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गाजा युद्धविराम वार्ता से अमेरिका ने वापस बुलाए अपने वार्ताकार, जानें पूरा मामला

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गाजा युद्धविराम वार्ता: अमेरिका ने अपना पल्ला झाड़ लिया?

क्या आपने सुना? अमेरिका ने गाजा की युद्धविराम वार्ताओं से अपने टॉप वार्ताकार स्टीव विटकॉफ़ को वापस बुला लिया है। और ये कदम तब उठाया गया जब अमेरिकी मध्य पूर्व दूत ने सीधे-सीधे हमास पर आरोप लगा दिया कि वो शांति के लिए गंभीर नहीं है। सच कहूं तो, ये तो वैसा ही है जैसे किसी मैच के बीच में ही अंपायर ने सीटी बजा दी हो। इसराइल और हमास के बीच चल रही इस जंग में ये नया मोड़ काफी चिंताजनक है। अब सवाल यह है कि आगे क्या?

पीछे देखें तो: ये आग कब से जल रही है?

गाजा की ये कहानी कोई नई तो नहीं है ना? महीनों से चल रही इस हिंसा में तो अब तक सैकड़ों लोगों की जानें जा चुकी हैं। असल में देखा जाए तो पूरा इलाका ही तबाह हो चुका है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तो शांति के लिए दबाव बनाया जा रहा था – मिस्र हो या कतर, सबने कोशिश की। लेकिन हमेशा की तरह, बात बनती नहीं दिख रही। अमेरिका ने भी अपना बड़ा दांव चला था – स्टीव विटकॉफ़ को भेजा था न? अब जब वो वापस आ गए हैं, तो समझ लीजिए कि बातचीत का ये सिलसिला भी ठंडा पड़ गया है।

वार्ताकार की वापसी: सिर्फ एक खबर या कुछ और?

अब ये स्टीव विटकॉफ़ का वापस आना सिर्फ एक फॉर्मलिटी नहीं है भाई। इसके पीछे तो बड़ा मैसेज छुपा है। अमेरिका साफ-साफ कह रहा है कि हमास ने शांति के मौके को गंभीरता से नहीं लिया। वहीं इसराइल तो पहले से ही हमास को ही दोष देता आया है। मजे की बात ये है कि दोनों ही पक्ष एक-दूसरे पर ही उंगली उठा रहे हैं। हमास का कहना है कि वो तैयार है, लेकिन उनकी शर्तें अलग हैं। इसराइल का कहना है कि हमास ही रुकावट है। बस, यहीं तो फंस गई बात!

कौन क्या बोला? प्रतिक्रियाओं का अंदाज़

इस पूरे मामले पर तो हर कोई अपना-अपना राग अलाप रहा है। अमेरिकी विदेश विभाग तो बिल्कुल साफ शब्दों में कह चुका है – “हमास ने मौका गंवाया।” वहीं हमास वाले तो अमेरिका पर ही भौंकने लगे कि ये तो इसराइल का ही खेल है। संयुक्त राष्ट्र? वो तो हमेशा की तरह चिंता जता कर अपना फर्ज़ पूरा कर चुका। और हां, मानवाधिकार वालों ने भी अपनी रिपोर्ट्स निकालनी शुरू कर दी हैं। पर सच तो ये है कि जब तक दोनों पक्ष गंभीर नहीं होंगे, ये सब बातें हवा में ही रहेंगी।

आगे क्या? कुछ तो रास्ता निकलेगा?

अब स्थिति ये है कि वार्ता ठप्प हो गई है और हिंसा बढ़ने का खतरा मंडरा रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव तो है, पर क्या वाकई कोई नया रास्ता निकलेगा? ईमानदारी से कहूं तो मुझे तो नहीं लगता। क्योंकि जब तक दोनों पक्षों की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखेगी, तब तक संयुक्त राष्ट्र चाहे जितनी कोशिश कर ले। सबसे बड़ी चिंता तो उन मासूमों की है जो इस जंग के बीच फंसे हुए हैं। उनकी हालत दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। खैर, देखते हैं आगे क्या होता है। कोई नई खबर आई तो आपको फौरन बताऊंगा। तब तक के लिए… शांति की उम्मीद तो कर ही सकते हैं न?

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अभी-अभी खबर आई है कि गाजा युद्धविराम की बातचीत से अमेरिकी वार्ताकार वापस लौट आए हैं। और देखा जाए तो, यह इसराइल-हमास के बीच चल रहे इस जंग की पेचीदगियों को फिर से सामने ले आया है। सच कहूं तो, शांति की कोशिशें इन दिनों मुश्किल से मुश्किल होती जा रही हैं – यह तो बस एक और उदाहरण है।

Online मीडिया रिपोर्ट्स कह रही हैं कि तनाव बढ़ने से पूरे इलाके की स्थिरता पर सवालिया निशान लग गया है। अब सवाल यह है कि आगे क्या? क्योंकि अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं और दोनों पक्षों की रणनीति ही तय करेगी कि यह संकट कहां जाकर थमेगा। या फिर… और बिगड़ेगा?

एक तरफ तो ये वार्ताएं चल रही हैं, लेकिन दूसरी तरफ जमीन पर हालात वैसे के वैसे ही बने हुए हैं। क्या आपको नहीं लगता कि यह पूरा मामला उस बच्चे जैसा है जो दोनों हाथों से रेत पकड़ने की कोशिश कर रहा हो? जितना पकड़ो, उतना ही फिसलता चला जाता है।

गाजा युद्धविराम वार्ता: आपके मन में उठ रहे हर सवाल का जवाब

अमेरिका ने अपने वार्ताकारों को अचानक वापस क्यों बुला लिया?

देखिए, सच कहूं तो ये कोई बहुत हैरानी वाली बात नहीं है। जब हमास और इजरायल वालों की बातचीत ही नहीं बन रही थी, तो अमेरिका के पास और क्या विकल्प था? असल में, ceasefire talks पूरी तरह से अटक चुकी थीं – ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली की ट्रैफिक लाइट खराब होने पर सारी गाड़ियां अटक जाती हैं। तो वार्ताकारों को वापस बुलाना तो लाज़मी था।

ये सब गाजा के आम लोगों के लिए क्या मायने रखता है?

अरे भाई, सीधी सी बात है ना? जब बातचीत टूटती है, तो गोलियां चलने लगती हैं। और इसमें सबसे ज्यादा तो वहीं के civilians की जान जाती है। Humanitarian crisis? वो तो पहले से ही चरम पर था, अब और बढ़ेगा। एक तरफ भूख, दूसरी तरफ डर… सच में दिल दहलाने वाली स्थिति है।

क्या अभी भी शांति की कोई उम्मीद बाकी है?

ऐसा नहीं कि सब खत्म हो गया। देखा जाए तो UN वगैरह तो लगातार दबाव बना रहे हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या Hamas और Israel वाले फिर से बातचीत की टेबल पर आने को तैयार होंगे? मेरा मानना है कि अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय मिलकर काम करे, तो कुछ तो संभावना बन सकती है।

दुनिया ने अमेरिका के इस कदम पर कैसी प्रतिक्रिया दी?

हालांकि अमेरिका को तो हर मामले में कोई न कोई टांग खींचता ही रहता है। इस बार भी Middle East के कुछ देशों ने सीधे अमेरिका को ही दोषी ठहरा दिया। वहीं यूरोप और UN वालों का रुख थोड़ा संतुलित रहा – उन्होंने फौरन बातचीत शुरू करने की अपील की। पर सच पूछो तो, अब तक की प्रतिक्रियाएं वैसी ही हैं जैसी उम्मीद थी।

Source: Dow Jones – World News | Secondary News Source: Pulsivic.com

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