USAID में कटौती: 2030 तक 1.4 करोड़ जानें जा सकती हैं? चौंक गए न!
अरे भाई, एक ताजा रिपोर्ट ने तो दुनिया को हिला कर रख दिया है। सोचो, अमेरिका की USAID एजेंसी के फंड कटने से अगले 7 साल में 1.4 करोड़ लोग मर सकते हैं! ये कोई छोटी-मोटी संख्या नहीं है – ये तो पूरे एक शहर के बराबर लोग हैं। और सबसे दुखद बात? ये सारी मौतें मलेरिया, एचआईवी/एड्स जैसी बीमारियों से होंगी जिन्हें रोका जा सकता है। हमारे जैसे विकासशील देशों को तो इसकी सबसे ज्यादा मार पड़ने वाली है।
USAID क्या है, और क्यों है इसकी कटौती खतरनाक?
देखिए, USAID (United States Agency for International Development) वो संस्था है जो दशकों से दुनिया भर में मलेरिया, एचआईवी जैसी बीमारियों से लड़ रही है। असल में, इसके Global Health Programs ने तो कमाल ही कर दिया था। लेकिन अब? अमेरिका अपना बजट काट रहा है। और ये कटौती सीधे-सीधे उन दवाइयों और वैक्सीन पर असर डाल रही है जो लाखों लोगों की जान बचाती हैं। क्या हम इतने निर्मम हो गए हैं?
रिसर्च के नतीजे: डरावने, पर सच
एक स्टडी ने तो ये बताया है कि अफ्रीका और दक्षिण एशिया जैसे इलाकों में हालात बेकाबू हो जाएंगे। सोचिए, 1.4 करोड़ मौतें! ये सिर्फ आंकड़े नहीं हैं – हर एक नंबर के पीछे एक मां, एक बच्चा, एक परिवार है। और सबसे बुरी बात ये कि फंड कटने से वैक्सीन, दवाइयां और डॉक्टर्स का ट्रेनिंग सब प्रभावित होगा। क्या हम ये सब देखते रहेंगे?
दुनिया क्या कह रही है?
WHO से लेकर सारे बड़े NGOs इस पर चिंता जता रहे हैं। उनका कहना है कि ये कदम हमें 20 साल पीछे धकेल देगा। पर अमेरिका? वो अभी तक चुप है। अंदरूनी सूत्रों की मानें तो वहां इस पर बहस चल रही है। पर सवाल ये है कि क्या बहस से इन लाखों जिंदगियों की कीमत चुकाई जा सकती है?
आगे का रास्ता: मुश्किल, पर नामुमकिन नहीं
तो क्या उम्मीद है? देखिए, अगर अमेरिका फंड बहाल कर दे, या फिर यूरोपीय संघ और बिल गेट्स जैसे दानदाता आगे आएं, तो हालात सुधर सकते हैं। लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ… तो स्थिति डरावनी हो सकती है। संक्रामक बीमारियां फिर से फैलेंगी, और एक नया वैश्विक संकट पैदा होगा।
सच कहूं तो, ये सिर्फ पैसे का मामला नहीं है। ये इंसानियत का सवाल है। क्या हम अपने हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे, या फिर कुछ करेंगे? वक्त आ गया है चुनाव करने का।
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USAID के बजट में कटौती की बात सुनकर अक्सर लोगों को लगता है कि यह सिर्फ अखबारों के आँकड़ों वाली खबर है। लेकिन असलियत? यह हमारे-आपके जैसे लाखों लोगों की ज़िंदगी से सीधा खिलवाड़ है। सोचिए, जब global health programs को फंड नहीं मिलेगा तो क्या होगा? वो दवाइयाँ, वो टीके, वो स्वास्थ्य सुविधाएँ – सब अधूरे रह जाएंगे।
अब सवाल यह है कि हमें इन development programs में पैसा क्यों लगाना चाहिए? ऐसे समझिए – यह उतना ही ज़रूरी है जितना कि अपने घर की नींव मज़बूत करना। एक तरफ तो यह आज की ज़रूरत है, दूसरी तरफ भविष्य की सुरक्षा। और हाँ, यह कोई खर्च नहीं, बल्कि निवेश है। मानवता के नाम पर।
लेकिन सच कहूँ तो, हम अक्सर तब तक सच्चाई को नज़रअंदाज़ कर देते हैं जब तक आफत सिर पर न आ जाए। ये चेतावनियाँ? इन्हें गंभीरता से लेने का वक्त आ गया है। वरना… खैर, परिणाम की कल्पना करके ही रूह काँप जाती है।
इस मुद्दे पर और गहराई से बात करेंगे, पर पहले आप बताइए – क्या आपको लगता है कि global health पर खर्च करना सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिए? कमेंट में ज़रूर बताएँ!
Source: Financial Times – Companies | Secondary News Source: Pulsivic.com