अमेरिका का टैरिफ बूमरैंग: क्या अगले महीने डील नहीं हुई तो हंगामा होगा?
अरे भाई, अमेरिकी ट्रेजरी सेक्रेटरी ने तो बड़ी दिलचस्प चेतावनी दे डाली है! कह रहे हैं कि अगर अगले महीने तक व्यापार समझौता नहीं हुआ, तो अमेरिका को ही अपने ही टैरिफ का बूमरैंग इफ़ेक्ट झेलना पड़ेगा। सच कहूँ तो ये बयान बिल्कुल सही वक़्त पर आया है, क्योंकि 90 दिन की टैरिफ रोक की डेडलाइन इसी बुधवार को ख़त्म हो रही है। और हाँ, ये पूरा मामला अमेरिका और उसके ट्रेड पार्टनर्स के बीच की तनातनी को अगले लेवल पर ले जा सकता है।
पीछे की कहानी: टैरिफों का ये सिलसिला कब से चल रहा है?
देखिए न, पिछले कुछ सालों से अमेरिका और दूसरी बड़ी इकॉनमीज़ के बीच ट्रेड वॉर चल रहा है। अमेरिका ने स्टील, एल्युमिनियम से लेकर टेक प्रोडक्ट्स तक पर भारी-भरकम टैरिफ लगा दिए थे। जवाब में यूरोपियन यूनियन, चीन और दूसरे देशों ने भी अमेरिकी सामानों पर टैक्स बढ़ा दिए। बस इसी झगड़े को शांत करने के लिए 90 दिन की ‘टैरिफ ट्रूस’ दी गई थी, ताकि दोनों पक्ष आखिरी बार बातचीत कर सकें। पर सच पूछो तो, क्या वाकई ये ट्रूस काम आई?
अब क्या चल रहा है? वक़्त तेज़ी से निकला जा रहा है!
ट्रेजरी सेक्रेटरी ने तो साफ-साफ कह दिया है – डील नहीं हुई तो अमेरिकी इंडस्ट्रीज़ और आम उपभोक्ताओं को महंगाई के रूप में इसकी सीधी मार झेलनी पड़ेगी। और हाँ, बुधवार को डेडलाइन ख़त्म होते ही नए टैरिफ अपने-आप लागू हो जाएंगे। सबसे हैरानी की बात? वार्ता में अभी तक कोई खास प्रगति नहीं हुई है। दोनों तरफ के लोग अपने-अपने स्टैंड पर अड़े हुए हैं। ऐसे में सवाल यही उठता है – क्या वाकई समझौता हो पाएगा?
कौन क्या बोल रहा है?
अमेरिकी ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव का कहना है, “हम समाधान के लिए तैयार हैं, लेकिन अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिसेज़ बर्दाश्त नहीं की जाएंगी।” वहीं एक्सपर्ट्स की राय है, “इस टैरिफ वॉर से सिर्फ अमेरिका ही नहीं, पूरी ग्लोबल इकॉनमी को नुकसान होगा।” और तो और, कई इंडस्ट्री एसोसिएशन्स भी चिंता जता रहे हैं – “ये फैसला छोटे बिज़नेसेज़ के लिए तबाही ला सकता है, जो पहले ही कोविड के बाद से जूझ रहे हैं।” सचमुच, हालात गंभीर हैं।
आगे क्या? क्या होगा अगले कुछ दिनों में?
अगले कुछ दिनों में तो वार्ताओं का टेंपो बढ़ने वाला है। दोनों पक्ष डेडलाइन से पहले कोई हल निकालना चाहेंगे। पर अगर डील नहीं हुई? तब तो ट्रेड वॉर और गहरा सकता है। और इसका असर ग्लोबल मार्केट्स की उठापटक और सप्लाई चेन पर पड़ेगा, जो अभी यूक्रेन संकट से उबर भी नहीं पाई है।
इस पूरे मामले पर नज़र रखना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि इसका असर सिर्फ अमेरिकी इकॉनमी पर ही नहीं, पूरी दुनिया की ट्रेड सिस्टम पर पड़ेगा। आने वाले दिनों में होने वाली वार्ताओं के नतीजे न सिर्फ policy मेकर्स, बल्कि हम जैसे आम लोगों के लिए भी बेहद अहम होंगे। सच कहूँ तो, ये गेम ऑफ थ्रोन्स जैसा हो गया है – जिसमें हर कोई अपने हित साधना चाहता है!
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Source: Financial Times – Global Economy | Secondary News Source: Pulsivic.com