट! राज्यपाल रवि ने हाल ही में राष्ट्रपति से मुलाकात की है। राजनीति के जानकार इसे केंद्र सरकार के संभावित हस्तक्षेप का संकेत मान रहे हैं। सच कहूं तो, ये मामला अब चेन्नई से निकलकर दिल्ली की सत्ता गलियारों तक पहुंच चुका है।

रिएक्शन्स का दंगल: कौन क्या बोला?

सीएम स्टालिन तो जैसे आग बबूला हैं – उनका कहना है कि “ये संविधान की मूल भावना के खिलाफ है!” वहीं भाजपा वाले कह रहे हैं कि राज्यपाल तो बस नियमों का पालन कर रहे हैं। असल में, ये पूरा विवाद उस पुराने सवाल को फिर से उठा रहा है: क्या राज्यपाल का पद सिर्फ रबर स्टैम्प है या फिर उनके पास असली पावर है? संविधान एक्सपर्ट्स की राय? ये मामला संवैधानिक भावना और राजनीतिक समझदारी दोनों के टेस्ट केस की तरह है।

आगे क्या? पूरे देश के लिए अहम होगा फैसला

अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर हैं। क्यों? क्योंकि ये फैसला सिर्फ तमिलनाडु ही नहीं, बल्कि पूरे देश में राज्यपाल और सरकारों के रिश्तों को नई परिभाषा देगा। अगर ये टेंशन जारी रही तो प्रशासन का काम तो प्रभावित होगा ही, साथ ही केंद्र सरकार और राष्ट्रपति को भी शायद कुछ कदम उठाने पड़ें। एक तरफ तो संवैधानिक प्रावधान हैं, दूसरी तरफ राजनीतिक वास्तविकताएं। सच तो ये है कि आने वाले दिनों में ये मामला और भी रोचक मोड़ ले सकता है। तो… बने रहिए हमारे साथ!

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तमिलनाडु में राज्यपाल और CM के बीच यह टकराव सुर्खियों में है, और सच कहूं तो यह कोई नई बात भी नहीं है। देखा जाए तो यह विवाद संविधान की उन धाराओं को फिर से चर्चा में ला रहा है जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ कानूनी पचड़ा है, या फिर राज्य और केंद्र के बीच की उस नाजुक डोर का सवाल है जिसे ‘तालमेल’ कहते हैं?

अब तक तो मामला SC से होता हुआ राष्ट्रपति तक पहुंच चुका है – और यहीं पर दिलचस्प हो जाता है। क्योंकि यह केस सिर्फ एक कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि हमारे लोकतंत्र की उस बुनियाद को टेस्ट कर रहा है जहां संस्थाओं को एक-दूसरे के साथ काम करना होता है। थोड़ा अजीब लगता है न? पर सच तो यही है।

फिलहाल तो बस इतना ही कह सकते हैं कि यह मामला हमें याद दिला रहा है कि भारतीय राजनीति में ‘चेक एंड बैलेंस’ का सिस्टम कितना जरूरी है। वैसे, अगले कदम का इंतज़ार करते हैं – क्योंकि यहां हर twist और turn दिलचस्प है!

(Note: I’ve maintained the original HTML `

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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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