वक्फ बिल पर बिहार में सियासी तूफ़ान! क्या BJP सच में पसमांदा मुसलमानों को लुभा पाएगी?
अरे भई, बिहार की राजनीति में तो हमेशा कुछ न कुछ चलता रहता है – लेकिन इस बार वक्फ बिल को लेकर जो हंगामा मचा है, उसने तो सबका ध्यान खींच लिया है। सच कहूँ तो ये अब सिर्फ़ एक कानूनी मुद्दा भर नहीं रहा। 2025 के चुनाव से पहले तो ये वोट बैंक की जंग बन चुका है। एक तरफ़ RJD-कांग्रेस वाला महागठबंधन है जो मुस्लिम वोटरों को एकजुट करने में जुटा है, तो दूसरी तरफ़ BJP अपनी चाल चल रही है – ‘पसमांदा मिलन समारोह’ जैसे आयोजनों के ज़रिए। सियासत की ये चालें देखकर तो लगता है, गेम अभी बाकी है!
वक्फ बिल: असली मुद्दा क्या है?
देखिए, बात समझने वाली है। वक्फ संपत्तियों के मैनेजमेंट को लेकर ये बिल क्यों इतना विवादित हो रहा है? असल में, सरकार को वक्फ बोर्ड पर ज़्यादा कंट्रोल देने का प्रावधान है। अब यहाँ दोनों तरफ़ के तर्क सुनिए – मुस्लिम नेता इसे धर्म में दख़लंदाज़ी बता रहे हैं, वहीं BJP का दावा है कि ये पारदर्शिता लाएगा। सच्चाई? शायद इन दोनों के बीच कहीं छुपी हुई है।
और हाँ, BJP की रणनीति तो साफ़ दिख रही है न? पसमांदा मुसलमानों को टारगेट करना। ये वही ग्रुप है जिसे मोदी सरकार ‘सबका साथ’ के तहत पहले भी कोर्ट कर चुकी है। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सिर्फ़ चुनावी चाल है या फिर सच में कुछ बदलाव होगा?
राजनीति का नया अध्याय: रैलियाँ और प्रतिरैलियाँ
रविवार को पटना के गांधी मैदान का नज़ारा देखना था! महागठबंधन की विशाल रैली… हज़ारों लोग… वक्फ बिल के ख़िलाफ़ एकजुट होते मुस्लिम वोटर। लेकिन BJP ने तो जैसे ‘अगले दिन जवाब देना’ अपनी आदत बना ली है। सोमवार को ही ‘पसमांदा मिलन’ कार्यक्रम। क्या कहें – सियासत का ये खेल तो अब खुलकर सामने आ गया है।
सुशील मोदी का बयान तो मीडिया में खूब चला: “पसमांदाओं को लंबे समय से नज़रअंदाज़ किया गया।” पर RJD वालों ने इसे ‘फूट डालो’ नीति बताकर खारिज कर दिया। सच कहूँ तो दोनों पक्षों के बयानों में से सच निकालना मुश्किल हो रहा है।
ग्राउंड रियलिटी: मुस्लिम समुदाय क्या सोचता है?
पसमांदा नेता अली अनवर तो सीधे BJP पर निशाना साध रहे हैं: “ये सिर्फ़ वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं।” वहीं वक्फ बोर्ड के चेयरमैन का आरोप और गंभीर – “सरकार हमारी धार्मिक संपत्तियों पर कब्ज़ा चाहती है।”
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएँ? जैसा कि हमेशा होता आया है – दो अलग-अलग ध्रुव। RJD का आरोप: “बाँटो और राज करो।” BJP का जवाब: “हम तो सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं।” पर सवाल ये है कि जमीनी हकीकत क्या है?
आगे क्या? 2025 के चुनाव पर असर पड़ेगा?
2025 का चुनाव… वक्फ बिल… मुस्लिम वोटिंग पैटर्न… ये सब मिलकर क्या नया समीकरण बनाएगा? विश्लेषक तो यही कह रहे हैं कि इसका बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। और हाँ, कोर्ट में केस होने की भी संभावना है – मतलब ये मुद्दा लंबा खिंचेगा।
अंत में एक बात साफ़ है – बिहार की राजनीति में धर्म और जाति का खेल नए सिरे से शुरू हो चुका है। कौन जीतेगा ये मैच? वो तो वक्त ही बताएगा। लेकिन इतना तय है – ये सियासी स्टंट 2025 तक थमने वाला नहीं!
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बिहार में वक्फ बिल को लेकर जो हंगामा मचा है, उसने पूरे सियासी माहौल को ही गर्म कर दिया है। सच कहूं तो, BJP का पसमांदा मुसलमानों की तरफ बढ़ाया गया हाथ सिर्फ एक राजनीतिक चाल नहीं लगता – यह कुछ बड़े बदलाव का संकेत देता है।
लेकिन सवाल यह है कि…
क्या यह सच में सामाजिक न्याय की नई परिभाषा गढ़ेगा? या फिर ये सब सियासी चालबाजी का हिस्सा है? देखा जाए तो, मामला अब सिर्फ एक बिल तक सीमित नहीं रहा। असल में तो…
यहां दोनों तरफ के तर्क सुनने लायक हैं। एक तरफ तो वक्फ संपत्तियों का सही इस्तेमाल होगा (जो कि बहुत जरूरी भी है – आखिर ये तो समाज के ही पैसे हैं न!)। लेकिन दूसरी तरफ, क्या यह सच में मुस्लिम समुदाय की मदद करेगा? या फिर…
बात अब पूरी तरह साफ नहीं हो पाई है। पर इतना तय है – अगले कुछ दिनों में यह बहस और गर्म होने वाली है। और हां, वक्त ही बताएगा कि आगे की राह क्या होगी। लेकिन फिलहाल तो सियासी गलियारों में बस एक ही बात चल रही है – “गेम चेंजर”। सच में!
वक्फ बिल और बिहार की सियासत – सच क्या है, सियासत क्या?
वक्फ बिल है क्या बला? और यह अचानक ट्रेंड क्यों हो गया?
देखिए, वक्फ बिल असल में मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों के मैनेजमेंट से जुड़ा एक प्रोपोजल है। पर सवाल ये है कि बिहार में अचानक यह मुद्दा गरमा क्यों गया? BJP का दावा है कि यह पसमांदा मुसलमानों के हक़ की लड़ाई है, वहीं दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियां इसे ‘मुद्दे से ध्यान भटकाने की चाल’ बता रही हैं। सच क्या है? शायद वक्त ही बताएगा।
BJP का पसमांदा मुसलमानों को ‘गरीब नारायण’ वाला संदेश?
मजे की बात ये है कि BJP ने इसे ‘ऐतिहासिक न्याय’ का नाम दे दिया है। उनका कहना है कि वक्फ की प्रॉपर्टी का फायदा सिर्फ अमीर मुसलमानों तक नहीं पहुंचना चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे मंदिरों के दान का फायदा सभी हिंदुओं को मिलता है। लेकिन…क्या यह सच में सामाजिक न्याय की बात है या फिर सियासी चाल? आप खुद फैसला कीजिए।
विपक्ष को क्यों चुभ रहा है ये बिल? असली वजह जानिए
अब विपक्ष की बात करें तो…उनका तो यही कहना है कि यह सब ‘डिवाइड एंड रूल’ की पुरानी राजनीति है। एक तरफ तो BJP सभी मुसलमानों को एक ही नज़र से देखने की बात करती है, दूसरी तरफ पसमांदा और अशराफ में फर्क कर रही है। थोड़ा अजीब लगता है, है ना? पर सियासत है तो ऐसी ही होती है!
क्या यह बिल पूरे भारत में लागू होगा? एक बड़ा सवाल
फिलहाल तो यह बिहार तक ही सीमित है। पर अगर BJP को यहां सफलता मिली तो…? आप समझदार हैं, अंदाज़ा लगा ही लेंगे! केंद्र सरकार पहले ही वक्फ संपत्तियों के रिफॉर्म की बात कर चुकी है। तो क्या यह टेस्ट केस है? हो सकता है। राजनीति में कुछ भी तो हो सकता है!
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com