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यूके सरकार बजट नियमों का उल्लंघन रोकने के लिए कर वृद्धि पर विचार कर सकती है, NIESR का दावा

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यूके सरकार की मुश्किल: बजट नियमों को पूरा करने के लिए क्या करे? NIESR की रिपोर्ट ने बताया

अरे भाई, ब्रिटेन की सरकार फंस गई लगती है। सच कहूं तो ये कोई नई बात नहीं – पिछले कुछ सालों से तो यूके की अर्थव्यवस्था लगातार उठापटक का शिकार हो रही है। NIESR (National Institute of Economic and Social Research) की ताजा रिपोर्ट तो कहती है कि अब सरकार के पास दो ही रास्ते बचे हैं: या तो कर बढ़ाओ, या फिर खर्चे काटो। पर दिक्कत ये है कि दोनों ही विकल्पों के अपने-अपने नुकसान हैं।

असल में देखा जाए तो ये समस्या एकदम से नहीं आई। कोविड के दौरान तो सरकार ने खूब पैसा बहाया – जो जरूरी भी था। लेकिन अब उसका बिल आ गया है। साथ ही energy crisis ने तो मानो आग में घी का काम किया है। सरकार ने debt-to-GDP ratio को कंट्रोल करने का वादा तो किया था, पर inflation और मंदी के चलते अब ये वादा निभाना मुश्किल होता जा रहा है।

NIESR की गणना के मुताबिक तो सरकार को लगभग £30 बिलियन की जरूरत पड़ेगी। अब सवाल ये है कि ये पैसा कहां से आएगा? Income tax बढ़ाओ? Corporate tax में इजाफा करो? या फिर GST पर हाथ डालो? हर विकल्प का अपना दर्द है। वैकल्पिक रूप से खर्चे काटे जा सकते हैं, लेकिन health और education जैसे सेक्टर्स में कटौती तो जनता को बर्दाश्त नहीं होगी।

राजनीतिक रूप से देखें तो ये मामला और भी पेचीदा हो जाता है। विपक्ष तो पहले से ही सरकार को घेरने को तैयार बैठा है। उनका कहना है – “अमीरों पर टैक्स बढ़ाओ!” लेकिन economists की चिंता अलग है। उनके मुताबिक, टैक्स बढ़ने से purchasing power और कम होगी, जबकि inflation तो पहले से ही लोगों की कमर तोड़ रहा है। Business organizations की चेतावनी और भी डरावनी है – corporate tax बढ़ेगा तो investment और रोजगार दोनों पर असर पड़ेगा।

अब सबकी नजरें अक्टूबर-नवंबर में आने वाले budget पर हैं। मजे की बात ये कि अगले साल elections भी हैं। सोचिए, अगर सरकार टैक्स बढ़ाती है तो वोटर नाराज होंगे। और अगर खर्चे काटे तो public services खराब होंगी। दोनों ही स्थितियों में सरकार के लिए मुश्किल है।

सच तो ये है कि यूके सरकार अब चौराहे पर खड़ी है। NIESR की ये रिपोर्ट एक तरह से final warning की तरह है। अब वक्त आ गया है जब सरकार को अपनी fiscal policies पर गंभीरता से सोचना होगा। नहीं तो… पर छोड़िए, बाकी की कहानी तो आने वाला budget ही बताएगा।

यूके सरकार का बजट और टैक्स बढ़ोतरी – आपके सवाल, हमारे जवाब

1. सरकार अपने ही बजट नियमों को तोड़ क्यों रही है?

देखिए, NIESR की रिपोर्ट तो यही कह रही है – COVID-19 और inflation की दोहरी मार ने सरकार को मजबूर कर दिया है। सोचिए, जब घर का खर्च बढ़ जाए और कमाई घट जाए तो क्या होता है? ठीक वही हाल यहाँ भी। सरकारी खर्चे आसमान छू रहे हैं, जबकि टैक्स कलेक्शन लुढ़क रहा है। मुश्किल वक्त, मुश्किल फैसले।

2. टैक्स बढ़ेगा तो economy का क्या होगा? सच-सच बताओ!

एक तरफ तो सरकार की जेब भर जाएगी – यह तो अच्छी बात है। लेकिन ईमानदारी से कहूँ तो आम आदमी की जेब पर इसका असर पड़ेगा। जब लोगों के पास खर्च करने के लिए कम पैसे होंगे, तो economic growth की स्पीड कम हो जाएगी। पर एक पॉजिटिव साइड भी है – बजट नियमों को पूरा करने में मदद मिलेगी। थोड़ा फायदा, थोड़ा नुकसान – जैसा कि हर फैसले में होता है।

3. NIESR कौन सा बाबा है? इनकी रिपोर्ट पर भरोसा करें या नहीं?

अरे, NIESR (National Institute of Economic and Social Research) कोई छोटी-मोटी संस्था नहीं है। यूके की यह independent research body है जो बिना किसी दबाव के economic data analyze करती है। सरकार हो या economists, सभी इनकी रिपोर्ट्स को गंभीरता से लेते हैं। क्यों? क्योंकि ये लोग numbers के साथ खेलते हैं, emotions के साथ नहीं।

4. क्या टैक्स बढ़ाना ही एकमात्र रास्ता है? कोई और चारा?

असल में ऑप्शन्स तो हैं, लेकिन… सरकार खर्चे काट सकती है, पर यह unpopular फैसला होगा। economic growth बढ़ाने की कोशिश कर सकती है, पर इसमें वक्त लगेगा। टैक्स बढ़ाना? यह तो जैसे quick fix solution है – जल्दी असर दिखाएगा, लेकिन दर्द भी देगा। सवाल यह है कि सरकार कितना दर्द सहने को तैयार है?

Source: Dow Jones – Social Economy | Secondary News Source: Pulsivic.com

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