ट्रंप ने किया बड़ा हंगामा: बैंकों की ‘डीबैंकिंग’ पर सरकारी सेंध!
अमेरिकी राजनीति में एक नया मसला गरमा गया है। और इस बार बवाल है बैंकों के साथ! देखिए न, डोनाल्ड ट्रंप साहब ने तो बैंकों को ही घेर लिया है। उन्होंने ‘डीबैंकिंग’ प्रैक्टिसेज की जांच का आदेश दे दिया है। मतलब क्या? सीधे-सीधे कहें तो बैंकों पर आरोप है कि वो कंजर्वेटिव लोगों के साथ भेदभाव कर रहे हैं। ये वही बहस है जो सोशल मीडिया कंपनियों की ‘सेंसरशिप’ को लेकर चल रही थी। अब बारी बैंकों की!
पूरा माजरा क्या है?
‘डीबैंकिंग’… ये शब्द पिछले कुछ सालों में काफी चर्चा में रहा है। असल में ये तब होता है जब बैंक बिना ठोस वजह किसी का अकाउंट बंद कर देते हैं। बैंक कहते हैं कि वो सिर्फ रूल्स फॉलो कर रहे हैं। लेकिन कंजर्वेटिव लीडर्स का दावा है कि उनके साथ राजनीतिक वजहों से भेदभाव हो रहा है। और सच कहूं तो कुछ हाई-प्रोफाइल केसेज में तो बैंकों ने बड़े अजीब तरीके से अकाउंट्स क्लोज किए हैं।
ट्रंप तो पहले से ही सोशल मीडिया कंपनियों को लेकर गरमा-गरम बयान देते रहे हैं। अब उनकी नजर बैंकिंग सेक्टर पर है। साफ दिख रहा है कि वो खुद को कंजर्वेटिव्स का ‘रक्षक’ साबित करने में लगे हैं। चुनावी रणनीति? हो सकता है!
क्या-क्या हुआ है?
ट्रंप के इस आदेश में तीन बड़ी बातें हैं:
1. वित्त मंत्रालय को जांच करनी होगी
2. पीड़ितों को न्याय दिलाने पर जोर
3. बैंकों को अब जवाब देना ही होगा
अब बैंकों को अपनी पॉलिसीज पर दोबारा सोचना पड़ सकता है। एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि ये सरकार और बैंकों के बीच नए तनाव की शुरुआत हो सकती है। सवाल ये है कि कहां तक सरकार का हस्तक्षेप सही है?
किसने क्या कहा?
रिएक्शन्स तो बड़े दिलचस्प आ रहे हैं:
– कंजर्वेटिव ग्रुप्स खुश हैं – “ये फ्री स्पीच की जीत है!”
– बैंकिंग एसोसिएशन का कहना है कि वो सिर्फ रूल्स फॉलो करते हैं
– डेमोक्रेट्स तो बिल्कुल नाराज – “ये पूरा का पूरा राजनीतिक खेल है!”
और सच कहूं तो डेमोक्रेट्स का गुस्सा समझ भी आता है। 2024 के इलेक्शन्स से पहले ये मुद्दा गरमाने वाला है।
अब आगे क्या?
अब सबका ध्यान वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट पर है। तीन संभावनाएं दिख रही हैं:
1. अगर भेदभाव के सबूत मिले, तो नए कानून आ सकते हैं
2. बैंकों पर जुर्माना या प्रतिबंध लग सकता है
3. सबसे बड़ी बात – ये मुद्दा 2024 के चुनावों में बड़ा रोल प्ले कर सकता है
असल में ये सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं है। पूरी दुनिया के बैंकिंग सेक्टर के लिए ये एक अहम केस स्टडी बन सकता है। क्योंकि सवाल बड़ा है – बैंकों की आजादी बनाम राजनीतिक निष्पक्षता।
एक तरफ तो बैंकों का कहना है कि वो कमर्शियल डिसीजन ले रहे हैं। दूसरी तरफ आरोप है कि वो पॉलिटिकल बायस्ड हैं। सच क्या है? वक्त ही बताएगा। लेकिन एक बात तो तय है – ये बहस अभी लंबी चलने वाली है!
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डीबैंकिंग यानी? और यह अचानक इतना चर्चा में क्यों है?
सीधे शब्दों में कहें तो डीबैंकिंग वो हालात है जब बैंक बिना कोई ठोस वजह बताए आपका अकाउंट ही बंद कर देते हैं। अब सवाल यह है कि ट्रंप ने इसे लेकर हल्ला क्यों मचाया? दरअसल, कई लोगों ने शिकायत की है कि उनके राजनीतिक विचारों की वजह से उन्हें बैंकिंग सुविधाओं से बाहर कर दिया गया। और ट्रंप साहब को यह बिल्कुल रास नहीं आया।
किस-किस पर पड़ेगा इसका असर? सच्चाई जानकर चौंक जाएंगे!
अगर आप अमेरिका में रहते हैं और आपका अकाउंट पिछले कुछ सालों में अचानक बंद हुआ है, तो यह खबर आपके लिए है। खासकर कंज़र्वेटिव विचारधारा वालों, गन राइट्स एक्टिविस्ट्स और क्रिप्टो वालों के लिए तो यह बड़ी राहत की खबर हो सकती है। पर सच कहूं तो असली असर तो अभी देखना बाकी है।
क्या भारत के बैंक भी इससे प्रभावित होंगे? जानिए पूरी सच्चाई
अभी के लिए तो यह आदेश सिर्फ अमेरिकी बैंकों पर लागू होगा। लेकिन यहां एक मजेदार बात – अगर इससे ग्लोबल लेवल पर बैंकिंग नियमों में बदलाव आया, तो भारत समेत दूसरे देशों को भी अपनी पॉलिसीज पर फिर से सोचना पड़ सकता है। हालांकि, अभी यह सब कयास ही हैं।
बैंक और कस्टमर्स – किसके लिए क्या है इसका मतलब?
बैंकों के लिए यह मतलब हो सकता है कि अब उन्हें अपनी डीबैंकिंग की प्रक्रिया को और साफ-सुथरा बनाना होगा। वहीं आम लोगों के लिए अच्छी खबर यह है कि अब उनके अकाउंट बेवजह बंद नहीं किए जा सकेंगे। पर एक सवाल तो बनता ही है – क्या बैंक वाकई में इन नियमों का पालन करेंगे? देखना दिलचस्प होगा!
Source: Financial Times – Companies | Secondary News Source: Pulsivic.com