ट्रंप की गुस्सैल धमकी: क्या भारत को डराने का यही तरीका है?
अरे भई, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के चहेते सलाहकार स्टीफन मिलर ने फिर से भारत को निशाना बनाया है। और इस बार का मुद्दा? वही पुराना राग – रूस से तेल खरीदना। मिलर साहब का कहना है कि भारत यूक्रेन युद्ध को फंड कर रहा है। सच कहूं तो, यह आरोप नया नहीं है, लेकिन इस बार टोन ज़रा ज्यादा ही एग्रेसिव है। अमेरिका पहले ही 25% टैरिफ लगा चुका है, और अब 100% की धमकी? ये सब देखकर लगता है कि भारत-अमेरिका रिश्तों में फिर से तनाव बढ़ने वाला है।
पूरा माजरा क्या है? समझिए इस सरल भाषा में
देखिए न, यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिए। मगर भारत ने इन्हें अनदेखा किया। क्यों? क्योंकि सस्ता तेल मिल रहा था! अब सवाल यह है कि क्या भारत गलत कर रहा है? एक तरफ तो अमेरिका-यूरोप का गुस्सा समझ आता है, लेकिन दूसरी तरफ, क्या कोई देश अपने नागरिकों के हित में फैसला नहीं ले सकता? भारत का स्टैंड साफ है – “हमें सस्ता तेल चाहिए, चाहे वो कहीं से भी आए।” और सच कहूं तो, यही तो कोई भी समझदार सरकार करेगी, है न?
मिलर का बयान: ज्यादती या जायज मांग?
अब इस पूरे मामले में स्टीफन मिलर ने जो बयान दिया है, वो तो एकदम फिल्मी विलेन जैसा लगा। सीधे-सीधे भारत को यूक्रेन युद्ध का “सपोर्टर” बता दिया! और फिर वो धमकी – 100% टैरिफ! मतलब साफ है – या तो रूसी तेल छोड़ो, या फिर अमेरिकी बाजार में भारी नुकसान उठाओ। लेकिन हैरानी की बात ये है कि भारत सरकार टस से मस नहीं हुई। उनका जवाब सिंपल है – “हम अपनी जनता के लिए सस्ता तेल लेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए।” बहादुरी की बात है, लेकिन क्या यह रणनीति लंबे समय तक चलेगी?
कौन क्या कह रहा है? जानिए सबकी राय
इस मुद्दे पर हर कोई अपनी-अपनी राग अला रहा है:
– भारत सरकार: “हमारे नागरिकों के हित सबसे ऊपर”
– अमेरिका: “रूस को सपोर्ट करने वालों को माफ नहीं किया जाएगा”
– विशेषज्ञ: “यह तनाव भारत को चीन के करीब धकेल सकता है”
सच तो ये है कि इस पूरे विवाद में कोई सफेद या काला नहीं है। ग्रे एरिया बहुत बड़ा है। एक तरफ अंतरराष्ट्रीय दबाव है, तो दूसरी तरफ घरेलू जरूरतें। कठिन स्थिति है, है न?
आगे क्या? 3 संभावित परिदृश्य
अब आप सोच रहे होंगे – आगे क्या होगा? मेरी समझ से तीन ही रास्ते हैं:
1. भारत रूसी तेल पर निर्भरता कम करे (मगर ये इतना आसान नहीं)
2. अमेरिका और भारत कोई मध्यमार्ग निकालें (बातचीत से हल हो)
3. टैरिफ वॉर शुरू हो जाए (जो किसी के हित में नहीं)
असल में, यह पूरा मामला भारत की विदेश नीति की परीक्षा है। क्या हम अमेरिका के दबाव में आएंगे? या फिर अपने राष्ट्रीय हितों पर अडिग रहेंगे? समय बताएगा। लेकिन एक बात तो तय है – यह खेल अभी खत्म नहीं हुआ है।
अंतिम बात: संप्रभुता बनाम वैश्विक दबाव
दोस्तों, यह मामला सिर्फ तेल खरीदने तक सीमित नहीं है। यह एक बड़े सवाल को उठाता है – क्या कोई देश अपने हित में फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है? भारत का रुख साफ है, लेकिन क्या अमेरिका के साथ रिश्ते खराब करने की कीमत चुकानी पड़ेगी? यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले महीनों में यह राजनीतिक चेस गेम कैसे खेला जाता है। एक तरफ तो हमें अपनी जनता के लिए सस्ता तेल चाहिए, दूसरी तरफ वैश्विक संबंध भी तो महत्वपूर्ण हैं। कठिन चुनाव है, है ना?
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Source: Aaj Tak – Home | Secondary News Source: Pulsivic.com