uk rail regulator urged to limit private train services 20250629215310917322

यूके रेल नियामक से निजी ट्रेन सेवाओं को मंजूरी देने पर रोक लगाने की मांग

यूके रेल नियामक पर बवाल: क्या निजी ट्रेन सेवाओं को रोकना सही है?

अब ये दिलचस्प मामला सामने आया है। ब्रिटेन के परिवहन विभाग का एक बड़ा अधिकारी रेल नियामक (रेगुलेटर) के पीछे पड़ गया है। क्यों? क्योंकि उन्होंने ‘open-access’ के तहत निजी ट्रेन कंपनियों को मंजूरी देने पर रोक लगाने की मांग कर डाली है। और तर्क? सरकारी रेलवे की जेब पर पड़ने वाला असर! देखा जाए तो ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं, बल्कि यूके की रेल नीति में बड़ा भूचाल ला सकती है। और हां, इसका असर आपकी-हमारी तरह सामान्य यात्रियों पर भी पड़ेगा।

पूरा माजरा क्या है?

‘Open-access’ का मतलब समझिए – ये वो सिस्टम है जहां निजी कंपनियों को बिना सरकारी ठेका लिए सीधे ट्रेनें चलाने की छूट मिलती है। अभी ‘Hull Trains’ और ‘Grand Central’ जैसी कंपनियां इसी के तहत चल रही हैं। लेकिन सरकार को लगता है कि अगर और कंपनियां आ गईं तो? सरकारी रेलवे का तो सत्यानाश हो जाएगा! क्योंकि ये निजी वाले तो केवल मुनाफे वाले रूट्स पर ही ट्रेन दौड़ाएंगे, बाकी का नुकसान सरकारी खजाने को उठाना पड़ेगा।

अब क्या हुआ है?

पिछले दिनों परिवहन विभाग ने रेल नियामक को एक जोरदार चिट्ठी लिखी है। मतलब साफ – “भाई, नए open-access ऑपरेटर्स को मत छोड़ो!” उनका डर है कि इससे सरकारी रेलवे की लॉन्ग टर्म प्लानिंग चौपट हो जाएगी। वैसे, नियामक से ये भी उम्मीद है कि वो यात्रियों के हित को भी देखेगा। पर सवाल ये है कि क्या ये दोनों बातें एक साथ हो भी पाएंगी?

किसका क्या स्टैंड है?

इस मामले में तो हर कोई अपना-अपना राग अलाप रहा है। सरकार कह रही है – “भई, ज्यादा निजी कंपनियां आईं तो अराजकता फैल जाएगी।” वहीं निजी कंपनियां चिल्ला रही हैं – “ये तो प्रतिस्पर्धा को खत्म करने की साजिश है!” यात्री संगठन? उनका तो कोई एक राय ही नहीं। कुछ को डर है कि टिकट महंगे हो जाएंगे, तो कुछ सोच रहे हैं कि बिना प्रतिस्पर्धा के सेवा तो और खराब होगी।

आगे क्या होगा?

अब सारी नजरें रेल नियामक पर टिकी हैं। वो क्या फैसला करता है, ये तो वक्त ही बताएगा। अगर निजी कंपनियों को रोक दिया गया तो सरकारी रेलवे के लिए तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल जाएगी। लेकिन ये मामला इतना आसान भी नहीं। सरकार और निजी क्षेत्र की ये टकराहट तो अभी और तेज होगी, क्योंकि दोनों के हित एकदम अलग-अलग हैं।

एक बात तो तय है – यूके की रेल नीति अब नए मोड़ पर पहुंच चुकी है। जो भी फैसला होगा, वो न सिर्फ रेल उद्योग का भविष्य तय करेगा, बल्कि रोजाना लाखों यात्रियों की जिंदगी को भी प्रभावित करेगा। तो क्या मिलेगा बेहतर समाधान? वक्त बताएगा। फिलहाल तो सभी को संतुलित रुख अपनाने की जरूरत है। वरना… खैर, आप समझ ही गए होंगे!

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UK में निजी ट्रेन सेवाओं को लेकर बहस चल रही है, और सच कहूं तो यह सिर्फ ट्रेनों की बात नहीं है। असल में, यहां सवाल जनता के हित और सार्वजनिक परिवहन की क्वालिटी का है। अब सोचिए, अगर प्राइवेट कंपनियों को मौका मिलेगा, तो क्या वे सिर्फ मुनाफे के पीछे भागेंगी या फिर यात्रियों को भी ध्यान में रखेंगी? Rail नियामक इसीलिए सख्त नियमों की मांग कर रहा है – क्योंकि प्रतिस्पर्धा अच्छी है, लेकिन यात्रियों की सुविधा उससे भी ज्यादा जरूरी है।

हालांकि, सबसे बड़ा सवाल तो अभी बाकी है। UK सरकार और Rail प्राधिकरण इस पूरे मामले को कैसे हैंडल करेंगे? क्या भविष्य में यात्रियों को बेहतर सुविधाएं मिल पाएंगी, या फिर यह सिर्फ एक और राजनीतिक बहस बनकर रह जाएगा? देखने वाली बात होगी। सच कहूं तो, मेरा खुद का अनुभव कहता है कि प्राइवेटाइजेशन में संतुलन बनाना ही असली चुनौती है। बिल्कुल वैसे ही जैसे चाय में चीनी – न कम, न ज्यादा!

Source: Financial Times – Companies | Secondary News Source: Pulsivic.com

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