अमेरिका का दोहरा चरित्र! खुद रूस से खरीदारी, पर भारत पर जुर्माना – क्या ये है न्याय?
अरे भई, अमेरिका फिर से अपने ही नियम तोड़ते हुए पकड़ा गया है। सच कहूं तो ये वाली हाइपोक्रिसी तो बिल्कुल साफ दिख रही है। एक तरफ तो भारत पर रूस के साथ कारोबार करने के लिए जुर्माना लगाया, और दूसरी तरफ खुद ही रूस से हजारों करोड़ का सौदा कर रहे हैं। सोचिए जरा – क्या ये डबल स्टैंडर्ड नहीं है? या फिर भारत को टारगेट करने की सोची-समझी रणनीति?
पूरा माजरा क्या है?
याद है न वो रूस-यूक्रेन वाला मामला? उसके बाद से अमेरिका और उसके दोस्तों ने रूस पर प्रतिबंधों की बौछार कर दी। साथ ही दूसरे देशों से भी कहा कि रूस से दूरी बनाए रखो। लेकिन भारत ने? हमने तो अपने राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दी और रूस से तेल-हथियार की डील जारी रखी। नतीजा? अमेरिका का गुस्सा और भारत पर जुर्माना। पर अब पता चला है कि अमेरिका खुद ही रूस से 20,000 करोड़ का सामान खरीद रहा था! बात समझ आई? जिस CAATSA एक्ट का हवाला देकर हमें पेनाल्टी दी गई, उसी का उल्लंघन वो खुद कर रहे थे। और तो और, ट्रंप साहब के दावे भी धरे के धरे रह गए। उन्होंने तो कहा था कि उन्होंने रूस के खिलाफ सख्त कार्रवाई की थी। लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं।
अब ताजा क्या है?
साल 2023 का आंकड़ा देखिए – अमेरिकी कंपनियों ने रूस से 2.5 अरब डॉलर (यानी लगभग 20,000 करोड़ रुपये) का सामान खरीदा! ये रकम तो उस जुर्माने से कई गुना ज्यादा है जो उन्होंने भारत पर लगाया था। असल में बात ये है कि अमेरिका के लिए नियम सिर्फ दूसरों के लिए बने होते हैं। अपने लिए तो वो हमेशा एक्सेप्शन निकाल ही लेते हैं। है न मजेदार बात?
किसने क्या कहा?
भारत सरकार का रिएक्शन तो बिल्कुल साफ था। एक वरिष्ठ अधिकारी ने सीधे-सीधे कह दिया – “ये दोहरा रवैया बर्दाश्त से बाहर है।” और सच कहूं तो उन्होंने बिल्कुल सही कहा। वहीं अमेरिका में भी ये मुद्दा गरमा गया है। डेमोक्रेट्स तो बिडेन प्रशासन को घेरने में जुट गए हैं। एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं? वो मानते हैं कि ये सब राजनीति का खेल है, नियमों का सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं।
अब आगे क्या?
देखिए, ये मामला भारत-अमेरिका रिलेशन्स के लिए बड़ा टर्निंग पॉइंट हो सकता है। अब तक तो हम अमेरिका को भरोसेमंद पार्टनर मानते आए हैं। लेकिन ऐसे डबल स्टैंडर्ड से ये भरोसा डगमगा सकता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अमेरिका की इमेज को झटका लगा है। अब भारत के सामने दो रास्ते हैं – या तो अमेरिका से बातचीत करके मामला सुलझाए, या फिर रूस और दूसरे देशों के साथ रिश्ते और मजबूत करे। मेरी निजी राय? हमें अपने राष्ट्रीय हित को सबसे ऊपर रखना चाहिए। बाकी तो सब बाद में आता है।
आखिर में बस इतना कहूंगा – अमेरिका का ये दोहरा चरित्र उसकी विदेश नीति की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है। और हमारे लिए ये सबक है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सिर्फ अपने फायदे की बात सोचनी चाहिए। क्योंकि दूसरे तो वैसे भी अपना ही फायदा देखते हैं। सच नहीं कह रहा?
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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com