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“थाईलैंड-कंबोडिया संघर्ष: क्या भारत-पाकिस्तान जैसी स्थिति बनेगी? ट्रंप का बड़ा ऐलान!”

थाईलैंड-कंबोडिया की तलवारें खिंचीं: क्या यह दूसरा कश्मीर बन जाएगा? और ट्रंप साहब ने तो बम गिरा दिया!

देखिए न, दक्षिण-पूर्व एशिया में फिर से हलचल शुरू हो गई है। थाईलैंड और कंबोडिया – दोनों पड़ोसी देशों के बीच सीमा को लेकर जो झगड़ा चल रहा है, वो अब गोलियों तक पहुँच चुका है। सच कहूँ तो, ये कोई नई बात नहीं है… लेकिन पिछले कुछ दिनों में हालात इतने बिगड़े कि अब अमेरिका तक को बोलना पड़ा! डोनाल्ड ट्रंप ने, जो खुद अभी चुनावी रेस में व्यस्त हैं, इस मामले पर ट्वीट करके सबको चौंका दिया। उन्होंने कहा कि अमेरिका मध्यस्थता के लिए तैयार है। पर सवाल ये है कि क्या वाकई ये विवाद इतना बड़ा हो गया है?

इतिहास की गलतियाँ: जब औपनिवेशिक ताकतों ने छोड़ दी आग

असल में ये पूरा मामला हमारे उस दर्द की तरह है जब अंग्रेजों ने कश्मीर का मसला अधूरा छोड़ दिया था। थाईलैंड और कंबोडिया के बीच ये प्रीह विहार मंदिर (Preah Vihear Temple) वाला विवाद कोई आज का नहीं – ये तो 60 साल पुराना है! 2011 में तो हालात इतने खराब हो गए थे कि सीमा पर गोलीबारी होने लगी थी। ICJ ने 2013 में कंबोडिया के पक्ष में फैसला दिया था, लेकिन थाईलैंड ने माना ही नहीं। ठीक वैसे ही जैसे पाकिस्तान UN के फैसलों को नहीं मानता। और अब ये पुराना घाव फिर से भर आया है।

हाल के हालात: जब बातचीत की जगह गोलियाँ बोलने लगीं

पिछले हफ्ते की बात है – सीमा पर फिर से गोलियाँ चलीं। कम से कम 5 जवान घायल हुए। कंबोडिया तुरंत UN के पास भागा, जबकि थाईलैंड ने कहा – “ये हमारा मामला है, बाहर वालों को दखल नहीं देना चाहिए।” मजे की बात ये कि ट्रंप साहब ने बीच में कूदकर कह दिया कि “अमेरिका मदद करेगा”। पर क्या वाकई? क्योंकि चीन और ASEAN देश भी तो इस मामले में दिलचस्पी रखते हैं। सच तो ये है कि ये सिर्फ दो देशों का झगड़ा नहीं रहा – अब तो बड़ी ताकतों के हित भी जुड़ गए हैं।

कौन क्या कह रहा है? राजनीति का खेल या असली खतरा?

कंबोडिया के PM हुन सेन तो बिल्कुल नरेंद्र मोदी की तरह बोले – “हम आक्रामकता बर्दाश्त नहीं करेंगे!” वहीं थाईलैंड वालों ने भी कम नहीं कहा – “हम अपनी जमीन नहीं छोड़ेंगे।” भारत ने, जैसा कि हमेशा करता है, शांति की अपील की है। पर विशेषज्ञ कह रहे हैं कि अगर ये झगड़ा बढ़ा तो ये भारत-पाकिस्तान जैसी स्थिति बन सकती है। सोचिए, एक और कश्मीर जैसा मसला? बिल्कुल नहीं चाहिए!

आगे क्या? 3 संभावित परिदृश्य

अब सवाल ये है कि आगे क्या होगा? मेरी नज़र में तीन ही रास्ते हैं:
1. या तो ASEAN बीच-बचाव करेगा (पर क्या वो कर पाएगा?)
2. अमेरिका-चीन अपने-अपने हित साधेंगे (और स्थिति और बिगाड़ेंगे)
3. ये विवाद और बढ़ेगा (जो सबसे खराब स्थिति होगी)

एक बात तो तय है – अगर ये आग नहीं बुझी तो पूरा दक्षिण-पूर्व एशिया इसकी चपेट में आ जाएगा। और हम भारतीय भी इससे अछूते नहीं रहेंगे। क्योंकि आज के दौर में कोई भी संघर्ष सिर्फ स्थानीय नहीं रहता। देखते हैं, अगले कुछ दिनों में क्या मोड़ आता है इस कहानी का…

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थाईलैंड-कंबोडिया टेंशन: जानिए पूरा मामला और इसके मायने

1. आखिर क्यों लड़ रहे हैं थाईलैंड और कंबोडिया?

देखिए, असल मुद्दा है सीमा को लेकर झगड़ा – खासकर Preah Vihear Temple वाले इलाके का। ये कोई नई बात नहीं, सालों से चल रहा है ये विवाद। और हां, कई बार तो हिंसक झड़पों तक नौबत आ चुकी है। सच कहूं तो, ये मंदिर तो सिर्फ बहाना है, असली लड़ाई है ज़मीन की।

2. क्या ये भारत-पाकिस्तान जैसा बड़ा विवाद बन सकता है?

अरे नहीं भई! हालांकि तनाव तो है, लेकिन इसे भारत-पाकिस्तान वाली दुश्मनी से compare करना ठीक नहीं। एक तो दोनों ASEAN के सदस्य हैं, दूसरा वो diplomatic तरीकों से हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं। पर सच बात? कभी भी कुछ भी हो सकता है इन देशों में।

3. ट्रंप के बयान का इस झगड़े से क्या लेना-देना?

वैसे तो सीधा कोई कनेक्शन नहीं है। लेकिन जब Donald Trump ने Southeast Asia को लेकर अपनी foreign policy के बारे में बोला, तो region में थोड़ी हलचल ज़रूर हुई। मतलब साफ है – अमेरिका का रुख बदला तो पूरे इलाके का समीकरण बदल सकता है। पर फिलहाल तो ये थाई-कंबोडिया issue से अलग ही चल रहा है।

4. भारत के लिए क्या मायने हैं इस conflict के?

अब यहां समझदारी से सोचना होगा। भारत का तो दोनों देशों के साथ अच्छा रिश्ता है। लेकिन अगर ये झगड़ा बढ़ा तो? एक तो regional stability डगमगाएगी, दूसरा हमारी Act East Policy पर भी असर पड़ सकता है। सीधे शब्दों में कहूं तो – हमें neutral रहते हुए भी अपने हितों का ख्याल रखना होगा।

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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