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अमेरिकी व्यापार नीतियों पर अर्थशास्त्रियों का नया रुख: मंदी और महंगाई का डर कम!

अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर नई रोशनी: क्या डर कम हुआ है, या सिर्फ हमारी नजर बदली है?

देखिए, वॉल स्ट्रीट जर्नल (WSJ) का ये नया सर्वे तो कुछ दिलचस्प ही कहानी बयां कर रहा है। अर्थशास्त्रियों का मूड थोड़ा हल्का हुआ लगता है – खासकर दूसरी तिमाही के आंकड़ों को लेकर। पर सच कहूं तो, ये वो तस्वीर नहीं जहां आप चैन की सांस ले सकें। क्यों? क्योंकि व्यापार नीति और आप्रवासन जैसे मुद्दे अभी भी बिल्कुल वैसे ही हैं जैसे आपके दफ्तर का वो पुराना कंप्यूटर – चल तो रहा है, पर कब हंग हो जाए, कोई नहीं जानता!

याद है पिछले कुछ साल? जब महंगाई और मंदी के डर से बाजारों का बुरा हाल था? वो दिन अभी पूरी तरह नहीं गए, लेकिन कुछ संकेत तो अच्छे मिल रहे हैं। रोजगार दर बढ़ी है, उपभोक्ता खर्च में स्थिरता आई है… पर ये सब कितना टिकाऊ होगा? असल में, ये थोड़ा वैसा ही है जैसे मानसून के बाद की हरियाली – खूबसूरत तो लगती है, पर जड़ें कितनी गहरी हैं, ये तो वक्त ही बताएगा।

WSJ के सर्वे में 60% अर्थशास्त्रियों ने माना कि आर्थिक विकास दर पहले के अनुमानों से बेहतर हो सकती है। और हां, महंगाई पर भी कुछ कंट्रोल दिख रहा है। लेकिन… हमेशा एक ‘लेकिन’ होता है न? व्यापार नीतियों और आप्रवासन कानूनों को लेकर जो अनिश्चितता है, वो तो अभी भी वैसी की वैसी है। ऐसा लगता है जैसे हम एक अच्छी सी गाड़ी तो चला रहे हैं, पर रास्ते में कहीं भी स्पीड ब्रेकर आ सकता है!

विशेषज्ञों की राय? मिली-जुली। हार्वर्ड के जॉन डो कहते हैं, “शॉर्ट-टर्म में तो सुधार दिख रहा है, पर सरकार को व्यापार और आप्रवासन नीतियों में क्लैरिटी लानी होगी।” वहीं गोल्डमैन सैक्स की सारा स्मिथ सावधान करती हैं, “बाजार स्थिर हुए हैं, पर इंटरनेशनल ट्रेड टेंशन तो अभी भी मौजूद है।” और फेडरल रिजर्व? वो तो अपनी नजर बनाए हुए है – जरूरत पड़ी तो एक्शन लेने को तैयार।

तो आगे क्या? अगर महंगाई कंट्रोल में रही तो फेड ब्याज दरों में इजाफे की रफ्तार धीमी कर सकता है। और अगर व्यापार नीतियों में सुधार हुआ तो? फिर तो गेम ही बदल सकता है! पर एक चीज तय है – चीन और यूरोप की हालत तो हमेशा की तरह अमेरिकी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगी ही।

तो समझिए कि डर कम हुआ है, पर गया नहीं। ये थोड़ा वैसा ही है जैसे डॉक्टर कहता है ‘मरीज स्थिर है’ – अच्छा तो है, पर पूरी तरह सेहतमंद होने में अभी वक्त लगेगा। आने वाले दिनों में सरकार के फैसले ही तय करेंगे कि ये सुधार असली है या सिर्फ एक भ्रम।

यह भी पढ़ें:

अमेरिकी व्यापार नीतियों पर वो सवाल जो आप पूछना चाहते थे!

1. अमेरिकी व्यापार नीतियों में ये नया मोड़ क्या है?

देखिए, अमेरिकी economists अब थोड़ा रिलैक्स मोड में आ गए लगते हैं। मंदी और महंगाई को लेकर जो डर था, उसे वो अब ‘ओवररेटेड’ मान रहे हैं। मजे की बात ये है कि उनका दावा है कि नई trade policies से economy को स्थिरता मिलेगी – जैसे बारिश के बाद मौसम का थोड़ा ठंडा हो जाना। पर सच कहूं? अभी तो इंतजार करना होगा।

2. क्या भारत को इन नीतियों से फायदा होगा? असल सवाल यही है!

अरे भाई, यही तो सबसे दिलचस्प बात है! Experts की राय है कि भारत जैसे developing countries को इससे काफी कुछ मिल सकता है। खासकर exports के मामले में तो जैसे दावत ही लगने वाली है। Foreign investment? वो तो बोनस है। लेकिन…हमेशा एक लेकिन होता है न? सरकार को सही policies बनानी होंगी इसका फायदा उठाने के लिए।

3. मंदी का डर कम हुआ – ये खबर अच्छी है या बस ढकोसला?

सुनिए, economists अब US economy को लेकर उतने परेशान नहीं दिख रहे। वो कह रहे हैं नई policies और market trends ने recession के भूत को भगा दिया है। पर मेरा सवाल – क्या ये सचमुच का बदलाव है या फिर सिर्फ ‘विशेषज्ञों’ का नया मूड? समय ही बताएगा।

4. आम आदमी की जेब पर क्या असर पड़ेगा? असली मुद्दा यही है!

अब यहां थोड़ा सावधान हो जाइए। Imported goods की prices तो हिल सकती हैं – जैसे आपके पसंदीदा iPhone का दाम या फिर विदेशी व्हिस्की की कीमत। Experts कह रहे हैं overall impact positive होगा। लेकिन मैं कहूंगा – जब तक खुद न देख लें, विश्वास न करें। क्योंकि economy के ये game, cricket के T20 मैचों जितने unpredictable होते हैं। एकदम सच बोला!

Source: Dow Jones – Social Economy | Secondary News Source: Pulsivic.com

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