अमेरिका की डेयरी नीतियों से भारत समेत कितने देशों की कृषि बर्बाद? जानें पूरा विवाद

अमेरिका की डेयरी नीतियों ने भारत के किसानों को क्यों डरा दिया? पूरा विवाद समझिए

अरे भाई, क्या आपने सुना? भारत सरकार ने अमेरिका के साथ चल रही व्यापार वार्ता में एक ज़बरदस्त फैसला लिया है। डेयरी और कृषि उत्पादों के बाजार खोलने से साफ मना कर दिया! और सच कहूं तो यह फैसला बिल्कुल सही है। वजह? अमेरिका की वो सब्सिडी वाली डेयरी नीतियां जो पहले ही कई देशों के छोटे किसानों की कमर तोड़ चुकी हैं। भारत ने अपने 8 करोड़ से ज्यादा डेयरी किसानों को बचाने के लिए यह कदम उठाया है – जैसे कोई बड़ा भाई अपने छोटों की रक्षा करे।

असल मामला क्या है? अमेरिका का ‘सस्ता दूध’ सिंड्रोम

देखिए, मामला यह है कि अमेरिका अपने डेयरी उत्पादों को भारी सब्सिडी देकर दुनिया भर में सस्ते दामों पर बेचता है। अब सोचिए – जब कोई बड़ा खिलाड़ी मैदान में उतरे और सब्सिडी के बल पर सस्ता सामान बेचे, तो हमारे छोटे किसान कैसे टिक पाएंगे? यही हाल कनाडा, मैक्सिको और कई अफ्रीकी देशों का हो चुका है। भारत का डेयरी sector तो हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है – 80% से ज्यादा छोटे किसान इसी पर निर्भर हैं। सरकार ने समय रहते सबक सीख लिया। समझदारी की बात है न?

अब तक क्या हुआ? भारत ने दिखाई हिम्मत

तो अब स्थिति यह है कि भारत-अमेरिका वार्ता में डेयरी मुद्दा अटक गया है। और हमारी सरकार ने साफ कह दिया – “नहीं चाहिए आपका सब्सिडी वाला दूध!” WTO में भी यह मुद्दा गरमा रहा है। मजे की बात यह कि भारत ने पहले ही दूध पर import duty बढ़ा दी है। एक तरह से किसानों के लिए सुरक्षा कवच तैयार कर लिया। पर सवाल यह है कि क्या अमेरिका इतनी आसानी से मान जाएगा? शायद नहीं।

किसका क्या स्टैंड? सबके अपने-अपने मत

इस पूरे मामले में अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय है। भारतीय किसान संघ तो बिल्कुल खुश है – “सरकार ने सही फैसला लिया, वरना हमारे किसानों का क्या होता?” वहीं अमेरिकी trade representative थोड़े नाराज़ दिखे – “यह तो व्यापार बढ़ने में रुकावट है।” पर हमारे अर्थशास्त्री डॉ. राजीव कुमार ने बीच का रास्ता निकाला – “अभी के लिए तो यह ठीक है, पर लंबे समय में और समाधान खोजने होंगे।” सच बात तो यह है कि हर कोई अपने-अपने तरीके से सही है।

आगे क्या होगा? थोड़ा अनुमान, थोड़ा अंदाज़ा

अब सवाल यह कि आगे का गेम क्या होगा? वार्ताएँ तो चलती रहेंगी, पर डेयरी सेक्टर पर समझौता मुश्किल लग रहा है। अगर भारत ढीला पड़ा (जो शायद नहीं होगा), तो हमारे देशी डेयरी उद्योग को भारी नुकसान हो सकता है। पर अच्छी बात यह कि भारत के इस स्टैंड से अन्य विकासशील देश भी प्रेरणा ले सकते हैं। WTO में यह बहस और तेज होगी – यह तो तय है। और हमारा संदेश साफ है: “पहले अपने किसान, बाकी सब बाद में!”

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अमेरिका की डेयरी नीतियों का विवाद – जानिए पूरा माजरा

1. अमेरिका की डेयरी नीतियों से भारत के किसानों पर क्या असर पड़ रहा है?

देखिए, मामला कुछ ऐसा है – अमेरिका अपने डेयरी farmers को इतनी ज़्यादा subsidies देता है कि उनके दूध और dairy products की कीमतें international market में बहुत कम हो जाती हैं। अब आप ही बताइए, हमारे छोटे-छोटे dairy farmers इस competition में कैसे टिक पाएंगे? नतीजा? उनकी income तो घट ही रही है, साथ ही motivation भी। सच कहूं तो यह स्थिति किसी को भी निराश कर देगी।

2. क्या यह समस्या सिर्फ भारत तक सीमित है?

अरे नहीं भई! यह तो global issue बन चुका है। अफ्रीका के कई देशों से लेकर न्यूज़ीलैंड तक – सब इससे जूझ रहे हैं। असल में, अमेरिका की यह policy पूरे global dairy market का balance ही बिगाड़ रही है। क्या आपको नहीं लगता कि यह unfair competition है?

3. भारत सरकार ने इस मुद्दे पर क्या कदम उठाए हैं?

तो सुनिए, हमारी सरकार ने दोतरफा action लिया है। एक तरफ तो WTO में यह matter उठाया गया है – अमेरिका की subsidies policy के खिलाफ official complaint दर्ज करवाई गई है। दूसरी तरफ, हमारे अपने dairy farmers को support देने के लिए कुछ अच्छी schemes भी launch की गई हैं। पर सवाल यह है कि क्या यह काफ़ी है?

4. आगे का रास्ता क्या हो सकता है?

Experts की राय को मानें तो solution दो स्तर पर चाहिए। पहला तो WTO के ज़रिए अमेरिका पर pressure बनाना होगा। लेकिन साथ ही – और यह बहुत ज़रूरी है – हमें अपने dairy sector को modernize करना होगा। Productivity बढ़ानी होगी। Technology अपनानी होगी। क्योंकि अंत में तो हमें global market में compete करना ही है, है न? एकदम सच बात।

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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