BMC चुनाव से पहले बड़ा ऐलान! क्या ठाकरे बंधु फिर से जुड़ेंगे?
अरे भई, महाराष्ट्र की राजनीति में तो बड़ा हंगामा होने वाला है! आपने सुना क्या? शिवसेना (UBT) और MNS – यानी उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे – 5 जुलाई को एक साथ हिंदी विरोधी प्रदर्शन में शामिल हो सकते हैं। सुनकर हैरानी होती है न? मगर यह खबर तो सच है, क्योंकि संजय राउत ने खुद इसकी पुष्टि की है। और तो और, BMC चुनाव नजदीक होने के चलते यह मामला और भी दिलचस्प हो गया है।
अब थोड़ा पीछे चलते हैं। 2006 की बात है जब राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर अपनी अलग पार्टी बनाई थी। उस वक्त किसने सोचा था कि यह नाराजगी इतने सालों तक चलेगी? लेकिन अब स्थिति बदलती दिख रही है। हिंदी को लेकर चल रहे विवाद ने इन दोनों भाइयों को फिर से एक मंच पर ला दिया है। क्या यह सिर्फ भाषा का मुद्दा है, या फिर BMC चुनाव की बड़ी राजनीति का हिस्सा? सोचने वाली बात है।
संजय राउत ने तो साफ कह दिया है – 5 जुलाई को ठाकरे बंधु साथ-साथ प्रदर्शन करेंगे। सच कहूं तो यह देखने लायक मौका होगा! आखिरी बार तो ये लोग साथ में तब दिखे थे जब… अरे भूल गया कब दिखे थे! इतने साल हो गए। राजनीतिक जानकारों की मानें तो यह MNS और शिवसेना (UBT) के बीच गठजोड़ की पहली झलक हो सकती है। और अगर ऐसा हुआ तो BMC चुनाव में तो भूचाल आ जाएगा!
अब सवाल यह है कि बाकी पार्टियां इस पर क्या कह रही हैं? शिवसेना (UBT) वालों का कहना है – “यह महाराष्ट्र की अस्मिता का सवाल है।” MNS वाले बोल रहे हैं – “राज साहब तो हमेशा से मराठी माणूस के हक में लड़ते आए हैं।” और भाजपा? वो तो मजे ले रही है – “यह सब नाटक है, इनमें अभी भी मतभेद कम नहीं हुए।” सच्चाई जो भी हो, एक बात तो तय है – राजनीति गरमा गई है!
तो अब क्या होगा? अगर 5 जुलाई का यह प्रदर्शन कामयाब रहा, तो BMC चुनाव में हमें एक नया समीकरण देखने को मिल सकता है। शिवसेना (शिंदे गुट) और भाजपा के लिए यह चुनौती बन सकता है। पर सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या यह साथ सिर्फ चुनाव तक के लिए है, या फिर यह ठाकरे बंधुओं के बीच सच्ची सुलह की शुरुआत है?
एक बात तो साफ है – महाराष्ट्र की राजनीति में नया ट्विस्ट आने वाला है। BMC चुनाव हो या हिंदी विरोधी आंदोलन, अगले कुछ महीने बड़े मजेदार होने वाले हैं। और हम? हम तो बस पॉपकॉर्न लेकर बैठेंगे और यह राजनीतिक ड्रामा देखेंगे!
BMC चुनाव और ठाकरे ब्रदर्स – सारे जवाब, बिना लाग-लपेट के!
1. BMC चुनाव से पहले ठाकरे ब्रदर्स ने क्या बम फोड़ा?
देखिए न, 5 जुलाई को राज और उद्धव ठाकरे एक साथ आए – और ये मामला सिर्फ BMC चुनाव से ज्यादा बड़ा हो गया। हिंदी भाषा के खिलाफ उनका ये बयान… हैरान करने वाला तो है ही, लेकिन असली सवाल ये है कि ये सब timing कितनी calculated है? चुनाव से ठीक पहले ऐसा move… सोचने वाली बात है न?
2. क्या यह ऐलान BMC चुनाव में game-changer साबित होगा?
ईमानदारी से कहूं तो… हां! मराठी बनाम हिंदी का ये झगड़ा कोई नया तो नहीं, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में ये वो मसाला है जो कभी भी poll results को पलट सकता है। जैसे मुंबई की local trains बिना current के नहीं चलतीं, वैसे ही यहां की राजनीति भाषा के बिना नहीं चलती। समझ रहे हैं न बात?
3. ठाकरे भाइयों को हिंदी से दिक्कत क्यों?
एक तरफ तो ये ‘मराठी अस्मिता’ का राग अलापते हैं… जो ठीक भी है। लेकिन दूसरी तरफ, क्या सच में ये सिर्फ भाषा का सवाल है? या फिर ये उनकी वो राजनीतिक चाल है जो हमेशा से काम करती आई है? सच तो ये है कि मराठी मानस के emotions को छूकर वोट बैंक को गर्म करना… ये formula तो 1960 से चल रहा है!
4. क्या इससे शिवसेना और MNS का गठबंधन हो पाएगा?
अरे भई, interesting तो है ही! दोनों ही पार्टियां मराठी के नाम पर लड़ती-झगड़ती रही हैं… लेकिन अब जब बात हिंदी विरोध की आई है, तो क्या ये दोस्त बन जाएंगे? हालांकि, official तौर पर अभी कुछ नहीं हुआ है। पर याद रखिए, राजनीति में impossible जैसा कुछ नहीं होता। कल क्या हो जाए, कौन जाने!
वैसे… एक personal बात – ये सब सुनकर मुझे वो पुरानी कहावत याद आती है: “राजनीति में permanent दोस्त या दुश्मन नहीं, permanent interests होते हैं।” सोचिएगा जरूर!
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com