ट्रंप और मोदी एक ही खूंटे पर क्यों? चीन-अमेरिका डील vs भारत के साथ अटकाव की असली वजह
अरे भाई, भारत और अमेरिका के बीच चल रही यह व्यापार वार्ता फिर से अटक गई है। सच कहूं तो, यह कोई नई बात नहीं है। मुद्दा वही पुराना – कृषि उत्पादों पर लगे tariff को लेकर झगड़ा। अमेरिका चाहता है कि उसके किसानों को भारतीय बाजार में आसानी से घुसने दिया जाए, वहीं हमारी सरकार का कहना है कि सस्ते आयात से हमारे किसानों का क्या होगा? और सच मानिए, यह सिर्फ आर्थिक मुद्दा नहीं है। दोनों नेताओं – ट्रंप और मोदी – के लिए तो यह सीधे-सीधे वोट बैंक का सवाल है। किसानों को नाराज करने का जोखिम कोई नहीं उठा सकता।
मामले की पृष्ठभूमि: अमेरिकी मांगें और भारतीय चिंताएं
असल में बात यह है कि अमेरिका चाहता है हम डेयरी प्रोडक्ट्स, सेब, अखरोट जैसी चीजों पर लगे शुल्क कम कर दें। उनका कहना है कि हमारे tariff rates “अनफेयर” हैं। लेकिन सवाल यह है – क्या यह सच में अनफेयर है? हमारे छोटे किसान जो पहले से ही कर्ज में डूबे हैं, उनका क्या होगा? और अब तो मामला और भी पेचीदा हो गया है। अमेरिका ने चीन के साथ deal कर ली है, जिसमें चीन ने उनके कृषि उत्पाद खरीदने का वादा किया है। तो अब? अब तो अमेरिका की नजर पूरी तरह हम पर टिक गई है।
हाल की घटनाएं: वार्ता में गतिरोध और दोनों देशों का रुख
पिछली कुछ बैठकों में तो बात बनी ही नहीं। ट्रंप साहब तो सीधे-सीधे “अनुचित टैरिफ” हटाने की बात कर रहे हैं। वहीं हमारी सरकार का स्टैंड क्लियर है – किसानों के हितों से समझौता नहीं। कृषि मंत्रालय के एक अधिकारी ने तो बड़ी साफ बात कही – “हमारी पहली प्राथमिकता छोटे किसान हैं जो पहले से ही संघर्ष कर रहे हैं।” और सच कहूं तो, यह सिर्फ सरकारी बयानबाजी नहीं है। गांव-देहात में जाकर देख लीजिए, हालात वाकई चिंताजनक हैं।
विश्लेषण: राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव
अब यहां विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है। कुछ कहते हैं कि हमें अमेरिका से रिश्ते खराब नहीं करने चाहिए, खासकर technology और defence के मामले में। पर दूसरी तरफ, कुछ का मानना है कि किसानों को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है। और राजनीति? उसकी तो बात ही अलग है। देखा जाए तो ट्रंप और मोदी दोनों ही अपने-अपने देशों में किसान वोट के बिना कुछ नहीं कर सकते। तो फिर कोई क्यों झुकेगा?
भविष्य की संभावनाएं: आगे क्या होगा?
अगले महीने फिर बातचीत होगी, पर मुझे नहीं लगता कोई बड़ा ब्रेकथ्रू होगा। 2024 में अमेरिकी चुनाव हैं, तो ट्रंप तो दबाव बनाएंगे ही। लेकिन हमारे पास भी तो विकल्प हैं न! European Union या अन्य देशों के साथ deal करके हम अमेरिकी दबाव को कम कर सकते हैं। पर सच तो यह है कि यह मामला सिर्फ व्यापार नीतियों तक सीमित नहीं है। यह तो दोनों देशों की राजनीति और वैश्विक स्टैंडिंग का सवाल है। जब तक दोनों पक्ष अपने-अपने हितों के बीच संतुलन नहीं बनाते, यह गतिरोध चलता रहेगा। और हां, एक बात और – यह सिर्फ आज का मुद्दा नहीं है। आने वाले वर्षों में यह चर्चा बनी रहने वाली है।
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1. ट्रंप और मोदी के बीच क्या common interests हैं जो उन्हें एक साथ लाते हैं?
देखिए, एक तरफ ट्रंप हैं जो ‘America First’ का नारा लगाते हैं, वहीं मोदी जी ‘Make in India’ को लेकर चल रहे हैं। है न मजेदार समानता? दोनों ही strong leadership वाले नेता हैं और अपने-अपने देशों को global stage पर ऊपर देखना चाहते हैं। और हां, चीन का बढ़ता दबदबा दोनों को परेशान करता है। शायद यही वजह है कि ये दोनों अक्सर एक ही wavelength पर नजर आते हैं।
2. चीन-अमेरिका डील और भारत के साथ अटकाव की मुख्य वजह क्या है?
असल में बात यह है कि चीन के साथ हर देश का झगड़ा अलग-अलग है। अमेरिका के साथ तो उनकी trade और technology की जंग चल रही है – iPhone से लेकर 5G तक। वहीं हमारे साथ तो सीमा विवाद और strategic competition चल रहा है। चीन हमें Asia में अपना सबसे बड़ा competitor मानता है। सच कहूं तो, चीन की यही ‘सबके साथ झगड़ा’ वाली policy उसे अलग-थलग कर रही है।
3. क्या ट्रंप और मोदी की दोस्ती भारत-अमेरिका relations को मजबूत करेगी?
बिल्कुल! यह सिर्फ दो नेताओं की दोस्ती नहीं है। देखा जाए तो पिछले कुछ सालों में defense deals से लेकर technology transfer तक – हर मोर्चे पर cooperation बढ़ा है। और सबसे बड़ी बात? चीन के मामले में दोनों देशों की सोच लगभग एक जैसी है। पर क्या यह दोस्ती लंबे समय तक चलेगी? यह तो वक्त ही बताएगा।
4. क्या चीन, अमेरिका और भारत के बीच tension दुनिया के लिए खतरनाक है?
सीधा जवाब – हां, बिल्कुल। यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। जब दुनिया की तीन सबसे बड़ी economies आपस में लड़ेंगी, तो इसका असर global supply chain से लेकर oil prices तक पर पड़ेगा। और हां, military tension की बात करें तो… खैर, उसके बारे में सोचकर भी डर लगता है। इसीलिए diplomatic solutions की बहुत जरूरत है। वरना… आप समझ ही रहे हैं न?
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com