us automakers push faster self driving car rules 20250627085354317857

अमेरिकी ऑटोमेकर्स की मांग: सेल्फ-ड्राइविंग कार नियमों में तेजी लाए सरकार!

अमेरिकी कार कंपनियों की बड़ी चाल: सरकार से मांग रही हैं सेल्फ-ड्राइविंग गाड़ियों पर ‘ग्रीन सिग्नल’!

क्या आपने कभी सोचा है कि टेस्ला जैसी कंपनियों की सेल्फ-ड्राइविंग कारें सड़कों पर इतनी कम क्यों दिखती हैं? असल में, पूरी कहानी यह है कि अमेरिकी ऑटोमेकर्स अब सरकार के सामने ज़ोर-शोर से यह मांग कर रहे हैं कि नियमों में ढील दी जाए। और सच कहूं तो, उनकी यह मांग बिल्कुल वाजिब भी लगती है। वो चाहते हैं कि NHTSA (नेशनल हाइवे ट्रैफिक सेफ्टी एडमिनिस्ट्रेशन) सालाना 2,500 ऐसी गाड़ियों को मंजूरी दे जिन्हें चलाने के लिए ड्राइवर की ज़रूरत ही न पड़े। मतलब साफ है – वो इस नई टेक्नोलॉजी को जल्द से जल्द सड़कों पर उतारना चाहते हैं।

लेकिन यहां दिक्कत क्या है? देखिए, यह कोई नई बहस नहीं है। पिछले कई सालों से यही झमेला चल रहा है। कांग्रेस के लोग आपस में ही उलझे हुए हैं – कोई नए कानून बनाने की बात करता है तो कोई रोकने की। और NHTSA? वो तो जैसे ‘वेट एंड वॉच’ मोड में ही चल रहा है। इस बीच टेस्ला, GM और वेक्रूस जैसी कंपनियों ने तो इस टेक्नोलॉजी में करोड़ों डॉलर झोंक दिए हैं। पर सरकारी नियमों का ऐसा जाल कि आगे बढ़ने में दिक्कत हो रही है।

अब ताजा अपडेट क्या है? कंपनियों ने NHTSA के सामने सीधे-सीधे अपनी बात रख दी है। उनका कहना है कि “भई, यूरोप और चीन तो इस रेस में आगे निकल रहे हैं, और हम यहीं अटके पड़े हैं!” उनकी मांग साफ है – सालाना 2,500 सेल्फ-ड्राइविंग कारों को बिना स्टीयरिंग व्हील के ही अनुमति मिले। पर सरकार? अभी तक ‘मौन साधे’ बैठी है। हालांकि कांग्रेस में इसको लेकर खूब बहस चल रही है।

इस पूरे मामले में अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय है। ऑटोमोबाइल वालों का तो सीधा सा तर्क है – “हम तकनीकी रेस में पीछे रह जाएंगे!” वहीं दूसरी तरफ, सुरक्षा एक्सपर्ट्स की चिंता भी समझ आती है – “भई, बिना सख्त नियमों के ये कारें सड़कों पर खतरा बन सकती हैं।” और उपभोक्ता अधिकार वालों की बात तो और भी सही लगती है – “पहले सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम करो, फिर छूट देना।”

तो अब सवाल यह है कि आगे क्या होगा? अगर NHTSA ने हाँ कर दी, तो अमेरिका की सड़कें जल्द ही रोबोटिक कारों से भर सकती हैं। वरना कंपनियों को चीन या यूरोप का रुख करना पड़ेगा। एक तरह से देखा जाए तो, कांग्रेस का यह फैसला न सिर्फ कार उद्योग, बल्कि पूरी दुनिया की ट्रांसपोर्ट टेक्नोलॉजी की दिशा तय करेगा। क्या आपको नहीं लगता कि यह एक बड़ा मोड़ हो सकता है?

यह भी पढ़ें:

सेल्फ-ड्राइविंग कारों के नियम: अमेरिकी कंपनियों की ज़िद और हमारे सवाल

1. अरे भाई, अमेरिकी कार कंपनियों को इतनी जल्दी क्यों है?

देखिए, मामला सीधा-साधा है। अभी तक सेल्फ-ड्राइविंग कारों के लिए कोई clear regulations नहीं हैं। और यही problem है। क्योंकि बिना नियमों के…
– इनोवेशन रुकता है
– मार्केट में कंपटीशन ठीक से नहीं हो पाता

ईमानदारी से कहूं तो, ये कंपनियां बस इतना चाहती हैं कि सरकार जल्द से जल्द नियम बना दे ताकि वो अपनी autonomous vehicles को बाज़ार में उतार सकें। पर सवाल ये है कि क्या जल्दबाज़ी में बने नियम सही होंगे?

2. हम जैसे आम लोगों को इन नए नियमों से क्या मिलेगा?

अच्छा सवाल! असल में फायदे कई हैं, लेकिन मैं दो मुख्य बातें बताता हूँ:

पहला तो safety – नियम आएंगे तो सेल्फ-ड्राइविंग कारें ज़्यादा reliable होंगी। दूसरा, price का मामला। जब guidelines clear होंगे, तो competition बढ़ेगा और दाम भी कंट्रोल में रहेंगे।

पर एक डर है ना? कहीं ऐसा न हो कि नियम बनाने में इतनी जल्दबाज़ी की जाए कि safety compromise हो जाए।

3. भारत का क्या? क्या हमें भी ऐसे ही नियम चाहिए?

अरे भई, हमारा केस तो बिल्कुल अलग है!

सुनिए, regulations तो चाहिए ही, लेकिन…
– हमारी roads क्या अमेरिका जैसी हैं?
– हमारा traffic sense क्या वही है?

सच कहूं तो हमें अपने हिसाब के rules चाहिए। वो भी ऐसे जो हमारे यहां के ठेले, गड्ढे, और अचानक सामने आ जाने वाली गायों को handle कर सकें!

4. सबसे बड़ा खतरा क्या है इन कारों में?

बात सीधी है – इंसानों को समझना!

हम लोग तो unpredictable होते ही हैं। कोई अचानक ब्रेक मार दे, कोई सिग्नल तोड़ दे। AI को ये सब handle करना बड़ी चुनौती है।

और हां, एक बड़ा risk तो cybersecurity का भी है। कहीं कोई हैकर कार का control ही न ले ले! इसलिए strong regulations बनाना बेहद ज़रूरी है। वरना… खैर, आप समझ ही गए होंगे।

Source: ET Auto – Passenger Vehicles | Secondary News Source: Pulsivic.com

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