UNESCO ने शिवाजी महाराज के 12 किलों को विश्व धरोहर घोषित किया – और ये खबर क्यों है इतनी ज़बरदस्त?
अरे वाह! भारत की विरासत को आज एक ऐसी पहचान मिली है जिस पर हर भारतीय को गर्व होना चाहिए। UNESCO ने छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़े 12 किलों को World Heritage Site का दर्जा दे दिया है। सच कहूँ तो, ये सिर्फ महाराष्ट्र की नहीं, बल्कि पूरे देश की जीत है। क्यों? क्योंकि ये किले सिर्फ पत्थरों के ढेर नहीं हैं – ये तो हमारी सैन्य बुद्धिमत्ता, वास्तुकला और संस्कृति का जीता-जागता सबूत हैं।
जब पहाड़ बोलते थे: ये किले क्यों हैं इतने खास?
17वीं सदी की बात है। शिवाजी महाराज ने ‘हिन्दवी स्वराज्य’ का सपना देखा था। लेकिन सपने देखने से क्या होता है? उन्हें पूरा करने के लिए चाहिए थी रणनीति – और यहीं आते हैं ये किले। महाराष्ट्र से लेकर गोवा तक फैले ये दुर्ग मुगलों और अंग्रेज़ों के खिलाफ मराठों की जीत के गवाह रहे हैं। रायगढ़ तो वहीं जगह है जहाँ से शिवाजी ने अपना साम्राज्य चलाया। और सिंधुदुर्ग? अरे भाई, समुद्र से आने वाले दुश्मनों के लिए ये एक सपना था जो कभी पूरा नहीं हुआ! इन किलों में तो गुप्त रास्तों से लेकर पानी जमा करने की सिस्टम तक थी – आज के इंजीनियर्स को भी पढ़ाई करनी चाहिए यहाँ!
कैसे मिली ये मान्यता? थोड़ा पीछे चलते हैं…
ये कोई एक दिन का काम नहीं था भाई। भारत सरकार और महाराष्ट्र सरकार ने सालों मेहनत की। 2023 में UNESCO के 45वें सम्मेलन में इन किलों को “Serial Nomination” के तहत चुना गया – और यहाँ सबसे मज़ेदार बात? 21 देशों ने एक साथ हाँ कह दी! अब इन किलों को मिलेगी अंतरराष्ट्रीय फंडिंग, बेहतर रखरखाव और दुनिया भर से पर्यटक। ASI के एक अधिकारी ने सही कहा – ये सिर्फ किलों की नहीं, हमारी संरक्षण नीतियों की भी जीत है।
क्या कह रहा है देश? सोशल मीडिया पर छाई मराठा मैजिक!
महाराष्ट्र के सीएम तो खुशी से फूले नहीं समा रहे – उन्होंने कहा, “शिवाजी महाराज की विरासत को ये सम्मान मिलना हम सबके लिए गर्व की बात है।” और संस्कृति मंत्रालय? उन्होंने ट्वीट कर बताया कि इससे ecotourism और स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलेगा। ट्विटर पर तो #ShivajiFort और #MarathaLegacy ट्रेंड कर रहे हैं – कॉलेज के बच्चे हो या प्रोफेसर, सब एक सुर में शिवाजी महाराज की तारीफ कर रहे हैं।
आगे क्या? सिर्फ संरक्षण नहीं, संभावनाओं का समंदर!
अब इन किलों का रखरखाव वैश्विक स्तर पर होगा। पर्यटन बढ़ेगा, लोगों को रोज़गार मिलेगा। लेकिन सबसे दिलचस्प बात? इन किलों पर रिसर्च से हमें मराठा काल के जल प्रबंधन और युद्ध कौशल के बारे में नई जानकारियाँ मिलेंगी। सोचिए, आज से 300 साल पहले लोग कितने स्मार्ट थे!
तो क्या सीखा आज? ये किले सिर्फ अतीत की नहीं, भविष्य की भी कहानी कहते हैं। जैसे-जैसे दुनिया इन्हें देखेगी, शिवाजी महाराज की वीरता की गाथाएँ और भी ज़ोर से गूँजेंगी। और हम? हम तो बस इतना कहेंगे – जय भवानी, जय शिवाजी!
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अब देखिए, UNESCO ने शिवाजी महाराज के 12 किलों को World Heritage Site का दर्जा दिया है – और ये सिर्फ एक औपचारिक घोषणा से कहीं ज़्यादा है। असल में, यह हमारे गौरवशाली इतिहास को वैश्विक मंच पर लाने जैसा है। सोचिए, ये किले सदियों से खड़े हैं, शिवाजी महाराज की रणनीतिक बुद्धिमत्ता की गवाही देते हुए… और अब पूरी दुनिया इन्हें जानेगी!
लेकिन सवाल यह है कि क्या हम सच में इन किलों का महत्व समझते हैं? ये सिर्फ पत्थरों के ढेर नहीं हैं भाई। ये तो हमारी वीरता, हमारे स्वाभिमान की जीती-जागती मिसाल हैं। जब आप इन किलों के बारे में पढ़ते हैं, तो लगता है जैसे इतिहास की किताब के पन्ने जीवंत हो उठे हों।
एक तरफ तो ये किले पर्यटन को बढ़ावा देंगे, दूसरी तरफ हमारी नई पीढ़ी को अपनी विरासत से जोड़ेंगे। सच कहूं तो, ये उतना ही ज़रूरी है जितना कि आजकल के बच्चों को Fortnite के बजाय अपने असली किलों के बारे में पता होना चाहिए। है न?
और सबसे बड़ी बात – ये मान्यता सिर्फ अतीत को सम्मान देने के बारे में नहीं है। बल्कि ये हमें याद दिलाती है कि हम कहां से आए हैं… और कहां जा रहे हैं। एकदम मस्त फीलिंग आती है जब सोचते हैं कि हमारे पूर्वजों ने क्या-क्या कर दिखाया। सच में।
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com