UK की आधी कंपनियाँ अब कह रही हैं – “5 दिन ऑफिस आओ वर्ना…” – क्या है पूरा मामला?
अरे भई, सुनो ज़रा! ब्रिटिश चैंबर्स ऑफ कॉमर्स (BCC) का ताज़ा सर्वे तो कुछ ऐसी ही कहानी बयाँ कर रहा है। देखा जाए तो UK की हर दूसरी कंपनी अब अपने कर्मचारियों से पूरे पांच दिन ऑफिस आने की ज़िद करने लगी है। सच कहूँ तो यह आँकड़ा देखकर मैं भी चौंक गया – 2021 में तो सिर्फ 25% कंपनियाँ ही ऐसा कह रही थीं, यानी दो साल में दोगुना उछाल! साफ है न कि अब WFH का जमाना धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। बॉस लोग फिर से पुराने ढर्रे पर लौटना चाहते हैं – चाय-बिस्कुट के साथ ऑफिस की गपशप वाला।
कोरोना वाली बात याद है न?
याद कीजिए वो 2020 का वक्त… जब work from home कोई ऑप्शन नहीं, बल्कि मजबूरी थी। हैरानी की बात ये रही कि इससे productivity पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा। तभी तो hybrid model का ट्रेंड चल निकला – 2 दिन ऑफिस, 3 दिन घर। लेकिन अब? अब तो लगता है कंपनियों को यह एक्सपेरिमेंट ऊब गया है।
और सुनिए, इनके तर्क भी कुछ खास नहीं:
- “ऑफिस में बैठकर काम करने से creativity बढ़ती है” (हाँ-हाँ, वही पुराना राग)
- “वर्चुअल मीटिंग्स में वो जान नहीं आती” (मतलब कैमरा ऑन करके सोने वालों की बात कर रहे हैं शायद)
- “नए लोगों को ट्रेनिंग देना मुश्किल होता है” (ये वाला प्वाइंट थोड़ा सही भी लगता है)
अंकों का खेल
BCC के सर्वे में कुछ मजेदार आँकड़े सामने आए हैं:
– 50% कंपनियाँ अब full-time office चाहती हैं (यानी हफ्ते के पाँचों दिन)
– 30% अभी भी hybrid model पर अड़ी हुई हैं
– बाकी की 20% तो अभी तक ये तय ही नहीं कर पाईं कि करें तो करें क्या?
एक बात और – tech और finance वालों को तो जैसे ऑफिस की धूल भी प्यारी लगने लगी है। वहीं creative fields वाले अभी भी “घर से काम” वाले ऑप्शन पर टिके हुए हैं।
और हाँ, इस पूरे खेल के पीछे पैसा भी एक बड़ा फैक्टर है। सोचिए, इन कंपनियों ने commercial properties में करोड़ों लगा रखे हैं। अब अगर ऑफिस खाली पड़े रहेंगे तो ये लोग क्या करेंगे? साथ ही, ऑफिस के आसपास की दुकानें – जो कर्मचारियों पर ही निर्भर हैं – उनका क्या होगा?
कर्मचारियों का साइड ऑफ द स्टोरी
अब सुनिए दूसरा पहलू। कर्मचारियों की प्रतिक्रिया? मिश्रित। कुछ लोग तो ऑफिस के गप्पों और चाय-पानी को मिस कर रहे हैं। लेकिन ज्यादातर का कहना है – “भई, WFH ने जो work-life balance दिया था, वो क्या कम था?” एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने तो यहाँ तक कहा – “अब फिर से रोज ऑफिस जाना? पेट्रोल के दाम देखकर तो दिल दहल जाता है।”
Trade unions भी इस पर आगबबूला हैं। उनका कहना है कि mental health पर पड़ने वाले प्रभाव को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। और सच भी तो है – कई स्टडीज बताती हैं कि flexible options से न सिर्फ job satisfaction बढ़ता है, बल्कि employees ज्यादा समय तक कंपनी के साथ भी रहते हैं।
तो अंत में क्या?
यह बहस तो अभी लंबी चलने वाली है। एक तरफ कंपनियाँ ऑफिस की दीवारों को फिर से जिंदा करना चाहती हैं, तो दूसरी तरफ कर्मचारी अपनी सुविधा से समझौता करने को तैयार नहीं। UK सरकार तो अभी इस मामले में हाथ पर हाथ धरे बैठी है।
और हाँ, यह ट्रेंड सिर्फ UK तक सीमित नहीं। America और Europe में भी कंपनियाँ ऐसे ही कदम उठा रही हैं, हालाँकि वहाँ अभी hybrid model का चलन ज्यादा है। एक बात तो तय है – post-pandemic work culture अभी अपने final avatar में नहीं आया है। शायद अभी और twist आने वाले हैं इस कहानी में!
अंत में बस इतना – टेक्नोलॉजी ने हमें जो आज़ादी दी थी, उसे वापस लेने की कोशिश हो रही है। पर क्या यह संभव हो पाएगा? वक्त ही बताएगा। फिलहाल तो यही लगता है कि यह टकराव और तेज़ होने वाला है। क्या आप तैयार हैं इस नए (या पुराने?) दौर के लिए?
अरे भाई, UK की कंपनियों का ये नया चलन देख रहे हो? वर्क फ्रॉम होम का ज़माना अब पीछे छूटता नज़र आ रहा है। Dell, Amazon जैसे दिग्गजों ने तो साफ-साफ कह दिया है – “ऑफिस आओ यार!” है न मज़ेदार बात?
असल में देखा जाए तो ये कोई छोटी-मोटी बदलाव नहीं है। एक तरफ तो हम सब घर बैठे-बैठे चाय पीते हुए meetings करने के आदी हो गए थे, और अब? अचानक से ऑफिस की चारदीवारी में वापसी। ईमानदारी से कहूं तो ये transition कर्मचारियों के लिए थोड़ा झटका देने वाला हो सकता है।
लेकिन सवाल यह है कि कंपनियां ऐसा क्यों कर रही हैं? मेरे ख्याल से… team bonding का वो जादू, जो सिर्फ ऑफिस के pantry area में चाय पीते हुए ही होता है। वो online कहाँ? हालांकि, commute का stress फिर से शुरू। सच कहूं तो दोनों के अपने-अपने फायदे हैं।
एक बात तो तय है – ये नया hybrid से traditional की तरफ shift सबके लिए चुनौतीपूर्ण होने वाला है। क्या आप तैयार हैं इस बदलाव के लिए?
Source: Financial Times – Companies | Secondary News Source: Pulsivic.com