केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन अब नहीं रहे – 101 साल की उम्र में कहा अलविदा
आज एक दुखद खबर सामने आई है। केरल की राजनीति के उस पुरोधा, वामपंथी आंदोलन के स्तंभ वीएस अच्युतानंदन ने 101 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। सच कहूं तो, यह सिर्फ एक नेता का जाना नहीं है… एक पूरे युग का अंत है। पिछले कुछ समय से वे बीमार चल रहे थे, पर उनके जाने की खबर ने पूरे देश को झकझोर दिया है। CPI(M) के लिए तो यह किसी सदमे से कम नहीं – जैसे कोई बरगद का पेड़ गिर गया हो।
जब एक युवा क्रांतिकारी बना दिग्गज नेता
अलप्पुझा में 1921 में जन्मे इस शख्स की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं। सोचिए, जिसने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया हो, वही आगे चलकर केरल का मुख्यमंत्री बना! 1987 से 1991 तक उनका कार्यकाल… अरे भई, यह वही दौर था जब केरल में जमींदारी प्रथा के खिलाफ ऐतिहासिक फैसले हुए। शिक्षा और सामाजिक न्याय के मामले में तो उन्होंने ऐसे कदम उठाए जो आज भी याद किए जाते हैं। पर सच यह है कि उनकी ताकत सिर्फ सियासत में नहीं थी…
साहित्य और संस्कृति का वो अनोखा पैरोकार
कम ही लोग जानते हैं कि अच्युतानंदन सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि संस्कृति के संरक्षक भी थे। केरल शास्त्र साहित्य परिषद की स्थापना करके उन्होंने क्या खूब काम किया! साहित्य से उनका लगाव… मानो कोई रिश्ता हो। कला-संस्कृति को लेकर उनका जुनून ही था जिसने केरल को एक अलग पहचान दी। है ना कमाल की बात?
आखिरी दिनों की कहानी और देश का दुख
बीते कुछ समय से उनकी तबीयत ठीक नहीं चल रही थी। उम्र का भारी बोझ… पुरानी बीमारियां… पर उनके जाने की खबर फिर भी चौंकाने वाली थी। अब CPI(M) और राज्य सरकार उनके अंतिम संस्कार की तैयारियों में जुट गई है। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर तमाम नेताओं ने शोक जताया है। मोदी जी का ट्वीट – “वीएस अच्युतानंदन जी के निधन से दुखी हूँ…” – पर असल में यह दुख सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं है। केरल का आम आदमी भी आज मायूस है।
अब क्या होगा उनकी विरासत का?
सबसे बड़ा सवाल यही है ना? CPI(M) कह रही है कि वे उनके सिद्धांतों को आगे बढ़ाएंगी। शायद कोई नई योजना भी शुरू हो… शिक्षा से जुड़ी होगी। पर सच पूछो तो, असली चुनौती है नए नेतृत्व को तैयार करने की। वामपंथी आंदोलन के लिए यह एक टर्निंग पॉइंट है।
एक बात तो तय है – वीएस अच्युतानंदन सिर्फ एक नाम नहीं, एक विचार थे। सादगी और सिद्धांतों की मिसाल। केरल की जनता के दिलों में वे हमेशा उस नेता के तौर पर जिंदा रहेंगे जिसने सत्ता से ज्यादा अपने विश्वासों को महत्व दिया। और यही तो असली विरासत होती है ना?
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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com