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बीएमसी चुनाव से पहले ठाकरे ब्रदर्स का बड़ा एक्शन! राज और उद्धव 5 जुलाई को हिंदी विरोध प्रदर्शन में शामिल होंगे?

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बीएमसी चुनाव से पहले ठाकरे बंधुओं का धमाकेदार कदम! क्या 5 जुलाई को राज और उद्धव साथ खड़े होंगे?

अरे भई, महाराष्ट्र की राजनीति में तो जैसे एक साथ कई धमाके हो रहे हैं! सालों से अलग-अलग राह पर चल रहे ठाकरे भाइयों – राज और उद्धव – के बीच अचानक क्या बदलाव आया? 5 जुलाई को होने वाले हिंदी विरोध प्रदर्शन में दोनों के एक मंच पर आने की खबर ने तो जैसे सबको हैरान कर दिया है। शिवसेना (यूबीटी) के संजय राउत ने इसे “महाराष्ट्र की अस्मिता की जंग” बताया है। और सच कहूं तो, यह टाइमिंग बिल्कुल मास्टरस्ट्रोक है – खासकर BMC चुनावों से ठीक पहले!

भाई-भाई, पर राजनीति अलग: ठाकरे परिवार का सफर

याद है 2006 का वो दिन? जब राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर MNS बनाई थी। उस वक्त तो लगा था जैसे परिवार ही नहीं, पूरी महाराष्ट्र की राजनीति दो टुकड़ों में बंट गई। वहीं उद्धव ने बालासाहेब की विरासत संभाली, पर 2022 में शिवसेना फिर से दो फाड़ हो गई – यूबीटी और शिंदे गुट। इन सालों में दोनों भाइयों के बीच क्या-क्या नहीं हुआ – तीखे बयान, राजनीतिक चोट-पेट… लेकिन पिछले कुछ महीनों से जो संकेत मिल रहे थे, वो अब सच होता दिख रहा है। है न दिलचस्प?

हिंदी विरोध प्रदर्शन: असली मकसद क्या है?

असल में कुछ दिन पहले ही राज और उद्धव की निजी मुलाकात हुई थी। और अब 5 जुलाई को मराठी अस्मिता दिवस पर ये संयुक्त प्रदर्शन! कहने को तो यह हिंदी के बढ़ते दखल के खिलाफ है… पर क्या सच में सिर्फ यही वजह है? संजय राउत कह रहे हैं कि यह “मराठी संस्कृति को बचाने” के लिए है। पर राजनीति के जानकारों की नजर में तो यह BMC चुनाव में भाजपा और शिंदे गुट के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। Game changer सच में!

राजनीति गरमाई: कौन क्या बोला?

इस पूरे मामले पर तो हर कोई अपना-अपना राग अलाप रहा है। यूबीटी वाले इसे “ऐतिहासिक” बता रहे हैं, वहीं भाजपा के कुछ नेताओं ने इसे “चुनावी नाटक” करार दिया है। आम जनता की राय भी बंटी हुई है – कुछ लोग इसे सही मान रहे हैं, तो कुछ कह रहे हैं “ये सब दिखावा है”। पर एक बात तो तय है – महाराष्ट्र की सियासत में नया मोड़ आया है।

आगे क्या? क्या यह गठजोड़ टिकेगा?

अब सवाल यह है कि क्या यह साथ लंबे समय तक चलेगा? अगर हां, तो BMC चुनाव में तो भूचाल आ जाएगा! कुछ तो यहां तक कह रहे हैं कि MNS और शिवसेना (यूबीटी) का विलय भी हो सकता है। हालांकि अभी तो यह सिर्फ अटकलें हैं। पर एक बात साफ है – केंद्र और राज्य सरकार को अब इस नए समीकरण पर गंभीरता से सोचना होगा। खासकर जब यह मुद्दा भाषा और संस्कृति से जुड़ा हो। देखते हैं, अगले कुछ दिनों में और क्या-क्या होता है!

बीएमसी चुनाव और ठाकरे ब्रदर्स का विरोध – जानिए क्या है पूरा माजरा?

1. 5 जुलाई को राज-उद्धव किस मुद्दे पर एक साथ उतर रहे हैं?

देखिए, मामला थोड़ा पेचीदा है। ठाकरे बंधु 5 जुलाई को हिंदी भाषा के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन में शामिल होने वाले हैं। अब आप सोच रहे होंगे – ये अचानक क्या हुआ? असल में, ये बीएमसी चुनाव से पहले की एक सोची-समझी चाल है। Political experts इसे game changer मान रहे हैं।

2. बीएमसी चुनाव के लिए ये प्रदर्शन इतना खास क्यों?

अरे भई, सवाल तो बिल्कुल सही उठाया! दरअसल, इस एक्शन से हिंदी बनाम मराठी का पुराना विवाद फिर से गरमा सकता है। और मुंबई में तो ये issue बिल्कुल onion prices जैसा है – छूते ही आंखें नम हो जाती हैं। Local voters के लिए ये emotional chord वाला मुद्दा है।

3. क्या सच में पहली बार एक साथ प्रदर्शन कर रहे हैं दोनों भाई?

नहीं यार, ऐसा बिल्कुल नहीं है। हालांकि राज और उद्धव अलग-अलग दलों से हैं, लेकिन… और यहाँ एक बड़ा लेकिन आता है… जब बात मराठी अस्मिता की आती है, तो ये दोनों एक हो जाते हैं। पहले भी ऐसे कई मौके आए हैं। मराठी माणूस का गर्व, समझिए ना!

4. BMC चुनाव पर क्या पड़ेगा इसका असर? असली सवाल यही तो!

अब यहाँ थोड़ा गणित लगाना पड़ेगा। इस प्रदर्शन से मराठी भावनाएं भड़केंगी, और फिर? Shiv Sena (UBT) और MNS को फायदा मिल सकता है। खासकर उन वोटर्स में जो मुंबई के local issues को लेकर संवेदनशील हैं। पर क्या ये strategy काम करेगी? वो तो 5 जुलाई के बाद ही पता चलेगा। एकदम सस्पेंस वाला मामला है!

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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