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“उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का बयान: ‘ये उसकी आत्मा है… बीज है’ – संविधान की प्रस्तावना पर क्या कहा? वीडियो देखें”

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का बयान: संविधान की प्रस्तावना पर बहस फिर से गर्म!

अरे भाई, राजनीति में तो हमेशा कुछ न कुछ चलता रहता है, लेकिन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने तो हाल ही में एक ऐसी बात कह दी जिसने सबका ध्यान खींच लिया। संविधान की प्रस्तावना को लेकर उनकी टिप्पणी ने तो जैसे राजनीतिक गलियारों में तूफान ला दिया है। असल में, उन्होंने इसे “संविधान की आत्मा” बताया – और सच कहूं तो, गलत भी नहीं कहा। लेकिन जब उन्होंने 1976 के उस विवादास्पद 42वें संशोधन का ज़िक्र किया, जिसमें ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ जैसे शब्द जोड़े गए थे, तब तो मामला और भी दिलचस्प हो गया। क्या आपको नहीं लगता कि यह बहस सिर्फ शब्दों से कहीं आगे की बात है?

पहले समझिए – प्रस्तावना है क्या चीज़?

देखिए, हमारी प्रस्तावना कोई स्कूल की प्रार्थना जैसी चीज़ नहीं है जिसे रट लिया और भूल गए। यह तो वो मूलमंत्र है जिस पर पूरा देश चलता है। और 1976 में… हां वही इंदिरा गांधी का इमरजेंसी वाला दौर… तब इसमें तीन नए शब्द डाले गए। अब सवाल यह है कि क्या ये सिर्फ शब्द थे या फिर देश की राजनीतिक दिशा बदलने का औज़ार? उपराष्ट्रपति ने तो इस पर सीधे-सीधे बात की है। और सच कहूं तो, ये बहस नई नहीं है – बस अब फिर से गर्म हुई है।

धनखड़ साहब ने क्या कहा असल में?

बात ये हुई कि उन्होंने प्रस्तावना को संविधान का “बीज” कहा – जैसे पेड़ की पूरी कहानी उसके बीज में छिपी होती है। एकदम सटीक उदाहरण दिया न? और फिर उन्होंने 42वें संशोधन की बात छेड़ दी। अब यहां थोड़ा कॉन्ट्रोवर्सी है, क्योंकि जिस तरह से ये शब्द जोड़े गए थे, उसे लेकर तब भी बवाल हुआ था। पर धनखड़ साहब का कहना है कि ये संशोधन देश की एकता को मजबूत करने के लिए था। सच्चाई चाहे जो हो, लेकिन अब तो सभी पार्टियों के कान खड़े हो गए हैं!

रिएक्शन्स: किसने क्या कहा?

अब जैसा कि होता आया है – सरकार वालों ने तारीफों के पुल बांध दिए। “संविधान की मूल भावना” वगैरह-वगैरह। लेकिन विपक्ष? वो तो मौके की तलाश में ही बैठा था! उनका कहना है कि ये सब राजनीति है। और विशेषज्ञ? वो बीच का रास्ता निकाल रहे हैं – कह रहे हैं कि इतिहास को राजनीति से न जोड़ें। पर सच तो ये है कि जब संविधान की बात होती है, तो राजनीति अपने-आप आ जाती है। है न?

अब आगे क्या? बहस बढ़ेगी या शांत हो जाएगी?

मेरी नज़र में तो ये बहस अभी और गर्म होगी। क्यों? क्योंकि चुनावी माहौल है न! हर पार्टी इसे अपने तरीके से पेश करेगी। लेकिन एक अच्छी बात ये है कि लोगों को संविधान के बारे में जानने का मौका मिल रहा है। अब देखना ये है कि ये चर्चा किस दिशा में जाती है – क्या ये सिर्फ एक राजनीतिक विवाद बनकर रह जाएगी, या फिर हमारे संवैधानिक मूल्यों को सही मायने में मजबूत करेगी?

आखिरी बात: सच तो ये है कि उपराष्ट्रपति ने एक जरूरी मुद्दे पर बात छेड़ दी है। चाहे जिस नीयत से हो, लेकिन संविधान की बात होना अच्छी बात है। बस, हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि ये सिर्फ शब्दों की लड़ाई नहीं, बल्कि हमारे देश के भविष्य की बात है। और हां, अगर इससे हम सच में अपने संविधान को बेहतर तरीके से समझ पाएं, तो ये तो बोनस ही होगा। क्या कहते हैं आप?

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1. धनखड़ साहब ने आखिर क्या कहा प्रस्तावना के बारे में?

देखिए, उपराष्ट्रपति जी ने तो संविधान की प्रस्तावना को “आत्मा” बताया है – और सच कहूँ तो गलत भी नहीं कहा। ये वो बीज है जिससे पूरा संविधान उगता है। ऐसा नहीं कि ये सिर्फ किताबी बात है… असल में तो हर भारतीय को इसे समझना चाहिए। वैसे भी, क्या आपने कभी गौर किया है कि हमारे रोज़मर्रा के rights की जड़ें यहीं से निकलती हैं?

2. ये बयान दिया कहाँ गया था?

एक public event में, जहाँ उन्होंने बड़े ही सरल तरीके से संविधान की अहमियत समझाई। अब तो पूरा वीडियो social media पर आग की तरह फैल चुका है। आपने देखा? नहीं देखा तो ज़रूर देखिएगा – बातचीत का अंदाज़ बड़ा ही रोचक है।

3. प्रस्तावना इतनी खास क्यों?

अरे भई, ये तो वो शुरुआत है जहाँ से सबकुछ शुरू होता है! Justice, liberty, equality और fraternity जैसे शब्द सिर्फ शब्द नहीं हैं – ये तो वो मूल्य हैं जिन पर हमारा पूरा देश टिका है। एक तरह से देखें तो ये हमारे लिए GPS की तरह है जो देश को सही दिशा दिखाता है। सोचिए, अगर ये न होता तो?

4. क्या इस पर कोई बवाल हुआ है?

ईमानदारी से कहूँ तो बड़ी controversy तो नहीं दिखी। पर social media है न – यहाँ तो हर बात पर लोगों के अलग-अलग reactions आते ही हैं। कुछ लोग तारीफ़ कर रहे हैं (“बिल्कुल सही कहा!”), तो कुछ को सवाल है (“लेकिन ये तो पहले से ही सब जानते हैं”)। मगर सच पूछो तो, कम से कम संविधान पर बात तो हो रही है न? यही तो अच्छी बात है!

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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