तुर्की-रूस की यह नई दोस्ती काकेशस का पूरा गेम बदल देगी? और भारत के लिए इसका क्या मतलब है?
काकेशस में इन दिनों कुछ ऐसा चल रहा है जिस पर पूरी दुनिया की नज़रें टिकी हुई हैं। सुना है न कि आर्मेनिया और अजरबैजान आखिरकार शांति समझौते पर दस्तखत करने वाले हैं? और हैरानी की बात ये कि इस पूरे मामले में तुर्की का रोल काफी अहम रहा है। सच कहूं तो, तुर्की ने जिस तरह से दोनों देशों को बातचीत की टेबल पर बैठाया, वो काबिले-तारीफ है। अब तो इसी महीने के अंत में दुबई में दोनों देशों के leaders मिलने भी वाले हैं। ये सिर्फ काकेशस का नक्शा ही नहीं बदल देगा, बल्कि भारत जैसे देशों के लिए भी इसके बड़े मायने हो सकते हैं। सोचिए, क्या हमारी foreign policy पर इसका असर पड़ेगा?
पूरा माजरा क्या है? एक नज़र पीछे
ये नागोर्नो-करबाख वाला झगड़ा कोई नया तो है नहीं। दशकों से चला आ रहा है ये विवाद। सच तो ये है कि technically तो ये इलाका अजरबैजान का हिस्सा है, लेकिन यहां आर्मेनियाई लोगों की बहुलता है। 2020 में जब दोनों देशों के बीच जंग छिड़ी थी, तब अजरबैजान को रूस और तुर्की का पूरा साथ मिला था। और तब से तुर्की ने काकेशस में अपनी पकड़ बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वहीं रूस तो पहले से ही इस इलाके में अपना दबदबा रखता आया है। और हमारा भारत? हमने हमेशा आर्मेनिया का साथ दिया है – रक्षा सहयोग से लेकर राजनीतिक समर्थन तक। इसलिए ये मामला हमारे लिए और भी ज़्यादा अहम हो जाता है।
ताज़ा खबर क्या है? तुर्की की चाल और दुबई का मीटिंग
पिछले कुछ महीनों में तुर्की ने जो किया है, वो काबिले-तारीफ है। उन्होंने आर्मेनिया और अजरबैजान को बातचीत की टेबल पर लाकर ही छोड़ा। अब तो दुबई में दोनों देशों के leaders की मीटिंग भी तय हो चुकी है। अगर ये डील हो जाती है तो काकेशस में तुर्की-रूस की जोड़ी और भी मजबूत हो सकती है। पिछले कुछ सालों से दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ता ही जा रहा है। और ये सब भारत के लिए क्यों मायने रखता है? क्योंकि हमारे आर्मेनिया के साथ strategic relations हैं। हम उन्हें हथियार भी सप्लाई करते हैं। अगर इस इलाके में तुर्की का दखल बढ़ता है, तो हमें अपनी policy में बदलाव करने पड़ सकते हैं। थोड़ा सोचने वाली बात है, है न?
कौन क्या कह रहा है? Reactions और Expert Views
इस डील को लेकर हर कोई अपनी-अपनी राय दे रहा है। रूस तो मानो खुशी से झूम उठा है – उनका कहना है कि इससे region में stability आएगी। तुर्की के एर्दोगन तो इसे “ऐतिहासिक पल” बता रहे हैं। हमारा भारत? अभी तक official तौर पर कुछ नहीं कहा है। पर experts की मानें तो हम शायद इसके impact को समझने की कोशिश कर रहे हैं। आर्मेनिया की सरकार ने कहा है कि वो शांति के लिए तो तैयार हैं, लेकिन अपने हितों से समझौता नहीं करेंगे। एक बात तो तय है – इस डील से जुड़ी हर reaction पूरे region के power equations को बदल सकती है।
आगे क्या? भारत के सामने चुनौतियां… और मौके भी!
अगर ये डील हो जाती है तो काकेशस में तुर्की का रुतबा और बढ़ सकता है – और ये रूस के लिए headache बन सकता है। हमारे लिए? हमें आर्मेनिया के साथ अपने defence और economic deals पर फिर से सोचना पड़ सकता है, खासकर अगर तुर्की का role बढ़ता है। पर हर बादल का एक सिल्वर लाइनिंग होता है न? अगर region में शांति आती है, तो भारत के लिए मध्य एशिया और यूरोप के साथ trade के नए रास्ते खुल सकते हैं। कई experts तो ये भी कह रहे हैं कि ये डील सिर्फ काकेशस ही नहीं, बल्कि पूरे यूरेशिया के equations बदल सकती है। हमें अपनी foreign policy में थोड़ा flexible होना पड़ेगा ताकि इस बदलाव से maximum फायदा उठा सकें। सोचिए, क्या हम इसके लिए तैयार हैं?
यह भी पढ़ें:
तुर्की-रूस दोस्ती: काकेशस का चेसबोर्ड और भारत की चालें
1. क्या काकेशस में बदल रहा है पावर गेम?
देखिए, तुर्की और रूस की यह नई ‘ब्रॉमेंस’ सिर्फ दो देशों की बात नहीं है। असल में, यह पूरे काकेशस रीजन का पावर इक्वेशन ही बदल सकती है। सोचिए न, जब ये दोनों हेवीवेट एक साथ आएंगे तो आर्मेनिया-अज़रबैजान जैसे पुराने conflicts पर क्या असर पड़ेगा? और हैरानी की बात ये कि इसका झटका भारत की foreign policy तक भी लग सकता है। थोड़ा डरावना लगता है न?
2. भारत के लिए क्यों है यह मुश्किल पहेली?
ईमानदारी से कहूं तो, हमारे लिए यह स्थिति बिल्कुल उस तरह है जैसे दो दोस्तों के बीच फंस जाना। एक तरफ तो रूस है – हमारा पुराना रक्षा साथी, जिसके साथ हमारे रिश्ते की डोर दशकों से चली आ रही है। और दूसरी तरफ है तुर्की… जिसका पाकिस्तान से गले-मिलने वाला रिश्ता तो सबको पता है। अब इसमें अगर काकेशस में भूचाल आया तो? हमारी एनर्जी सप्लाई से लेकर स्ट्रैटेजिक इंटरेस्ट्स तक – सब डगमगा सकते हैं। सोचने वाली बात है।
3. क्या रूस-भारत दोस्ती पर आएगा साया?
अभी तक तो कोई बड़ा खतरा नहीं दिख रहा। लेकिन यहां ‘अभी तक’ शब्द पर गौर करें। क्योंकि अगर रूस, तुर्की के कहने पर पाकिस्तान की तरफ झुकता है… तो? हालांकि, अच्छी बात ये है कि रूस ने अब तक हमारे साथ अपने रिश्तों को मजबूत ही रखा है। पर राजनीति में कभी कुछ कहा जा सकता है क्या?
4. भारत को अब क्या करना चाहिए?
मेरी निजी राय? हमें चुपचाप बैठने के बजाय अपने कदम समय रहते बदलने चाहिए। तुर्की-रूस की यह नई जोड़ी देखकर हमें अपनी काकेशस पॉलिसी पर फिर से सोचना होगा। खासकर डिफेंस डील्स और एनर्जी सेक्टर में तो हमें और स्मार्ट तरीके से काम करना होगा। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में, जो आज दोस्त है, वही कल… खैर, आप समझ ही गए होंगे!
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com