“TRF का US आतंकी सूची में शामिल होना: जयशंकर-थरूर की कूटनीति vs मुनीर की थाली का खेल”

TRF का US आतंकी सूची में शामिल होना: भारत की कूटनीतिक जीत, पर असल में कितनी बड़ी?

अब ये तो हो गया कि अमेरिका ने अपनी आतंकवादी संगठनों की लिस्ट में “The Resistance Front (TRF)” को डाल दिया। भारत के लिए ये खुशी की बात ज़रूर है, लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सच में इतनी बड़ी जीत है जितनी बताई जा रही है? देखिए, ये TRF वाला संगठन, जिसे हमारी सरकार Lashkar-e-Taiba (LeT) का ही नया चोला बताती है, अब अमेरिकी प्रतिबंधों के चंगुल में फंस गया है। मजे की बात ये कि ये फैसला ऐसे वक्त आया है जब चीन UNSC में TRF के खिलाफ भारत के प्रस्ताव को बार-बार रोकता रहा। तो हां, एक तरफ तो ये आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अहम कदम है, पर दूसरी तरफ ये भारत की कूटनीतिक सूझबूझ का भी सबूत है।

पूरा माजरा क्या है? TRF कौन है और चीन को इसमें दिक्कत क्यों आई?

असल में TRF कश्मीर में सक्रिय एक आतंकी गिरोह है जिसके बारे में हमारी सरकार का कहना है कि ये LeT का ही नया अवतार है। पिछले कुछ सालों में कश्मीर में जो भी हिंसक वारदातें हुईं, उनमें इसी संगठन का हाथ बताया जाता रहा है। लेकिन जब भारत ने UNSC में TRF के खिलाफ कार्रवाई की मांग की, तो चीन ने उसे “पक्षपातपूर्ण” बताकर ठुकरा दिया। साफ दिख रहा है न कि चीन की पाकिस्तान-परस्त नीति कैसे काम कर रही है? वो तो हमेशा से ही भारत-विरोधी आतंकी गुटों को पनाह देता आया है।

वहीं अमेरिका ने भारत के साथ मिलकर intelligence शेयर की और आखिरकार TRF को आतंकी सूची में डाल ही दिया। ये कदम दिखाता है कि भारत और अमेरिका का सुरक्षा सहयोग कितना मजबूत हो चुका है। और सबसे बड़ी बात – ये साबित करता है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में ठोस सबूतों का क्या रोल होता है।

अमेरिका का फैसला: TRF पर बैन और इसके मायने

अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने TRF को “Specially Designated Global Terrorist (SDGT)” घोषित कर दिया है। मतलब क्या? सीधी सी बात – अब TRF से जुड़ा कोई भी अमेरिकी financial transaction नहीं हो पाएगा। और तो और, अमेरिका में इस संगठन से जुड़े किसी भी व्यक्ति या संस्था के साथ पैसों का लेन-देन करना कानूनन जुर्म होगा। भारत सरकार ने इस फैसले का स्वागत किया है, इसे “आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकता” का नमूना बताया है। पर सच कहूं तो ये तो बस शुरुआत है।

किसने क्या कहा? भारत खुश, चीन-पाक चुप

हमारे विदेश मंत्री S. Jaishankar ने इसे “आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त मोर्चे की बड़ी कामयाबी” बताया है। वहीं कांग्रेस के Shashi Tharoor ने सरकार की तारीफ तो की, लेकिन साथ ही UNSC में चीन के रवैये पर सवाल भी उठाए। और पाकिस्तान? अभी तक तो उसकी तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है – हालांकि वो तो हमेशा से ही TRF के अस्तित्व को ही नकारता रहा है। चीन भी इस मामले में गूंगे का गुड़ चबा रहा है – जो उसकी पाक-समर्थक नीति को और भी ज़्यादा उजागर करता है।

आगे क्या? कश्मीर से लेकर वैश्विक राजनीति तक असर

अमेरिका के इस कदम के बाद अब और देश भी TRF पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो इस संगठन की funding और सपोर्ट सिस्टम पर सीधा वार होगा। कश्मीर में इसका फायदा ये हो सकता है कि आतंकी वारदातों में कमी आए। वहीं UNSC में भारत अब और मजबूती से चीन को घेर सकता है। पर सच तो ये है कि चीन की चुनौती अभी बरकरार है। हमें अपनी intelligence और कूटनीति को और भी तेज करना होगा।

आखिरी बात: अमेरिका का ये फैसला भारत के लिए अच्छा ज़रूर है, लेकिन ये लड़ाई अभी लंबी चलने वाली है। चीन और पाकिस्तान की चालों पर नज़र रखते हुए हमें अपनी सुरक्षा और कूटनीति को और मजबूत बनाना होगा। वरना ये जीत बस कागजी साबित होगी।

TRF का US आतंकी सूची में आना सच में बड़ी बात है, है न? देखिए, ये सिर्फ एक औपचारिकता नहीं है – ये भारत की कूटनीति की एक बड़ी जीत है। और हां, इसमें जयशंकर जी और थरूर जैसे नेताओं की मेहनत भी शामिल है। असल में, पाकिस्तान की वो ‘थाली की राजनीति’ जो वो बरसों से चला रहा था, उस पर ये एक करारा प्रहार है।

लेकिन सिर्फ इतना ही नहीं। ये घटना दिखाती है कि आतंकवाद के खिलाफ दुनिया कितनी गंभीर है। और हां, भारत की डिप्लोमेसी की ताकत भी। अब सवाल ये है कि क्या पाकिस्तान अपनी ‘Double Game’ खेलना बंद करेगा? क्योंकि अब तो बात साफ हो चुकी है – आतंकवाद की जड़ों पर वार किए बिना चैन से बैठने वाला नहीं।

TRF का US आतंकी सूची में शामिल होना: जयशंकर-थरूर की कूटनीति या मुनीर का ‘थाली का खेल’? FAQs समझें

TRF को US आतंकी सूची में क्यों डाला गया?

असल में सवाल ये है कि TRF (The Resistance Front) के साथ अचानक US ने ऐसा क्या देख लिया? देखिए, ये ग्रुप कश्मीर में हिंसा फैलाने के लिए बदनाम रहा है। US की रिपोर्ट्स कहती हैं कि ये पाकिस्तान के इशारे पर काम करता है। पर सच्चाई ये भी है कि इस तरह के फैसले सिर्फ़ आतंकवाद के आधार पर नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति के तहत भी लिए जाते हैं। है न दिलचस्प?

जयशंकर vs थरूर – एक फैसले, दो अलग रिएक्शन

जयशंकर जी तो मानो इस फैसले को लेकर खुशी से उछल पड़े! उनके लिए ये भारत की कूटनीतिक जीत है। वहीं थरूर साहब… उनका स्टाइल ही अलग है न? उन्होंने इसे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मदद बताया। दोनों की बातें सही, पर अंदाज़ अलग। आप किसके साथ हैं?

मुनीर का ‘थाली का खेल’ – सच्चाई या सिर्फ़ एक मेटाफर?

अरे भई, ये ‘थाली का खेल’ वाली बात सुनकर मुझे पहले तो लगा कि कोई नया कुकिंग शो आया होगा! पर असलियत कुछ और ही है। ये मेटाफर कश्मीर में आतंकवाद के पीछे की गंदी राजनीति और पैसे के खेल को बताता है। TRF जैसे ग्रुप्स को चलाने के लिए पैसा कहां से आता है? कौन लोग हैं जो इन्हें सपोर्ट करते हैं? ये सब सवालों का जवाब इसी ‘थाली’ में छिपा है।

भारत-पाक रिश्तों पर क्या पड़ेगा असर?

सच कहूं तो… टेंशन तो बढ़ेगी ही! भारत तो पहले से ही पाकिस्तान पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाता रहा है। अब US का ये कदम भारत के हाथों को और मजबूती देगा। पर सवाल ये है कि क्या पाकिस्तान इस पर कोई प्रतिक्रिया देगा? या फिर वो अपना पुराना राग अलापना जारी रखेगा? वक्त ही बताएगा।

एक बात और – ये सारी बहसें तो चलती रहेंगी, पर कश्मीर के आम लोगों के बारे में कौन सोचेगा? सोचने वाली बात है…

Source: Aaj Tak – Home | Secondary News Source: Pulsivic.com

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