आदमी को आदमी से हुआ प्यार: जब ‘सौतन’ ने बदल दी रिश्तों की परिभाषा
क्या प्यार की कोई लिंग होती है? या फिर हमने अपने दिमाग में ही कुछ सीमाएँ खींच रखी हैं? एक ऐसी ही कहानी जिसने मेरे जैसे कई लोगों को झकझोर कर रख दिया। दो पुरुष, एक गहरा रिश्ता, और फिर वो तीसरा शख्स जिसने इस ‘दोस्ती’ को ‘गलत’ समझकर हिंसा का रास्ता अपना लिया। सच कहूँ तो, ये केस सिर्फ एक हमले की घटना नहीं है – ये तो हमारे समाज का आईना है। और ईमानदारी से कहूँ तो, इस आईने में हमें अपना चेहरा बिल्कुल अच्छा नहीं दिख रहा।
कहानी शुरू होती है: जब दोस्ती प्यार बन गई
मामला कुछ यूँ है – दो लोग (नाम तो आप समझ ही गए होंगे क्यों नहीं बता रहे), जो सालों से एक-दूसरे के सबसे करीब थे। समाज की नज़र में बस ‘अच्छे दोस्त’। पर जानते हैं न, कभी-कभी रिश्ते लेबल से कहीं ज़्यादा गहरे होते हैं? यहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ। लेकिन दिक्कत ये हुई कि जब एक तीसरे व्यक्ति को इस ‘गहरी दोस्ती’ का राज़ पता चला… तो सारा मामला ही उल्टा-पुल्टा हो गया। धमकियाँ, फिर हिंसा – और बस, एक खूबसूरत रिश्ता एक केस फाइल में तब्दील हो गया। क्या यही है हमारी ‘मॉडर्न सोसाइटी’?
हालिया अपडेट: पुलिस, अरेस्ट और सोशल मीडिया का ड्रामा
अब क्या हुआ? पुलिस ने आरोपी को पकड़ लिया है। केस चल रहा है। पर असली आग तो सोशल मीडिया पर लगी हुई है! एक तरफ़ वो लोग जो कह रहे हैं “प्यार प्यार होता है, चाहे वो किसी से भी हो”, तो दूसरी तरफ़ वो ‘मॉरल पुलिस’ जिनके लिए ये रिश्ता ‘नेचर के खिलाफ़’ है। सच बताऊँ? मुझे तो ये बहस देखकर लगता है कि हम कानूनी तौर पर तो 2018 में आगे निकल गए, पर दिमाग़ी तौर पर अभी भी कहीं पीछे अटके हुए हैं।
समाज की राय: एक ही सिक्के के दो पहलू
इस मामले ने तो जैसे समाज को दो हिस्सों में बाँट दिया है। पीड़ित के परिवार वालों का कहना है – “हमें रिश्ते के बारे में पता नहीं था, पर हिंसा तो किसी भी हालत में गलत है।” वहीं दूसरी तरफ़, आरोपी के सपोर्टर्स का तर्क है – “हिंसा गलत है, पर ये रिश्ते हमारी संस्कृति में फिट नहीं होते।” देखा जाए तो यही तो है हमारी सबसे बड़ी समस्या – एक तरफ़ कानूनी मान्यता, दूसरी तरफ़ सामाजिक पूर्वाग्रह। बीच में फँसे हैं वो लोग जो बस प्यार करना चाहते हैं।
आगे क्या? बदलाव की उम्मीद या पुरानी सोच का जारी रहना?
अब सवाल ये है कि इस सबके बाद क्या होगा? पुलिस तो अपना काम करेगी, केस चलेगा। पर असली सवाल तो ये है कि क्या हम सच में बदल रहे हैं? क्या ऐसे मामले हमें LGBTQIA+ समुदाय के प्रति संवेदनशील बनाएँगे? या फिर हम वहीँ के वहीँ रह जाएँगे? मेरा मानना है कि ये घटना एक टर्निंग पॉइंट हो सकती है… अगर हम चाहें तो।
अंत में बस इतना: ये कोई साधारण केस नहीं है। ये तो हमारी सोच का टेस्ट केस है। क्या हम वाकई उस समाज की तरफ़ बढ़ रहे हैं जहाँ प्यार की कोई सीमा नहीं? या फिर हम अभी भी उन्हीं पुराने खोल में कैद हैं? वक्त बताएगा… पर शायद वक्त हमसे पूछ भी रहा है – “तुम किस तरफ़ हो?”
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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com